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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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मूवी रिव्‍यू: बबली बाउंसर

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मधुर भंडारकर अपनी लीक से हटके और असल जिंदगी से प्रेरित फिल्‍मों के लिए जाने जाते हैं। 'पेज 3', 'फैशन' और 'चांदनी बार' जैसी गंभीर फिल्‍मों के बाद अब वह फीमेल बाउंसर्स की एक ऐसी कहानी लेकर पर्दे पर आए हैं, जिसके बारे में बहुत कम बात होती है। इस बार मधुर भंडारकर ने ड्रामा के साथ कॉमेडी को मिलाया और हल्‍के-फुल्‍के अंदाज में भी ऐसी गंभीर बात कह जाते हैं जो सीधे दिल में उतर जाती है। साथ में साउथ की स्‍टार तमन्‍ना भी हैं, जो इस फिल्‍म के बूते बॉलीवुड में अपनी धाक जमाने की तैयारी कर रही हैं।

'बबली बाउंसर' की कहानी
बबली तंवर दिल्‍ली से सटे हरियाणा के एक गांव से है। बबली को भी बाउंसर बनना है। बबली जिस हरियाणवी गांव से है, वो शहरभर के क्लबों को बाउंसर मुहैया करवाने के लिए मशहूर है। उसकी जिंदगी में विराज (अभिषेक सक्सेना) की एंट्री होती है और यूं समझ‍िए कि जीवन की दिशा बदल जाती है। वह दिल्ली के एक क्लब में बाउंसर की नौकरी करने का फैसला करती है। लेकिन जब विराज उसका दिल टूट तोड़ देता है तो वह खुद को शिक्षित करने और अपने करियर को गंभीरता से लेती है, जहां बबली को सच्ची खुशी मिलती है।

'बबली बाउंसर' का रिव्‍यू
मधुर भंडारकर पांच साल के गैप के बाद एक डायरेक्‍टर के तौर पर कमान संभाल रहे हैं। उन्‍होंने एक बार फिर, एक ऐसी कहानी चुनी है, जहां केंद्र में एक महिला है और उसके प्यार की तलाश है। एक ऐसी तलाश जो उसे जीवन का मकसद, ताकत और पहचान देती है। फिल्म देखते समय, आप महसूस कर सकते हैं कि इसे किसी ऐसे इंसान ने बनाया है, जिसे सिनेमा की धड़कन का पता है। जो इसे कर्मश‍ियल रूप देने के साथ ही कला की नब्‍ज को भी टटोलता रहता है। भले ही 'बबली बाउंसर' मधुर भंडारकर की पिछली नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली फिल्‍म जैसी नहीं है, लेकिन उन्‍होंने अपनी पकड़ खोने नहीं दी है और इसके लिए उनकी तारीफ होनी चाहिए।

'बबली बाउंसर' का ट्रेलर

'बबली बाउंसर' का सब्जेक्ट, इसकी तमाम खूबियों में से एक है। एक बाउंसर का जीवन, एक महिला बाउंसर को बात को छोड़ दें, तब भी देश की किसी फिल्म में अब तक ऐसी कहानी नहीं देखी गई है। फीमेल बाउंसर को हम कम ही देखते हैं, ऐसे में उनकी जिंदगी की परेशानियों से भी हम कम ही वाकिफ हैं। हालांकि, स्‍क्रीनप्‍ले राइटिंग थोड़ी लड़खड़ाती है। बबली को खुद की तलाश है और वह इस सफर में तमाम बाधाओं का सामना करती है, लेकिन वह बिना बहुत शोर मचाए उन्हें पार कर जाती है। वह एक ऐसी लड़की है, जो तय करती और उसे पाने के लिए जुट जाती है। उसे इस बात की परवाह नहीं है कि दुनिया क्‍या कहेगी। जिस पल उसका दिल टूटता है, वह खुद को आईने के सामने रखती है और अपनी दिशा बदलना शुरू कर देती है। यहां से कहीं न कहीं कहानी का दायरा को वास्तव में सीमित करती हैं। फिल्‍म के डायलॉग्‍स अच्‍छे हैं। हालांकि, वह थोड़ और बेहतर हो सकते थे। पूरी फिल्म में बबली कहती रहती है कि वह बहुत फनी है, लेकिन स्‍क्रीनप्‍ले और डायलॉग्‍स में कॉमिक वाला पंच कम लगता है।

'बबली बाउंसर' की कहानी तेज रफ्तार से आगे बढ़ती है। वह हल्‍के-फुल्‍के अंदाज में आपको हंसाती भी है। कहानी कहीं भी खुद को आगे बढ़ाने के लिए समय बर्बाद नहीं करती है। फिल्म को करीने से शूट किया गया है, जिसमें हरियाणा और दिल्ली को बड़ी खूबसूरती से कैमरे में कैद किया गया है। गाने अच्छे हैं और कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। तमन्ना के एक्शन मोड वाले कुछ सीन्‍स बढ़‍िया बने हैं। तमन्ना ने इन सीन्‍स में जान भी खूब डाली है।

फिल्‍म में जितने भी एक्‍टर्स हैं, उनमें तमन्ना सबसे ज्‍यादा चमकती हैं। उन्‍होंने लोकल हरियाणवी बोली और उनकी बॉडी लैंग्वेज को कैरेक्‍टर में बखूबी ढाल लिया है। बबली की भूमिका निभाने में वह बहुत सहज दिखती हैं। जबकि इमोशनल सीन्‍स में उनका काम देखकर आप उनके मुरीद हो सकते हैं। बबली के दोस्त कुकू के रूप में साहिल वैद ठीक हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि उनके पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। सौरभ शुक्ला स्क्रीन पर अच्छा काम करते ही हैं, हालांकि उन्‍हें इस फिल्‍म में थोड़ा और विस्‍तार दिया जा सकता था। अभिषेक सक्सेना, फिल्‍म में बबली के प्रेमी के रोल में हैं, वह थोड़ा और जोर लगा सकते थे।

मधुर भंडारकर ने अपनी पिछली फिल्‍मों से खुद के लिए ही बेंचमार्क बनाया है। उन्होंने फॉर्म नहीं खोया है। 'बबली बाउंसर' आपको अट्रेक्‍ट करती है। फिल्‍म में कुछ हल्के और मजेदार पल हैं, जो आपके करीब दो घंटे के सफर को बड़े मनोरंजक तरीके से बिताते में मदद करते हैं।

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