आजकल रियल कहानियों पर आधारित क्राइम बेस्ड ड्रामा सीरीज काफी पसंद की जा रही हैं। 'मिर्जापुर', 'सेक्रेड गेम्स', 'अपहरण' और 'पाताल लोक' जैसी पॉप्युलर वेब सीरीज के बाद एक बार फिर ऑडियंस के लिए फ्री स्ट्रीमिंग ओटीटी प्लैटफॉर्म एमएक्स प्लेयर अपनी ऑरिजनल बेब सीरीज 'रक्तांचल' का पहला सीजन लेकर आया है। यह कहानी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में 80 के दशक के मध्य में उभरते माफिया राज, गैंगवार और वर्चस्व की लड़ाई पर आधारित है।
कहानी: 'रक्तांचल' की कहानी 1984 से शुरू होती है जब गांव के सीधा-सादे और आईएएस बनने की इच्छा रखने वाले विजय सिंह (क्रांति प्रकाश झा) के पिता की हत्या गैंगस्टर वसीम खान (निकितन धीर) के गुंडे कर देते हैं। इसके बाद अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए विजय सिंह पढ़ाई-लिखाई छोड़कर क्राइम की दुनिया में उतर जाता है। वक्त के साथ विजय सिंह की ताकत में इतना इजाफा होता है कि वह सीधे वसीम खान के वर्चस्व को चैलेंज करने लगता है। इन दोनों के गैंगवार से पूर्वांचल में खून की नदियां बहने लगती हैं जिसकी कहानी है 'रक्तांचल'।
रिव्यू: यह कहना गलत नहीं होगा कि बॉलिवुड में अनुराग कश्यप की 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' ने ऑडियंस को क्राइम ड्रामा फिल्मों और सीरीज का ऐसा चस्का लगाया है कि एक के बाद एक ऐसी सीरीज दर्शकों के सामने आ रही हैं। 'रक्तांचल' के पहले ही एपिसोड से कहानी आपको बांध लेगी। वेब सीरीज में हीरो विजय सिंह के रोल में क्रांति प्रकाश झा छा गए हैं। 'एमएस धोन: द अनटोल्ड स्टोरी', 'बाटला हाउस' जैसी फिल्मों और टीवी सीरीज 'स्वामी रामदेव- एक संघर्ष' के बाद क्रांति प्रकाश 'रक्तांचल' में अपनी ऐक्टिंग और डायलॉग डिलिवरी से सब पर भारी पड़े हैं। विलन वसीम खान के रोल में निकितन धीर खतरनाक जरूर लगते हैं लेकिन उन्हें अपने फेशल एक्सप्रेशन और डायलॉग डिलिवरी पर काफी काम करने की जरूरत है।
दोनों लीड रोल के अलावा भ्रष्ट राजनेता पुजारी सिंह के किरदार में रवि खानविलकर और वसीम खान के गुंडे सनकी के किरदार में विक्रम कोचर काफी दमदार लगे हैं। रोंजिनी चक्रवर्ती का किरदार सीमा और कृष्णा बिष्ट का किरदार कट्टा काफी देर से आते हैं लेकिन छाप छोड़कर जाते हैं। त्रिपुरारी के किरदार में प्रमोद पाठक ठीकठाक हैं। पॉलिटिशन साहेब सिंह के किरदार को बेहतर बनाया जा सकता था लेकिन इस रोल में दया शंकर पांडे जैसे बेहतरीन कलाकार से ठीक से काम नहीं लिया गया है।
'रक्तांचल' की कहानी को संजीव के रजत, सरवेश उपाध्याय और शशांक राही ने लिखा है। डायरेक्टर रीतम श्रीवास्तव ने 'रक्तांचल' में 80 के दशक के मध्य का माहौल पूरी तरह से बांध दिया है। 80 के दशक के अंत में उत्तर प्रदेश में चली हिंदू-मुस्लिम और राम मंदिर की राजनीति को भी इसमें शामिल किया गया है। 'रक्तांचल' की कहानी अच्छी है लेकिन डायलॉग्स कुछ कमजोर रहे हैं जो दर्शकों पर सीमित प्रभाव छोड़ने में ही सफल होते हैं। कहानी में विजय सिंह की प्रेम कहानी को ठीक से दिखाया जा सकता था जो कुछ सीन में ही सिमटकर रह गई है। 'रक्तांचल' में डाले गए दोनों गाने कहानी की रफ्तार पर ब्रेक लगाते हैं इसलिए उन्हें नहीं भी डाला जाता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। कहानी को ऐसे मोड़ पर खत्म किया गया है जिससे दर्शकों को इसके सेकंड सीजन का इंतजार रहेगा।
क्यों देखें: क्रांति प्रकाश झा की बेहतरीन ऐक्टिंग देखनी हो और क्राइम, थ्रिलर, ड्रामा सीरीज के शौकीन हैं तो इसे मिस न करें।
कहानी: 'रक्तांचल' की कहानी 1984 से शुरू होती है जब गांव के सीधा-सादे और आईएएस बनने की इच्छा रखने वाले विजय सिंह (क्रांति प्रकाश झा) के पिता की हत्या गैंगस्टर वसीम खान (निकितन धीर) के गुंडे कर देते हैं। इसके बाद अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए विजय सिंह पढ़ाई-लिखाई छोड़कर क्राइम की दुनिया में उतर जाता है। वक्त के साथ विजय सिंह की ताकत में इतना इजाफा होता है कि वह सीधे वसीम खान के वर्चस्व को चैलेंज करने लगता है। इन दोनों के गैंगवार से पूर्वांचल में खून की नदियां बहने लगती हैं जिसकी कहानी है 'रक्तांचल'।
रिव्यू: यह कहना गलत नहीं होगा कि बॉलिवुड में अनुराग कश्यप की 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' ने ऑडियंस को क्राइम ड्रामा फिल्मों और सीरीज का ऐसा चस्का लगाया है कि एक के बाद एक ऐसी सीरीज दर्शकों के सामने आ रही हैं। 'रक्तांचल' के पहले ही एपिसोड से कहानी आपको बांध लेगी। वेब सीरीज में हीरो विजय सिंह के रोल में क्रांति प्रकाश झा छा गए हैं। 'एमएस धोन: द अनटोल्ड स्टोरी', 'बाटला हाउस' जैसी फिल्मों और टीवी सीरीज 'स्वामी रामदेव- एक संघर्ष' के बाद क्रांति प्रकाश 'रक्तांचल' में अपनी ऐक्टिंग और डायलॉग डिलिवरी से सब पर भारी पड़े हैं। विलन वसीम खान के रोल में निकितन धीर खतरनाक जरूर लगते हैं लेकिन उन्हें अपने फेशल एक्सप्रेशन और डायलॉग डिलिवरी पर काफी काम करने की जरूरत है।
दोनों लीड रोल के अलावा भ्रष्ट राजनेता पुजारी सिंह के किरदार में रवि खानविलकर और वसीम खान के गुंडे सनकी के किरदार में विक्रम कोचर काफी दमदार लगे हैं। रोंजिनी चक्रवर्ती का किरदार सीमा और कृष्णा बिष्ट का किरदार कट्टा काफी देर से आते हैं लेकिन छाप छोड़कर जाते हैं। त्रिपुरारी के किरदार में प्रमोद पाठक ठीकठाक हैं। पॉलिटिशन साहेब सिंह के किरदार को बेहतर बनाया जा सकता था लेकिन इस रोल में दया शंकर पांडे जैसे बेहतरीन कलाकार से ठीक से काम नहीं लिया गया है।
'रक्तांचल' की कहानी को संजीव के रजत, सरवेश उपाध्याय और शशांक राही ने लिखा है। डायरेक्टर रीतम श्रीवास्तव ने 'रक्तांचल' में 80 के दशक के मध्य का माहौल पूरी तरह से बांध दिया है। 80 के दशक के अंत में उत्तर प्रदेश में चली हिंदू-मुस्लिम और राम मंदिर की राजनीति को भी इसमें शामिल किया गया है। 'रक्तांचल' की कहानी अच्छी है लेकिन डायलॉग्स कुछ कमजोर रहे हैं जो दर्शकों पर सीमित प्रभाव छोड़ने में ही सफल होते हैं। कहानी में विजय सिंह की प्रेम कहानी को ठीक से दिखाया जा सकता था जो कुछ सीन में ही सिमटकर रह गई है। 'रक्तांचल' में डाले गए दोनों गाने कहानी की रफ्तार पर ब्रेक लगाते हैं इसलिए उन्हें नहीं भी डाला जाता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। कहानी को ऐसे मोड़ पर खत्म किया गया है जिससे दर्शकों को इसके सेकंड सीजन का इंतजार रहेगा।
क्यों देखें: क्रांति प्रकाश झा की बेहतरीन ऐक्टिंग देखनी हो और क्राइम, थ्रिलर, ड्रामा सीरीज के शौकीन हैं तो इसे मिस न करें।
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