रौनक कोटेचा
कहानी
प्यार में इंसान क्या-क्या नहीं करता! जग्गी (Sunny Kaushal) एक युवा आशिक है। वह कार्तिका (Radhika Madan) से प्यार करता है। उसके प्यार में वह अपनी जिंदगी बदल देता है। इस उम्मीद में कि एक दिन उसे पा सकेगा। जग्गी को लगता है कि कार्तिका ही उसकी सोलमेट है। लेकिन उसकी यह प्यार की यात्रा इतनी आसान भी नहीं है। इसमें पेरशानियां हैं, सच का सामना है, एकतरफा प्यार है। तो क्या जग्गी अपने प्यार को पा लेगा? क्या वह अपने प्यार की इंतहा को साबित कर पाएगा? 'शिद्दत' अपने नाम की तरह ही प्यार की लगन की कहानी है।
रिव्यू
जग्गी (सनी कौशल) के लिए यह पहली नजर का प्यार है। लव एट फर्स्ट साइट। वह कार्तिका (राधिका मदान) को स्वीमिंग पूल से निकलते हुए देखता है। लेकिन प्यार की यह चिंगारी तत्काल नहीं भड़कती, वो कहते हैं ना कि 'नफरत प्यार की पहली सीढ़ी है', यह कहानी कुछ-कुछ ऐसे ही बढ़ती है। जग्गी हर तरह से कार्तिका को लुभाने की कोशिश करता है। डायरेक्टर कुणाल देशमुख हमें 90 के दशक की प्रेम कहानियों की तरह रिझाने की कोशिश करते हैं, जिसे आज के हिसाब से मॉर्डन सेटअप दिया गया है। हालांकि, एकतरफा प्यार में घिरे एक एक ऐसे आशिक को देखना थोड़ा परेशान करता है, जो एक लड़की के लिए जुनूनी है। वह 'ना' नहीं सुन सकता। 90 के दशक में सिनेमाई पर्दे पर न सिर्फ ऐसी कहानियां खूब दिखीं, बल्कि गानों और डांस के रूप में सिल्वर स्क्रीन पर इसका जश्न भी खूब मनाया गया। 'शिद्दत' इसके बहुत करीब लगती है। लेकिन अच्छी बात यह है कि लेखक श्रीधर राघवन और धीरज रतन ने कहानी में लड़की को भी पूरा मौका दिया है। वह आज के जमाने की है। इंडिपेंडेंट है। अपने लिए खुद निर्णय लेना जानती है।
'शिद्दत' एक जुनूनी प्रेम कहानी है, जिसे मुख्य तौर पर कहानी के हीरो जग्गी के हिसाब से बुना गया है। उसका जुनून पागलपन जैसा है और इस बात को दर्शकों के दिल और दिमाग तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त समय दिया गया है। फिल्म का फर्स्ट हाफ पूरी तरह कैम्पस रोमांस पर फोकस है। इसमें फ्लर्ट है, खूब सारा नाच-गाना है। हालांकि, एक चीज जो आपको रोककर रखती है, वह यह है जिज्ञासा कि इस प्रेम कहानी में आगे क्या होने वाला है।
'शिद्दत' में बहुत से किरदार नहीं हैं। लेकिन जितने भी हैं, उन्हें बखूबी तैयार किया गया है। मोहित रैना और डायना पेंटी की कहानी में विश्वास की कमी झलकती है। वह फिल्म की मुख्य कहानी के इर्द-गिर्द सिर्फ सपोर्ट के तौर पर हैं। सनी कौशल के किरदार में जटिलता यह है कि वह जुनूनी प्रेमी है, जिसके चारों ओर कुछ सीमाएं हैं। फिर भी वह खुद को साबित करने के लिए अपना बेस्ट देते हैं। हालांकि, उनके कैरेक्टर का ग्राफ इस कदर उतार-चढ़ाव वाला है कि कुछ समय के बाद उस पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। राधिका मदान स्क्रीन पर कार्तिका के आंतरिक संघर्ष को दिखाने में लड़खड़ाती हैं। उनका स्ट्रगल साफ तौर पर झलकता है। गौतम के किरदार में मोहित रैना की कास्टिंग अच्छी है। वह एक इमिग्रेशन लॉयर की भूमिका में हैं। डायना पेंटी अपने किरदार में खूबसूरत लगी हैं। हालांकि, उनके किरदार को थोड़ा और निखार दिया जा सकता था। एक लव स्टोरी के तौर पर 'शिद्दत' में सचिन-जिगर का संगीत औसत से ऊपर है। फिल्म देखते-देखते यह आपको लुभाता है। अमलेंदु चौधरी की सिनेमेटोग्राफी भी प्रभावित करती हैं।
'शिद्दत' के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह कागज पर भले ही रोमांचक लगे, लेकिन पर्दे पर उतारने में यह खींचा हुआ जान पड़ता है। खासकर सेकेंड हाफ में फिल्म धीमी लगती है। कहानी कई बार वास्तविकता से कोसों दूर चली जाती है और बेतुकी भी लगती है। हालांकि एक सस्पेंस है, जो बतौर दर्शक आपको बांधे रखता है। वैसे, एक सच यह भी है आज के दौर में जहां रियलिस्टि फिल्मों का चलन है, हमें ऐसी जुनूनी, पागलपन से भरी और थोड़ी कच्ची प्रेम कहानी बहुत कम ही देखने को मिलती है। 'शिद्दत' आपको बहुत ज्यादा प्रभावित तो नहीं करती, लेकिन एक छाप जरूर छोड़ जाती है।
कहानी
प्यार में इंसान क्या-क्या नहीं करता! जग्गी (Sunny Kaushal) एक युवा आशिक है। वह कार्तिका (Radhika Madan) से प्यार करता है। उसके प्यार में वह अपनी जिंदगी बदल देता है। इस उम्मीद में कि एक दिन उसे पा सकेगा। जग्गी को लगता है कि कार्तिका ही उसकी सोलमेट है। लेकिन उसकी यह प्यार की यात्रा इतनी आसान भी नहीं है। इसमें पेरशानियां हैं, सच का सामना है, एकतरफा प्यार है। तो क्या जग्गी अपने प्यार को पा लेगा? क्या वह अपने प्यार की इंतहा को साबित कर पाएगा? 'शिद्दत' अपने नाम की तरह ही प्यार की लगन की कहानी है।
रिव्यू
जग्गी (सनी कौशल) के लिए यह पहली नजर का प्यार है। लव एट फर्स्ट साइट। वह कार्तिका (राधिका मदान) को स्वीमिंग पूल से निकलते हुए देखता है। लेकिन प्यार की यह चिंगारी तत्काल नहीं भड़कती, वो कहते हैं ना कि 'नफरत प्यार की पहली सीढ़ी है', यह कहानी कुछ-कुछ ऐसे ही बढ़ती है। जग्गी हर तरह से कार्तिका को लुभाने की कोशिश करता है। डायरेक्टर कुणाल देशमुख हमें 90 के दशक की प्रेम कहानियों की तरह रिझाने की कोशिश करते हैं, जिसे आज के हिसाब से मॉर्डन सेटअप दिया गया है। हालांकि, एकतरफा प्यार में घिरे एक एक ऐसे आशिक को देखना थोड़ा परेशान करता है, जो एक लड़की के लिए जुनूनी है। वह 'ना' नहीं सुन सकता। 90 के दशक में सिनेमाई पर्दे पर न सिर्फ ऐसी कहानियां खूब दिखीं, बल्कि गानों और डांस के रूप में सिल्वर स्क्रीन पर इसका जश्न भी खूब मनाया गया। 'शिद्दत' इसके बहुत करीब लगती है। लेकिन अच्छी बात यह है कि लेखक श्रीधर राघवन और धीरज रतन ने कहानी में लड़की को भी पूरा मौका दिया है। वह आज के जमाने की है। इंडिपेंडेंट है। अपने लिए खुद निर्णय लेना जानती है।
'शिद्दत' एक जुनूनी प्रेम कहानी है, जिसे मुख्य तौर पर कहानी के हीरो जग्गी के हिसाब से बुना गया है। उसका जुनून पागलपन जैसा है और इस बात को दर्शकों के दिल और दिमाग तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त समय दिया गया है। फिल्म का फर्स्ट हाफ पूरी तरह कैम्पस रोमांस पर फोकस है। इसमें फ्लर्ट है, खूब सारा नाच-गाना है। हालांकि, एक चीज जो आपको रोककर रखती है, वह यह है जिज्ञासा कि इस प्रेम कहानी में आगे क्या होने वाला है।
'शिद्दत' में बहुत से किरदार नहीं हैं। लेकिन जितने भी हैं, उन्हें बखूबी तैयार किया गया है। मोहित रैना और डायना पेंटी की कहानी में विश्वास की कमी झलकती है। वह फिल्म की मुख्य कहानी के इर्द-गिर्द सिर्फ सपोर्ट के तौर पर हैं। सनी कौशल के किरदार में जटिलता यह है कि वह जुनूनी प्रेमी है, जिसके चारों ओर कुछ सीमाएं हैं। फिर भी वह खुद को साबित करने के लिए अपना बेस्ट देते हैं। हालांकि, उनके कैरेक्टर का ग्राफ इस कदर उतार-चढ़ाव वाला है कि कुछ समय के बाद उस पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। राधिका मदान स्क्रीन पर कार्तिका के आंतरिक संघर्ष को दिखाने में लड़खड़ाती हैं। उनका स्ट्रगल साफ तौर पर झलकता है। गौतम के किरदार में मोहित रैना की कास्टिंग अच्छी है। वह एक इमिग्रेशन लॉयर की भूमिका में हैं। डायना पेंटी अपने किरदार में खूबसूरत लगी हैं। हालांकि, उनके किरदार को थोड़ा और निखार दिया जा सकता था। एक लव स्टोरी के तौर पर 'शिद्दत' में सचिन-जिगर का संगीत औसत से ऊपर है। फिल्म देखते-देखते यह आपको लुभाता है। अमलेंदु चौधरी की सिनेमेटोग्राफी भी प्रभावित करती हैं।
'शिद्दत' के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह कागज पर भले ही रोमांचक लगे, लेकिन पर्दे पर उतारने में यह खींचा हुआ जान पड़ता है। खासकर सेकेंड हाफ में फिल्म धीमी लगती है। कहानी कई बार वास्तविकता से कोसों दूर चली जाती है और बेतुकी भी लगती है। हालांकि एक सस्पेंस है, जो बतौर दर्शक आपको बांधे रखता है। वैसे, एक सच यह भी है आज के दौर में जहां रियलिस्टि फिल्मों का चलन है, हमें ऐसी जुनूनी, पागलपन से भरी और थोड़ी कच्ची प्रेम कहानी बहुत कम ही देखने को मिलती है। 'शिद्दत' आपको बहुत ज्यादा प्रभावित तो नहीं करती, लेकिन एक छाप जरूर छोड़ जाती है।
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