Quantcast
Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
Viewing all articles
Browse latest Browse all 508

फुटलूज- अ स्टोरी ऑफ बिलॉन्गिंग (डॉक्यूमेंट्री)

$
0
0

अपना घर छोड़ना क्या होता है यह शायद आप तब तक नहीं समझ सकते जबतक कि आपको आपके देश से खदेड़ ना दिया जाए। जी हां, यहां देश से खदेड़ दिए जाने की बात हो रही है, शरणार्थी बनने को मजबूर करने वाली स्थितियों के लिए। शरणार्थियों के इतिहास में जाएंगे तो आपको बहुत सी ऐसी द्रवित करने वाली कहानियां मिलेंगी जिन्होंने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। सीरिया से यूरोप जाने वाले शरणार्थियों में एक तीन साल के बच्चे आयलान कुर्दी का शव भूमध्य सागर के तट पर देखकर पूरी दुनिया शर्मसार हो गई थी। अगर आपको इससे फर्क पड़ता है तो 'फुटलूज- अ स्टोरी ऑफ बिलॉन्गिंग' वही कहानी है जो शरणार्थियों को इंसानियत के चश्मे से देखती है न कि राजनीतिक चश्मे से। मुद्दा यह है कि जो आदमी आपसे केवल शरण मांग रहा है क्या केवल उसका धर्म देखकर इसका राजनीतिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए?

रिव्यू: इतिहास गवाह है कि राजनीति पर धर्म का प्रभाव सबसे ज्यादा रहा है। धर्म जो इंसान को केवल जीने का रास्ता नहीं दिखाता बल्कि उसकी सोच भी बदल सकता है। अंत से शुरू करते हैं। महात्मा गांधी कहते थे कि सभी धर्म सही हैं और सभी में कुछ खामियां भी हैं। उन्होंने कहा था कि उन्हें हिंदू धर्म में रहते हुए दूसरे धर्मों का सम्मान करना चाहिए। जो अच्छे हिंदू हैं वो अच्छे हिंदू बनें और जो मुसलमान हैं वो अच्छे मुसलमान। इस फिल्म का मुद्दा यहीं से शुरू होता है कि क्या आप जिस धर्म को मानते हैं उसकी इंसानियत आपको याद है? भारत में गांधी के नाम पर राजनीति करने वाले बहुत हैं लेकिन उनको फॉलो कितने लोग कर पाते हैं, इस पर डॉक्यूमेंट्री में तीखा प्रहार किया गया है।

गांधी आज भी दुनियाभर में भारत की पहचान हैं। यह और बात है कि जो लोग गांधी को नहीं मानते हैं उन्हें भी दुनियाभर में जाने के बाद गांधी के नाम का ही सहारा लेना पड़ता है। यह डॉक्यूमेंट्री लगभग 3 साल में बनाई गई है जिसमें भारत में म्यांमार से आए रोहिंग्या और पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों की परेशानियां बेलाग रखी गई हैं। शरणार्थी चाहे कहीं का भी हो वह बुरी स्थिति से अपने बेहतर भविष्य की तलाश में दूसरे देश जाता है और इसी मुद्दे पर यहां हर शरणार्थी से बात की गई है। मुख्य बात यह है कि कैसे राजनीति में धर्म के जरिए शरणार्थियों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, यह इसमें बहुत बेहतर तरीके से दिखाया गया है। देखें, डॉक्यूमेंट्री का ट्रेलर:

डॉक्यूमेंट्री सीधे रोहिंग्या की समस्या पर उनके इतिहास और वर्तमान स्थिति से बात करना शुरू करती है। ठीक उसी टाइमलाइन में पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों के साथ हुई नाइंसाफी भी दिखाई गई है। डॉक्यूमेंट्री में रोहिंग्या लोगों की स्थिति को साफ-साफ दिखाया गया है। ये लोग भारत से नागरिकता नहीं मांग रहे, बस शरण मांग रहे हैं। दूसरी तरफ, पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी भी हैं जो खुद बहुत बुरी स्थिति में हैं लेकिन वे भारत की नागरिकता मांग रहे हैं और उनका किस तरह राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है, यह इस डॉक्यूमेंट्री को देखने पर पता चलता है। फिल्म में नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी पर भी खुलकर बात की गई और उसके पक्ष को भी स्पष्ट तरीके से रखा गया है।

कुछ कमजोर कड़ियां हैं: यह डॉक्यूमेंट्री बहुत लंबी है। माना जा सकता है कि एक लंबे समय में फिल्माई गई है लेकिन फिर भी इसकी लंबाई आपको अखर जाएगी। शायद बहुत सी जगह टाइट एडिटिंग की जा सकती थी तो इसे कम से कम 15 मिनट तक छोटी किया जा सकता है। डायरेक्टर ने फिल्माया बहुत अच्छा है लेकिन बेहतर होता कि हर आदमी के वक्तव्य के साथ उसकी टाइमलाइन दी जाती। इससे पता चलता कि राजनीतिक माहौल बदलने के बाद लोगों की सोच में कितना और कैसे परिवर्तन आ रहा है। इस डॉक्यूमेंट्री में पहले ही सब कुछ साफ कर दिया गया है तो अंत में कुछ दृश्यों को दिखाने से बचा जा सकता था।

कुछ अच्छा भी है: यह डॉक्यूमेंट्री आपको शरणार्थियों के लिए अपनाया जाने वाला दोहरा रवैया खुलकर सामने रखती है। फिल्म में बहुत ऐसे सीन हैं जो आपको वास्तव में शरणार्थियों के लिए सोचने को मजबूर कर देते हैं। एक सीन में कुत्ते के बच्चे को कपड़े में सिमेटा हुआ शरणार्थी बच्चा, जली हुई रोहिंग्या बस्ती में अपना घर का सामान ढूंढती लड़की या अपने जले घर की अलमारी पीटता हुआ बच्चा जरूर एक इंसान के तौर पर आपको सोचने को मजबूर करेंगे। डॉक्यूमेंट्री की रिसर्च पत्रकार रोहित उपाध्याय ने की है जो उसके कॉन्टेंट में दिखती है। गुलशन सिंह का डायरेक्शन अच्छा है। खास है फिल्म में इस्तेमाल किया गया बैकग्राउंड म्यूजिक जो ताजदार जुनैद ने दिया है और तारीफ के काबिल है।

क्यों देखें: किसी भी राजनीतिक या धार्मिक चश्मे के बगैर इसे देख सकते हैं क्योंकि यहां बात ईमानदार इंसानियत की है धर्म की नहीं।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।


Viewing all articles
Browse latest Browse all 508

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>