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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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मार्गरीटा विद अ स्ट्रॉ

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चंद्रमोहन शर्मा

कुछ फिल्मकार फिल्म
शुरू करने से पहले से तय कर लेते हैं कि उनकी फिल्म किस क्लास के लिए है, क्या उनकी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाई करके प्रॉडक्शन कॉस्ट वसूल पाएगी या फिर चंद मल्टिप्लेक्सों में दो-तीन शोज में दिखाई जाएगी। यकीनन, ऐसी फिल्मों के मेकर पहले से ही जानते हैं कि उनकी फिल्म देश- विदेश के फिल्म फेस्टिवल में जमकर सराही जाएगी, क्रिटिक्स की खूब वाहवाही बटोरेगी, कई अवॉर्ड अपने नाम करेगी। कुछ यही हाल मेकर शोनाली बोस की इस फिल्म का भी है। इस फिल्म को देखते वक्त मुझे दो फिल्में खासकर याद आईं। पहली फिल्म करीब दस साल पहले आई, कोंकणा सेन शर्मा को लेकर बनी अमु और संजय लीला भंसाली की मेगा बजट मल्टिस्टारर फिल्म गुजारिश। बॉक्स ऑफिस पर इन दोनों फिल्मों का अंजाम अच्छा नहीं रहा, चूंकि अमु सीमित बजट में बनी थी तो मेकर किसी तरह से अपनी प्रॉडक्शन कॉस्ट वसूलने में कामयाब रहे, दूसरी ओर रितिक रोशन और ऐश्वर्या रॉय जैसे टॉप महंगे स्टार्स को लेकर बनी गुजारिश की प्रॉडक्शन कंपनी को करोडों की चपत लगी। इन दोनों फिल्मों में लीड कलाकारों कोंकणा सेन शर्मा और रितिक रोशन के बेहतरीन अभिनय की हर किसी ने जमकर तारीफ की। शोनाली बोस की देश-विदेश के कई चर्चित फिल्म फेस्टिवल में जमकर सराही जाने वाली यह फिल्म कल्कि कोचलिन की अब तक रिलीज हुई सभी फिल्मों में ऐसी फिल्म है, जिसमें अपने निभाए लायला के किरदार पर कल्कि बरसों तक गर्व कर सकेगी।

कहानी : लायला (कल्कि कोचलिन) सेरेब्रल पाल्सी की बीमारी से ग्रस्त बिंदास लड़की है, जो बेशक वील चेयर पर वक्त गुजारती है, लेकिन उसके सपने किसी दूसरी युवती से ज्यादा ऊंचे है। लायला वीलचेयर पर ही अपने घर, कॉलेज और फ्रेंड्स के साथ वक्त गुजरती है। लायला का छोटा भाई मोनू (मल्हार खुशू), मां (रेवती) और पापा ( कुलजीत सिंह) लायला का खूब ध्यान रखते हैं। डीयू में स्टडी कर रही लायला को गाना लिखने का शौक है। कॉलेज में लायला की नीमा से दोस्ती है । लायला कॉलेज के इसी बैंड के लिए गाने लिखती हैं। लायला को एहसास होता है कि यहां कोई उसे प्यार नहीं करता, बल्कि उसे दूसरों से अलग समझा जाता है। अब अगली स्टडी के लिए लायला का ऐडमिशन न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी के एक कॉलेज में होता है और यहीं उसकी दोस्ती खानुम (सयानी गुप्ता) से होती है और धीरे धीरे इन्हें एक-दूसरे से इश्क होने लगता है। यहीं से लायला समलैंगिक रिश्तों के साथ-साथ पारिवारिक रिश्तों की कश्मकश में फंस जाती है।

ऐक्टिंग : यकीनन कल्कि कोचलिन ने लायला के किरदार में अपने अब तक के फिल्मी करियर की बेहतरीन ऐक्टिंग की है। वीलचेयर पर बैठीं कल्कि ने अपने डायलॉग को फेस एक्सप्रेशन के साथ जिस अंदाज में कैमरे के सामने पेश किया है उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। खानुम के किरदार में सयानी गुप्ता ने नेचरल ऐक्टिंग की है। कल्कि और सयानी पर फिल्माया इंटिमेट सीन गजब बन पड़ा है। लायला की मां के किरदार में रेवती ने अच्छा अभिनय किया है, पिता के रोल में सरदार कुलजीत सिंह खूब जमे हैं।

निर्देशन : शोनाली बोस की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपनी फिल्म में जहां सेरेब्रल पाल्सी (मस्तिष्क पक्षाघात ) की बीमारी से ग्रस्त लायला के लीड किरदार पर कैमरा ज्यादा फोकस किया तो वहीं उन्होंने कहीं भी किसी दूसरे किरदार को कमजोर नहीं होने दिया। लायला की कहानी के साथ-साथ शोनाली ने उसकी फैमिली के दूसरे सदस्यों मां भाई और उसके म्यूजिक लवर पापा जी के किरदार को भी जरूरी फुटेज दी है। इतना ही नहीं शोनाली ने सुस्त रफ्तार से आगे खिसकती कहानी को अपने निर्देशन के दम पर कहीं भी पटरी से नहीं उतरने दिया।

क्यों देंखें : पहले से देश-विदेश में कई अवॉर्ड अपने नाम कर चुकीं यह फिल्म उस क्लास की कसौटी पर खरा उतरने का दमखम रखती है जो कुछ नया और ऐसा देखना चाहते हैं जो बॉलिवुड फिल्मों में कम ही देखने को मिलता है। विदेशों में कई अवॉर्ड्स और दर्शकों की सराहना जीत चुकी है यह फिल्म। हां, यह समझ से परे है कि शोनाली ने अपनी इस फिल्म का ऐसा अजीबोगरीब टाइटल क्यों रखा जो आसानी से जुबां पर नहीं आता और शायद यही नाम दर्शकों की एक बहुत बड़ी क्लास को फिल्म से दूर करने का काम करता है।

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