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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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मूवी रिव्यू: डोंट लुक अप

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मयंक कुमार
कहानी: फिल्म शुरू होती है और ओपनिंग सन में ही बिना किसी विज़ुअल के किसी अदृश्य से जीव के चीखने की आवाज आती है। जब तक दर्शक कुछ समझ पाता है तब तक खुलासा हो जाता है कि यह आवाज किसी ड्रिंक बनाने वाली मशीन की है, जो फिल्म के मेन कैरक्टर में से एक पीएचडी स्टूडेंट केट डीबियास्की अपने लिए पोर कर रही है। बड़ी ही छोटी सी बात है कि एक इंसान अपने लिए ड्रिंक पोर कर रहा है, लेकिन कायदे से फिल्म के बारे में बताने के लिए ये ओपनिंग सीन बहुत जरूरी है। खुलकर कहें तो यूं समझिए कि कैसे एक चीख को इंसान मॉडर्न टेक्नॉलजी की बदौलत अपने ग्लास में ढारता है, ये हमारे मॉडर्न टाइम्स को समझने के लिए काफी है। इसके अलावा उसी सीन में बजता एक हिंसक लिरिक्स वाला रैप भी बहुत कुछ केट के किरदार के बारे में कह जाता है।

खैर आगे बढ़ते हैं। फिल्म के शुरूआती कुछ मिनटों में ही साफ हो जाता है कि केट डीबियास्की (जेनिफर लॉरेन्स) एक ऐसे कॉमेट को ढूंढ निकालती है जो कुछ ही महीनों में पृथ्वी से टकराने वाला है। इस सूचना में दही डालने का काम करते हैं प्रफेसर मिंडी, जिसे निभाया है लियोनार्डो डीकेप्रियो ने। और जब मैं यह लिख रहा हूं कि निभाया है तो यह ज़ाहिर होना चाहिए कि लियोनार्डो ने इस किरदार में जान डाल दी है। लगता ही नहीं कि यह वही लियोनार्डो हैं, जो शटर आइलैंड में लोगों को हैरत में डाल देते हैं। इतना सीधा, सरल किरदार जो प्रेजिडेंट के सामने कुछ बोलने में भी थरथराने लगता है और अपनी सांसों की आवाज से टीवी शो को अनकम्फर्टेबल कर देता है।


केट के कॉमेट डिस्कवरी के बाद जश्न का माहौल चल रहा होता है कि तभी प्रफेसर मिंडी नोटिस करते हैं कि ये कॉमेट जिसे केट के नाम पर डीबियास्की कॉमेट कहा जाएगा, वो तेज़ी से धरती की तरफ बढ़ रहा है। कैलकुलेशंस के मुताबिक 6 महीने और 14 दिन बाद यह कॉमेट पृथ्वी पर मानव सभ्यता का विनाश कर देगा। केट और प्रोफेसर मिंडी घबराकर सरकार को इस बारे में इत्तेला करते हैं और अगले ही दोनों वाइट हाउस में बैठे मिलते हैं। इस दौरान एक सीन है जो हो सकता है फिल्म के ज़हन से छूटने के बाद भी आपको जकड़े
रखेगा। वाइट हाउस के वेटिंग एरिया में स्नैक्स रखे होते हैं जो कि बिलकुल निःशुल्क हैं लेकिन इस बारे में केट और प्रफेसर मिंडी को नहीं पता होता। प्रेजिडेंट का काफी देर इंतज़ार करने पर दोनों को भूख लग जाती है और जनरल उन्हें वही स्नैक्स लाकर देता है मगर उसके पैसे उनसे लेता है। पहले तो दोनों कुछ समझ नहीं पाते लेकिन जब केट दोबारा स्नैक्स लेने जाती है तो उसे पता लगता है कि अमेरिकी फौज के उस जनरल ने उनसे उस चीज के पैसे लिए जो बिलकुल मुफ्त थी। इस सीन के माध्यम से अमेरिका की पूंजीवादी सोच पर सटायर करने की कोशिश की गई है। इस सीन के बाद 'इन कैपिटलिज़्म, एवरीथिंग हैज़ अ प्राइस' वाली बात आपके दिमाग में आ सकती है।

इसके बाद जो भी फिल्म में होता है वो सब डार्क कॉमेडी की श्रेणी में आएगा। मतलब दुनिया ख़त्म होने वाली है और राजनेताओं, सोशल मीडिया और यहां तक की आम जनता की लंतरानियां ही ख़त्म नहीं हो रही हैं। जहां मौजूदा प्रेजिडेंट (मेरिल स्ट्रीप) इसे चुनावी मुद्दा बना देती हैं तो केट का टीवी शो पर ये चिल्लाना कि हम सब मरने वाले हैं, सोशल मीडिया के लिए मीम मटेरियल बन जाता है।

दुनिया अपने ढर्रे पर नाक की सीध में चलती रहती है और यह सब ड्रामा होता रहता है। लेकिन पूरी फिल्म के दौरान यह डर कायम रहता है कि कॉमेट भी आ रहा है, उससे कैसे निपटेंगे ये लोग? फिल्म के एक सीन में केट यह भी कहती हैं कि सरकार में जितना बुरा आप सोच रहे हैं, इस सरकार के पास उतना बुरा करने का दिमाग ही नहीं है।

इन्हीं सब हुलाबलू के बीच चाहे वो अरियाना ग्रांडे हों, टिमोथी या फिर केट ब्लैंचेट, दर्शकों पर सभी अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं। मेरिल स्ट्रीप का तो कहना ही क्या, वो क्लासिक थीं, हैं और रहेंगी। इन सबके अलावा एक बिलियनेयर पीटर के किरदार में मार्क रैलेंस ने बहुत बढ़िया काम किया है। समय के साथ बदलने वाला लहजा बिना कहे बहुत कुछ कह जाता है। पीटर का एआई सिस्टम कैसे लोगों की जेब से बिना पूछे पैसे निकालता है, यह देखना दिलचस्प रहा और एक चेतावनी की तरह घर कर गया।

रिव्यू: फिल्म में सोशल मीडिया कल्चर, एएआई, इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री, पॉलिटिक्स, बात-बात राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा देने वाली सरकार जैसे कई मुद्दों पर कटाक्ष किया गया है। डायरेक्टर एडम मैके और पत्रकार डेविड सिरोटा ने इस फिल्म में तमाम तरह के सोशल मीडिया रेफरेन्सेस डालने की कोशिश की है। शायद ये दोनों इस आस्पेक्ट पर इतना मेहनत न करते तो फिल्म थोड़ी और कसी हुई हो सकती थी। कई बार फिल्म जिसे एक मॉकरी बनाकर संदेश देने की कोशिश की गई है, वाकई में मॉकरी लगने लगती है। बाकी कई जगह फिल्म
बहुत बढ़िया भी लगी है। लियोनार्डो का किरदार हो या मेरिल स्ट्रीप का, डायरेक्टर की तरफ से कोई कोताही नहीं बरती गई है।

फिल्म लियोनार्डो, मेरिल स्ट्रीप, जेनिफ़र लॉरेन्स, केट ब्लैंचेट, टिमोथी, मार्क रैलेंस और जोनाह हिल जैसी धमाकेदार स्टारकास्ट के साथ लोडेड है। इसका फायदा भी देखने को मिलता है, जब बहुत सामान्य से डायलॉग को अपनी अदायगी से इन कलाकारों ने जबरदस्त बना दिया है। फिल्म बढ़िया है, बेहतर हो सकती थी।

क्यों देखें: अगर निहिलिस्ट हैं तो आखिरी सीन बहुत बढ़िया लगेगा। जस्ट जोकिंग। फिल्म को लियोनार्डो की नर्वसनेस और जेनिफर के एक्सप्रेशंस के लिए देखा जाना चाहिए। यह जानने के लिए भी किस स्तर तक सरकारें अपनी जनता के सामने छलावा करने का माद्दा रखती है।

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