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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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मूवी रिव्यू : ऊंचाई

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कहते हैं दोस्ती का रिश्ता सब रिश्तों से ऊंचा होता है और इस रिश्ते की खूबसूरती को फिल्मकार सूरज बड़जात्या ने चार दोस्तों के अनकंडीशनल दोस्ती के जरिए जो ऊंचाई प्रदान की है, वो अपने आप में दिल को छू जाती है। फिल्म की शुरुआत में महानायक अमिताभ बच्चन का एक डायलॉग है, 'सुना है कि इस एवेरस्ट में हर सवाल का जवाब मिलता है, देखना ये है कि यहां हमें अपने कितने सवालों के जवाब मिलते हैं?' दुनिया से अलविदा ले चुके अपने दोस्त की एवेरेस्ट बेस कैंप तक जाने की अंतिम इच्छा को पूरा करने निकली दोस्तों की तिकड़ी की जिंदगियों में भी कई सवाल हैं और इस सफर में उन्हें उन सभी सवालों के जवाब मिलते हैं। जीवन और रिश्तों के प्रति एक नया नजरिया मिलता है और उसके जरिए दर्शक फिल्म के आखिर में एक नई उम्मीद और नया खयाल लेकर घर जाता है।

ऊंचाई की कहानी
कहानी एक मजेदार रोड ट्रिप के रूप में शुरू होती है, जहां जाना-माना बेस्ट सेलर लेखक अमित श्रीवास्तव अपने दो अन्य लंगोटिया (बोमन ईरानी) और ओम (अनुपम खेर) के साथ अपने दिवंगत दोस्त भूपेन (डैनी डेंग्जोंग्पा) को श्रद्धांजलि देने और उसकी अंतिम इच्छा को पूरी करने के लिए एवरेस्ट के बेस कैंप की ऊंचाई तक पहुंचने के लिए निकल पड़े हैं। इसके बाद कहानी फ्लैश बैक में जाती है। भूपेन की सालगिरह है और वो हमेशा से चाहता था कि उसके उम्रदराज दोस्त उसके साथ एवरेस्ट पर चलें, मगर बदकिस्मती से जन्मदिन की रात ही दिल का दौरा पड़ने के कारण भूपेन दुनिया से अलविदा ले लेता है। उसकी अंतिम विदाई के वक्त दोस्तों को पता चलता है कि भूपेन न केवल उन्हें एवरेस्ट के बेस कैंप की ऊंचाई का अहसास करना चाहता था बल्कि उसे अपने लड़कपन के उस प्यार के बारे में भी बताना चाहता था, जिसके कारण उसने जिंदगी भर शादी न करने का फैसला किया था। अब ये सभी दोस्त अपनी बढ़ती उम्र की चुनौतियों के साथ-साथ स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं, मगर दोस्त की खातिर असंभव को संभव बनाने के लिए निकल पड़ते हैं। इन सभी दोस्तों की अपनी-अपनी कहानियां भी हैं। महिलाओं के अंतर्वस्त्र की दुकान चलाने वाले जावेद और उसकी पतिव्रता पत्नी शबाना ( नीना गुप्ता) के बीच एक खूबसूरत रिश्ता है, उनकी एक शादीशुदा बेटी हीबा भी है, जबकि ओम की अपनी किताबों की दूकान है, जिसे वो किसी भी कीमत पर मॉल बनाने वालों को नहीं बेचना चाहता। उधर अमित सोशल मीडिया और यूथ के बीच काफी सेलिब्रेटेड राइटर है, मगर उसकी असल जिंदगी में भी कुछ ऐसे राज हैं, जो उसने अपनी इमेज के कारण छिपा कर रखे हैं। इस दिलचस्प रोड ट्रिप में उनके साथ सहयात्री के रूप में माला (सारिका) भी जुड़ती हैं, मगर तब इन दोस्तों को इस बात का अंदाजा भी नहीं होता कि माला का तार भी कहीं न कहीं उनकी जिंदगियों से जुड़ा हुआ है। इस दुर्गम सफर में उनकी कैप्टेन और मार्गदर्शक के रूप में उनका साथ देती हैं परिणीति चोपड़ा।

ऊंचाई का रिव्यू
निर्माता-निर्देशक सूरज बड़जात्या पूरे सात सालों बाद ऊंचाई के साथ प्रस्तुत हुए हैं। यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि उन्होंने राजश्री के पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ किसी भी समझौते को किए बगैर कहानी को रिलेवेंट बनाया है। दिलचस्प बात ये है कि निर्देशक इस यात्रा के जरिए किरदारों की इंटरनल जर्नी को भी बिना किसी भाषणबाजी के आत्मविशेलषण के जरिए निभा ले जाते हैं। कहानी भले बुजुर्ग चरित्रों के इर्द-गिर्द घूमती है, मगर उसके जरिए सूरज पीढ़ी की सोच और उनकी समस्यायों को भी उपेक्षित नहीं करते। माता-पिता-बच्चे, अंतर-पीढ़ीगत कलह को तर्कसंगत रूप से विश्लेषण किया जाता है। सूरज ने इस बात का पूरा खयाल रखा है कि जज्बाती पलों में जब आंखों से आंसू बहें, तो साथ ही ऐसे लाइट मोमेंट्स भी आएं, जहां आप हंसे या मुस्कुराए बिना नहीं रह पाते। शास्त्रों में लिखा है हमारे पर्वत, हमारे वेदों के प्रतीक हैं और ये तो हिमालय है, ', 'भले ही हम हिमालय के दर्शन न कर सके, पर हम ये न भूलें कि हमारे अंदर भी हिमालय की वो शक्ति है जिससे हम जीवन की हर ऊंचाई पार कर सकते हैं,' जैसे संवाद दिल की गहराइयों में उतर जाते हैं।फिल्म की तमाम खूबियों में एक कमी है, फिल्म की लंबाई। आज के दौर की फिल्मों के हिसाब से ये फिल्म काफी लंबी है। दिल्ली-आगरा-कानपुर-लखनऊ-गोरखपुर-काठमांडू की यात्रा दिल को छू लेने वाली और सुखद है। फर्स्ट हाफ दमदार है, मगर सेकंड हाफ में कहानी थोड़ी अव्यवस्थित नजर आती है। बैकग्राउंड स्कोर जबर्दस्त है। अमित त्रिवेदी के संगीत में इरशाद कामिल के गीत सोलफुल हैं। मनोज कुमार खटोई का कैमरा लेंस ने इस रोड ट्रिप के तमाम लोकेशन को खूबसूरत ढंग से दर्शाता है। विभिन्न स्थानों के खान-पान और संस्कृति के दर्शन भी होते हैं।

ऊंचाई: स्टारकास्ट और एक्टिंग
फिल्म में अभिनय का किला सबसे मजबूत है। हर कलाकार अपनी कास्ट में सटीक है और यही वजह है कि सभी के सुर सधे हुए नजर आते हैं। बिग बी के किरदार में कई परतें हैं और इस केंद्रीय किरदार को जब वे परदे पर निभाते हैं, तो उनके स्टाइल और स्वैग के साथ-साथ इमोशन की गहराई भी नजर आती है। तुनकमिजाज दोस्त की भूमिका में अनुपम खेर वाहवाही लूटी बिना नहीं रहते। नीना गुप्ता इस तरह की पारिवारिक भूमिकाओं की सफलता का पैमाना बन चुकी हैं। एक अरसे बाद सारिका को माला के रूप में देखना भला लगता है। बोमन ईरानी अपनी अभिनय की खास अदायगी से जावेद के किरदार को यादगार बना ले जाते हैं। डैनी छोटी-सी भूमिका में गहरी छाप छोड़ते हैं। परिणीति चोपड़ा अपनी भूमिका के साथ इंसाफ करती हैं।

क्यों देखें - दोस्ती और जीवन के मर्म को समझाने वाली इस फिल्म को जरूर देखें।

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