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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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सड़क 2

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पल्लबी डे पुरकायस्थ
एक लंबे अर्से बाद महेश भट्ट ने डायरेक्टर के तौर पर 'सड़क 2' से वापसी की है। यह फिल्म 1991 में आई फिल्म 'सड़क' का सीक्वल है। हालांकि इस फिल्म की कहानी एकदम नई है और इसका पिछली फिल्म से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन रवि और पूजा का कैरेक्टर इस कहानी में भी है। पिछली फिल्म काफी पसंद की गई थी हालांकि इस बार फिल्म का ट्रेलर रिलीज होने के बाद ही इसे सुशांत केस के कारण काफी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ रहा है।

कहानी: आर्या (आलिया भट्ट) देसाई ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की अकेली वारिस है जिसकी मां शकुंतला देसाई की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो जाती है। इसके बाद आर्या अपनी मां की हत्या का बदला लेकर उन्हें न्याय देने के मिशन पर निकलती है। आर्या अपनी मां की आखिरी इच्छा पूरी करना चाहती है और इसके लिए उसे कैलाश जाना है और यहीं से फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है। आर्या की सौतेली मां यानी कि उसकी मौसी नंदिनी मां (प्रियंका बोस) और पिता योगेश (जिशू सेनगुप्ता) एक ढोंगी धर्मगुरु ज्ञान प्रकाश (मकरंद देशपांडे) के प्रभाव में हैं लेकिन आर्या उसकी असलियत सामने लाना जाहती है। आर्या को लगता है कि उसकी मां की हत्या के पीछे इसी ज्ञान प्रकाश का हाथ है। इसके लिए आर्या ढोंगी धर्मगुरुओं के खिलाफ एक सोशल मीडिया कैंपेन चलाती है। आर्या एक अजीब से सोशल मीडिया ट्रोल और म्यूजिशन विशाल (आदित्य रॉय कपूर) से भी प्यार करती है और उसी के साथ अपने 21वें जन्मदिन पर कैलाश जाती है। इसके लिए आर्या ने पूजा ट्रैवेल्स से गाड़ी बुक की है जिसका ड्राइवर रवि (संजय दत्त) है। रवि की पत्नी पूजा (पूजा भट्ट) अब इस दुनिया में नहीं है और वह केवल उसकी यादों पर ही जी रहा है। सफर में रवि और आर्या की दोस्ती होती है, इसके बाद रवि भी आर्या के मिशन में उसका साथ देता है।

रिव्यू: 'सड़क 2' की कहानी ही बेहद उदासीपूर्ण माहौल से शुरू होती है जिसमें रवि अपनी मरहूम पत्नी की यादों में जी रहा है। वह आत्महत्या की कोशिश करता है लेकिन कर नहीं पाता। आर्या भी तूफान की तरह रवि की जिंदगी में आती है। कहानी में जल्दी-जल्दी ट्विस्ट आते हैं और इन्हीं में फिल्म का पूरा स्क्रीनप्ले पटरी से उतर जाता है। फिल्म के डायलॉग्स पुराने से लगते हैं और ऑडियंस को बोर करने लगते हैं। ऐसा लगता है कि मेकर्स ने फिल्म को लिखने में ज्यादा मेहनत नहीं की है और उन्हें लगता है कि ऑडियंस नॉस्टेलजिया पर ही फिल्म देख लेगी। नई ऑडियंस के एक बड़े वर्ग ने 'सड़क' का पहला पार्ट देखा भी नहीं है। फिल्म के विलन जरूरत से ज्यादा ड्रामा करते लगते हैं और ऐक्शन नकली।

अपनी बेहतरीन ऐक्टिंग के लिए जानी जाने वाली आलिया भट्ट कुछ इमोशनल सीन के अलावा इस बार निराश करती हैं। आदित्य रॉय कपूर को करने के लिए कुछ खास मिला नहीं है। संजय दत्त के कुछ इमोशनल सीन अच्छे हैं लेकिन उनके किरदार की भी अपनी सीमाएं हैं। आलिया के पिता में के किरदार में जिशू सेनगुप्ता और ढोंगी धर्मगुरु के किरदार में मकरंद देशपांडे जरूर प्रभाव छोड़ते हैं लेकिन मकरंद देशपांडे जैसे मंझे हुए कलाकार से भी ओवर ऐक्टिंग करवा ली गई है और बहुत से अच्छे सीन भी अजीब लगने लगते हैं। एक बेहतरीन डायरेक्टर के तौर पर महेश भट्ट ने अच्छी फिल्में बनाई हैं लेकिन इस बार वह पूरी तरह निराश करते हैं।

क्यों देखें: पुरानी 'सड़क' के नॉस्टैलजिया में अभी तक हैं तो देख सकते हैं।

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