कहानी: 'केजीएफ: चैप्टर 2' की कहानी को लेकर एक डायलॉग है, 'यह एक छोटे से गांव में रह रही मां के जिद की कहानी है और उसी जिद को पूरा करने के लिए रॉकी किसी भी हद तक जा सकता है।' वाकई 'केजीएफ: चैप्टर 2' में निर्देशक प्रशांत नील और यश उस वादे को पूरा किया और इस बार चैप्टर 2 में उसे और ज्यादा भव्य, विशाल, इमोशनल और एंटेरटेनिंग बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लगभग चार सालों के लंबे इंतजार के बाद चैप्टर 2 आई है और फिल्म देख कर कहा जा सकता है कि इन्होंने अपने फैंस को जरा भी निराश नहीं किया। अमूमन फिल्म की सफलता के बाद सीक्वल कई बार उतनी प्रभावी नहीं बन पाती, मगर यहां निर्देशक प्रशांत नील ग्रेंजर, रोंगटे खड़े कर देने वाले ऐक्शन, यश के स्वैग और स्टाइल के साथ बॉलिवुड के संजय दत्त और रवीना टंडन जैसे माहिर अदाकारों को जोड़ कर हिंदी दर्शकों के लिए एंटरटेनमेंट का तगड़ा डोज तैयार करने में कामयाब रहे हैं।
रिव्यू: दूसरे भाग की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पहला भाग समाप्त हुआ था। रॉकी भाई (यश) गरुड़ा को मारकर केजीएफ का नया सुल्तान बन गया है। उसे वहां के लोगों का बेइंतहा प्यार हासिल है और उसी प्यार के बलबूते पर वे रॉकी को अपना खुदा मानते हैं। यहां रॉकी आंधी-तूफान की तरह आगे बढ़ता जा रहा है, एक मंजिल फतह करने के बाद वो दूसरी मंजिल पर जीत हासिल करता जाता है। उसे केजीएफ का सारा सोना चाहिए। अपनी मां से किए गया वादा जो पूरा करना है कि उसे दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनना है। उसकी राह आसान नहीं है। उसके दुश्मनों की तादात बढ़ती जाती है। गरुडा के वहशी भाई अधीरा (संजय दत्त) जिसकी तलवार खून की प्यासी है, उसका सबसे बड़ा दुश्मन है। यश को अधीरा साथ ही देश की ईमानदार प्रधानमंत्री रमिका सेन (रवीना टंडन) के विरोध और आक्रोश का सामना करना पड़ता है? अब उसकी जिंदगी में श्रीनिधि प्यार की बहार ले आई है, तो उस पर उसकी भी जिमेदारी है। क्या रॉकी अपने दुश्मनों को मात दे पाएगा? क्या वो अपनी मां से किया हुआ वादा निभा पाएगा? अपने प्यार के साथ इंसाफ कर पाएगा? इन सारे सवालों के जवाब आपको फिल्म में मिलेंगे, मगर हम आपको इतना जरूर बता सकते हैं कि फिल्म क्लाइमैक्स में यह भी तय कर देती है कि 'केजीएफ: चैप्टर 3' की भी योजना है।
निर्देशक के रूप में प्रशांत नील स्पष्ट थे कि उन्हें चैप्टर वन की तरह हाई ऑक्टेन ऐक्शन वाली एंटेरटेनिंग फिल्म बनानी है, यही वजह है कि 'चैप्टर वन' की परंपरा का निर्वाह करते हुए उन्होंने इसमें भी अंधेरी, मैली-कुचैली और दशहत भरी दुनिया पेश की है। फिल्म में रॉ ऐक्शन का जलवा देखने को मिलता है, जहां बंदूकों के साथ-साथ हथौड़े, चॉपर, चाकू और आग खूबी से इस्तेमाल हुआ है। पहले भाग में नायक और अन्य किरदारों को डेवलप करने में उन्होंने खासा समय लगाया, मगर इंटरवल के बाद फिल्म का घटनाक्रम तेजी से आगे बढ़ता है।
इस बार निर्देशक नायक के भावनात्मक पक्ष पर भी जोर देते हैं। मगर साथ ही एक मजबूत एंग्री यंग मैन भी उभरता है, जो कहीं न कहीं समाज के शोषित वर्ग के लिए मसीहा है। अपनी कहानी और पात्रों के जरिए प्रशांत नील धार्मिक सौहाद्र का परिचय देना नहीं भूलते, जो मौजूदा हालात में पॉजिटिव मेसेज देता है। हां, फिल्म का वर्तमान और अतीत का सफर थोड़ा कन्फ्यूज जरूर करता है। रॉकी और अधीरा के फाइट सीक्वेंस कमाल के हैं। फिल्म का क्लाइमैक्स यश के फैंस को जज्बाती कर देगा। हालांकि फिल्म की लंबाई अगर 10-15 मिनट कम होती, तो कहानी और धारधार हो सकती थी। बैकग्राउंड म्यूजिक और सिनेमाटोग्राफी को फिल्म का प्लस पॉइंट कहना गलत न होगा।
इसमें कोई शक नहीं कि यह पूरी फिल्म यश की है। यश अपनी स्टाइलिश अदाओं और अंदाज से अपने स्वैग को बनाए रखने में कामयाब रहे हैं। फिल्म में एक्शन और हिंसक दृश्यों की भरमार है, मगर उसके बीच में यश कहीं अपने डायलॉग्स तो कहीं कॉमिडी तो कहीं अपना जज्बाती पहलू दिखा कर उसे मनोरंजक बनाते जाते हैं।
फिल्म में हीरोइन श्रीनिधि के लिए यश का यह डायलॉग 'इसे मैं एंटेरेनमेंट के लिए लाया हूं' खलता है। युवाओं के हीरो बन चुके यश को ऐसे संवादों से परहेज करना चाहिए। नायिका के रूप में श्रीनिधि कई फ्रेम्स में नजर तो आती हैं, मगर उनकी भूमिका का औचित्य समझ नहीं आता। अधीरा के रूप में संजय दत्त सशक्त उपस्थिति दर्शाते हैं, तो वहीं रवीना टंडन चुनिंदा दृश्यों में बाजी मार ले जाती हैं। सूत्रधार के रूप में प्रकाश राज, सीबीआई अधिकारी के रूप में राव रमेश और अन्य सहयोगी कास्ट मजबूत है।
क्यों देखें : यश के फैंस और ऐक्शन-ड्रामा सिनेमा के शौकीन यह फिल्म देख कर निराश नहीं होंगे।
रिव्यू: दूसरे भाग की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पहला भाग समाप्त हुआ था। रॉकी भाई (यश) गरुड़ा को मारकर केजीएफ का नया सुल्तान बन गया है। उसे वहां के लोगों का बेइंतहा प्यार हासिल है और उसी प्यार के बलबूते पर वे रॉकी को अपना खुदा मानते हैं। यहां रॉकी आंधी-तूफान की तरह आगे बढ़ता जा रहा है, एक मंजिल फतह करने के बाद वो दूसरी मंजिल पर जीत हासिल करता जाता है। उसे केजीएफ का सारा सोना चाहिए। अपनी मां से किए गया वादा जो पूरा करना है कि उसे दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनना है। उसकी राह आसान नहीं है। उसके दुश्मनों की तादात बढ़ती जाती है। गरुडा के वहशी भाई अधीरा (संजय दत्त) जिसकी तलवार खून की प्यासी है, उसका सबसे बड़ा दुश्मन है। यश को अधीरा साथ ही देश की ईमानदार प्रधानमंत्री रमिका सेन (रवीना टंडन) के विरोध और आक्रोश का सामना करना पड़ता है? अब उसकी जिंदगी में श्रीनिधि प्यार की बहार ले आई है, तो उस पर उसकी भी जिमेदारी है। क्या रॉकी अपने दुश्मनों को मात दे पाएगा? क्या वो अपनी मां से किया हुआ वादा निभा पाएगा? अपने प्यार के साथ इंसाफ कर पाएगा? इन सारे सवालों के जवाब आपको फिल्म में मिलेंगे, मगर हम आपको इतना जरूर बता सकते हैं कि फिल्म क्लाइमैक्स में यह भी तय कर देती है कि 'केजीएफ: चैप्टर 3' की भी योजना है।
निर्देशक के रूप में प्रशांत नील स्पष्ट थे कि उन्हें चैप्टर वन की तरह हाई ऑक्टेन ऐक्शन वाली एंटेरटेनिंग फिल्म बनानी है, यही वजह है कि 'चैप्टर वन' की परंपरा का निर्वाह करते हुए उन्होंने इसमें भी अंधेरी, मैली-कुचैली और दशहत भरी दुनिया पेश की है। फिल्म में रॉ ऐक्शन का जलवा देखने को मिलता है, जहां बंदूकों के साथ-साथ हथौड़े, चॉपर, चाकू और आग खूबी से इस्तेमाल हुआ है। पहले भाग में नायक और अन्य किरदारों को डेवलप करने में उन्होंने खासा समय लगाया, मगर इंटरवल के बाद फिल्म का घटनाक्रम तेजी से आगे बढ़ता है।
इस बार निर्देशक नायक के भावनात्मक पक्ष पर भी जोर देते हैं। मगर साथ ही एक मजबूत एंग्री यंग मैन भी उभरता है, जो कहीं न कहीं समाज के शोषित वर्ग के लिए मसीहा है। अपनी कहानी और पात्रों के जरिए प्रशांत नील धार्मिक सौहाद्र का परिचय देना नहीं भूलते, जो मौजूदा हालात में पॉजिटिव मेसेज देता है। हां, फिल्म का वर्तमान और अतीत का सफर थोड़ा कन्फ्यूज जरूर करता है। रॉकी और अधीरा के फाइट सीक्वेंस कमाल के हैं। फिल्म का क्लाइमैक्स यश के फैंस को जज्बाती कर देगा। हालांकि फिल्म की लंबाई अगर 10-15 मिनट कम होती, तो कहानी और धारधार हो सकती थी। बैकग्राउंड म्यूजिक और सिनेमाटोग्राफी को फिल्म का प्लस पॉइंट कहना गलत न होगा।
इसमें कोई शक नहीं कि यह पूरी फिल्म यश की है। यश अपनी स्टाइलिश अदाओं और अंदाज से अपने स्वैग को बनाए रखने में कामयाब रहे हैं। फिल्म में एक्शन और हिंसक दृश्यों की भरमार है, मगर उसके बीच में यश कहीं अपने डायलॉग्स तो कहीं कॉमिडी तो कहीं अपना जज्बाती पहलू दिखा कर उसे मनोरंजक बनाते जाते हैं।
फिल्म में हीरोइन श्रीनिधि के लिए यश का यह डायलॉग 'इसे मैं एंटेरेनमेंट के लिए लाया हूं' खलता है। युवाओं के हीरो बन चुके यश को ऐसे संवादों से परहेज करना चाहिए। नायिका के रूप में श्रीनिधि कई फ्रेम्स में नजर तो आती हैं, मगर उनकी भूमिका का औचित्य समझ नहीं आता। अधीरा के रूप में संजय दत्त सशक्त उपस्थिति दर्शाते हैं, तो वहीं रवीना टंडन चुनिंदा दृश्यों में बाजी मार ले जाती हैं। सूत्रधार के रूप में प्रकाश राज, सीबीआई अधिकारी के रूप में राव रमेश और अन्य सहयोगी कास्ट मजबूत है।
क्यों देखें : यश के फैंस और ऐक्शन-ड्रामा सिनेमा के शौकीन यह फिल्म देख कर निराश नहीं होंगे।
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