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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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क्रिमिनल जस्टिस: बेहाइंड क्लोज्ड डोर्स

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क्रिमिनल जस्टिस सीरीज का दूसरा सीजन रिलीज हो चुका है और इस बार कहानी न केवल बहुत अलग है बल्कि बहुत सारे सामाजिक मुद्दों पर बात भी करती है। इस बार कुछ ऐसे मुद्दों पर बात की गई है जिन पर समाज बात नहीं करना चाहता है। समाज बात न करे इससे मुद्दा खत्म नहीं हो जाता, और इसी बारे में पूरी सीरीज है। यहां मुद्दा उसी बात को बनाया गया है जिसे मुद्दा नहीं समझा जाता।

कहानी: अनुराधा (कीर्ति कुल्हारी) देश के सबसे बड़े वकील की पत्नी हैं लेकिन वह अपने पति बिक्रम चंद्रा (जिशू सेनगुप्ता) के पेट में चाकू घोंप देती हैं। आखिर अनु ने ऐसा क्यों किया, यही पूरी सीरीज की कहानी है। अपने पति को मारने के बाद अनु बाकायदे कॉल करके हॉस्पिटल स्टाफ को बुलाती हैं और घर से बाहर चली जाती हैं। इसके बाद उनके घायल पति और उनकी बच्ची, और घर पर क्या बीतती है, यही है कहानी। कहानी के कुछ पात्र पुराने सीरीज से शामिल होते हैं और वो कहानी को आगे बढ़ाते हैं।

रिव्यू: 'क्रिमिनल जस्टिस' का पिछला सीजन बहुत अच्छा बना था। इस बार इसके हीरो विक्रांत मैसी नहीं बल्कि कीर्ति कुल्हारी हैं। हमारे समाज में बहुत सारे मुद्दे हैं लेकिन कभी किसी मुद्दे में हमने महिलाओं की इच्चा मांगी या उसका सम्मान किया? महिला की इच्छा कौन, कहां, कब, कितना पूछाना चाहता है? यहां मुद्दा महिला के शरीर से जुड़ा है, क्या वह सेक्स करना चाहती है या नहीं? दरअसल हमारे यहां कानून में मैरिटल रेप का कॉन्सेप्ट ही नहीं है। (मतलब पति अगर बिना इच्छा के भी पत्नी के साथ संभोग करे तो वह रेप नहीं माना जाएगा) ये हमारा कानून कहता है। अच्छा है, लेकिन महिला की इच्छा कहां है? सवाल ये है कि अगर महिला नहीं चाहती है तो वह क्या करे? यह सीरीज आपको इस बारे में खुलकर बताएगी। एक रात अनु अचानक बिक्रम के पेट में चाकू मार देती हैं। मुद्दा यह है कि 'अनु ने चाकू क्यों मारा?' लेकिन हमारा सिस्टम पूछना चाहता है कि 'अनु ने चाकू कैसे मारा?' अगर आप इन दो वाक्यों के बीच का अंतर समझ सकते हैं तो ठीक वरना यह वेब सीरीज जो कहना चाहती है, वह आपको समझ नहीं आएगा।
हर चीज के दो पहलू होते हैं। इस कहानी में दिखाया गया है कि दूसरा पहलू निकालने के लिए बहुत मेहनत की गई है जबकि पहले पहलू के लिए प्रोपेगैंडा। अनु का केस माधव मिश्रा (पंकज त्रिपाठी) के पास आता है और मदद के लिए निखत हुसैन (अनुप्रिया गोयनका) तो मौजूद ही हैं। माधव और निखत दोनों मिलकर न केवल अनु को अपने परिवार से मिलाते हैं बल्कि हमारे पुलिस, मीडिया और जस्टिस सिस्टम का एक काला चेहरा भी दिखाते हैं। यहां कहने के लिए बहुत कुछ है लेकिन बेहतर होगा कि इसे मैं न कहूं, आप खुद देख लें।

क्यों देखें: पंकज त्रिपाठी के फैन हैं तो मिस मत कीजिए, बाकी संदेश कहानी देखने से शायद आपको मिल ही जाएगा।

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