कहानी: 'लूडो' के ट्रेलर को देखकर जो उत्सुकता बनी थी, कहानी बिल्कुल उसी उत्सुकता को पूरी करती है। एकसाथ कई कहानियां हैं। कई कैरेक्टर्स हैं। सभी की जिंदगी अपनी-अपनी रफ्तार से अपनी-अपनी दिशा में बढ़ रही है। लेकिन कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, सभी कैरेक्टर्स और उनकी जिंदगी एक-दूसरे से टकराती है। सभी कहानियों का एक केंद्र हैं सत्तु भैया, जो गैंगस्टर हैं। सबकुछ ठीक वैसे ही है, जैसे लूडो के खेल में होता है।
रिव्यू: अनुराग बसु की 'लूडो', कहानियों का कॉकटेल है। मसाला है, कॉमेडी का, रोमांस का, ऐक्शन का और ड्रामा का। जितनी कहानी उतने पात्र और उतने ही अलग-अलग जॉनर। सत्तु भैया (पंकज त्रिपाठी) गैंगस्टर हैं। उनकी अपनी कहानी है। लेकिन इसके समांतर कई कहानियां हैं। आकाश (आदित्य रॉय कपूर) और अहाना (सान्या मल्होत्रा) एक-दूसरे के साथ हैं। प्यार करते हैं। नए जमाने का प्यार है। लेकिन दोनों के होश तब उड़ जाते है, जब पता चलात है कि उनका एक सेक्स वीडियो क्लिप इंटरनेट पर वायरल हो रहा है। कुछ दिन बाद अहाना की शादी भी होनी है। इसलिए उससे पहले सब ठीक करना है।
बिट्टू (अभिषेक बच्चन) क्रिमिनल है। जेल से छह साल बाद रिहा हो रहा है। रिहाई के बाद उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी और बेटी अब अपनी-अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए हैं। वह इसी एहसास के साथ आगे बढ़ता है। तीसरी कहानी पिंकी (फातिमा सना शेख) की है। उसे पता चलता है कि उसका पति हत्यारा है। वह भाग जाती है। अपने बचपन के प्यार आलोक उर्फ अलु (राजकुमार राव) के पास। इस उम्मीद में कि वह उसकी मदद करेगा।
इन सभी से अलग कहीं एक कहानी राहुल (रोहित सर्राफ) की है। सेल्समैन है और उसके सथ एक नर्स है शीजा (पर्ली माने), दोनों अपने वर्कप्लेस पर यातनाएं झेल रहे हैं। लेकिन एक दिन अचानक उनकी जिंदगी बदल जाती है।
'लूडो' मजेदार है। बिल्कुल उसी खेल की तरह जो हम बचपन से खेल रह हैं। हर कोई अपने रास्ते चल रहा है, लेकिन सभी के रास्ते एक-दूसरे को काटते हैं। फिल्म भी ऐसे ही चलती है। दिलचस्पी के साथ आप देखना शुरू करते हैं। एक कैरेक्टर की कहानी शुरू होती है, उसका अगला-पिछला बताया जाता है और फिर दूसरे की कहानी शुरू होती है। लेकिन धीरे-धीरे यह किसी पहेली जैसी उलझ जाती है। कई सारे कैरेक्टर और कई सारी कहानियों को बांधने की कोशिश में अनुराग बसु डोर की कुछ सिराओं पर कमजोर पकड़ के कारण यहां थोड़ा चूकते हैं। हालांकि, उन्होंने सभी सिराओं को जोड़कर रखने की पूरी कोशिश की है।
अनुराग बसु की फिल्म है, इसलिए उनकी छाप हर जगह दिखती है। फिल्म में डार्क कॉमेडी भी है और प्यारा रोमांस भी। प्रीतम का म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर भी फिल्म के माकूल है और माहौल बनाने में कसर नहीं छोड़ता।नीले और लाल रंगों से अनुराग बसु का प्रेम इस फिल्म में दकमता है।
फिल्म में लंबी चौड़ी स्टारकास्ट है। एक पर एक मंझे हुए ऐक्टर हैं और वो निराश भी नहीं करते। पंकज त्रिपाठी ने एक बार फिर दिल लूट लिया है। एक गैंगस्टर के रोल में वह अपनी छाप छोड़ते हैं। राजकुमार राव फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती के फैन बने हैं और वह इसे एंजॉय करते हैं। अभिषेक बच्चन ने भी बिट्टू के रूप में पर्दे पर अपनी पकड़ मजबूत की है। जबकि फातिमा सना शेख का किरदार भी नजरें खींचता है। सान्या मल्होत्रा और आदित्य रॉय कपूर में अपने-अपने हिस्से को पूरी ईमानदारी से निभाया है। रोहित सर्राफ के पास डायलॉग्स कम हैं, लेकिन वह पर्ली माने के साथ अलग की रंग में दिखते हैं।
'लूडो' में ऐसे कई मौके हैं, जब आप रोमांच से भर जाते हैं। कई ऐसे मौके हैं, जब आप खूब हंसते हैं। लेकिन कई ऐसे भी मौके हैं, जब आपको यह बोझिल लगने लगता है। अनुराग बसु स्क्रीनप्ले को टाइट रखने में थोड़ी और मेहनत कर सकते थे। लेकिन यदि आप संयम रखते हैं और फिल्म में आगे बढ़ते हैं तो क्लाइमेक्स दिल खुश करता है। हर कहानी की डोर को बड़ी सफाई से अंत में बांधा गया है। कुछ सरप्राइज भी हैं और कुछ संदेश भी। यह 'लूडो' अंत में यही कहता है कि कभी किसी को इस बात पर नहीं आंकना चाहिए कि उसने क्या चुना है या क्या निर्णय किया है।
रिव्यू: अनुराग बसु की 'लूडो', कहानियों का कॉकटेल है। मसाला है, कॉमेडी का, रोमांस का, ऐक्शन का और ड्रामा का। जितनी कहानी उतने पात्र और उतने ही अलग-अलग जॉनर। सत्तु भैया (पंकज त्रिपाठी) गैंगस्टर हैं। उनकी अपनी कहानी है। लेकिन इसके समांतर कई कहानियां हैं। आकाश (आदित्य रॉय कपूर) और अहाना (सान्या मल्होत्रा) एक-दूसरे के साथ हैं। प्यार करते हैं। नए जमाने का प्यार है। लेकिन दोनों के होश तब उड़ जाते है, जब पता चलात है कि उनका एक सेक्स वीडियो क्लिप इंटरनेट पर वायरल हो रहा है। कुछ दिन बाद अहाना की शादी भी होनी है। इसलिए उससे पहले सब ठीक करना है।
बिट्टू (अभिषेक बच्चन) क्रिमिनल है। जेल से छह साल बाद रिहा हो रहा है। रिहाई के बाद उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी और बेटी अब अपनी-अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए हैं। वह इसी एहसास के साथ आगे बढ़ता है। तीसरी कहानी पिंकी (फातिमा सना शेख) की है। उसे पता चलता है कि उसका पति हत्यारा है। वह भाग जाती है। अपने बचपन के प्यार आलोक उर्फ अलु (राजकुमार राव) के पास। इस उम्मीद में कि वह उसकी मदद करेगा।
इन सभी से अलग कहीं एक कहानी राहुल (रोहित सर्राफ) की है। सेल्समैन है और उसके सथ एक नर्स है शीजा (पर्ली माने), दोनों अपने वर्कप्लेस पर यातनाएं झेल रहे हैं। लेकिन एक दिन अचानक उनकी जिंदगी बदल जाती है।
'लूडो' मजेदार है। बिल्कुल उसी खेल की तरह जो हम बचपन से खेल रह हैं। हर कोई अपने रास्ते चल रहा है, लेकिन सभी के रास्ते एक-दूसरे को काटते हैं। फिल्म भी ऐसे ही चलती है। दिलचस्पी के साथ आप देखना शुरू करते हैं। एक कैरेक्टर की कहानी शुरू होती है, उसका अगला-पिछला बताया जाता है और फिर दूसरे की कहानी शुरू होती है। लेकिन धीरे-धीरे यह किसी पहेली जैसी उलझ जाती है। कई सारे कैरेक्टर और कई सारी कहानियों को बांधने की कोशिश में अनुराग बसु डोर की कुछ सिराओं पर कमजोर पकड़ के कारण यहां थोड़ा चूकते हैं। हालांकि, उन्होंने सभी सिराओं को जोड़कर रखने की पूरी कोशिश की है।
अनुराग बसु की फिल्म है, इसलिए उनकी छाप हर जगह दिखती है। फिल्म में डार्क कॉमेडी भी है और प्यारा रोमांस भी। प्रीतम का म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर भी फिल्म के माकूल है और माहौल बनाने में कसर नहीं छोड़ता।नीले और लाल रंगों से अनुराग बसु का प्रेम इस फिल्म में दकमता है।
फिल्म में लंबी चौड़ी स्टारकास्ट है। एक पर एक मंझे हुए ऐक्टर हैं और वो निराश भी नहीं करते। पंकज त्रिपाठी ने एक बार फिर दिल लूट लिया है। एक गैंगस्टर के रोल में वह अपनी छाप छोड़ते हैं। राजकुमार राव फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती के फैन बने हैं और वह इसे एंजॉय करते हैं। अभिषेक बच्चन ने भी बिट्टू के रूप में पर्दे पर अपनी पकड़ मजबूत की है। जबकि फातिमा सना शेख का किरदार भी नजरें खींचता है। सान्या मल्होत्रा और आदित्य रॉय कपूर में अपने-अपने हिस्से को पूरी ईमानदारी से निभाया है। रोहित सर्राफ के पास डायलॉग्स कम हैं, लेकिन वह पर्ली माने के साथ अलग की रंग में दिखते हैं।
'लूडो' में ऐसे कई मौके हैं, जब आप रोमांच से भर जाते हैं। कई ऐसे मौके हैं, जब आप खूब हंसते हैं। लेकिन कई ऐसे भी मौके हैं, जब आपको यह बोझिल लगने लगता है। अनुराग बसु स्क्रीनप्ले को टाइट रखने में थोड़ी और मेहनत कर सकते थे। लेकिन यदि आप संयम रखते हैं और फिल्म में आगे बढ़ते हैं तो क्लाइमेक्स दिल खुश करता है। हर कहानी की डोर को बड़ी सफाई से अंत में बांधा गया है। कुछ सरप्राइज भी हैं और कुछ संदेश भी। यह 'लूडो' अंत में यही कहता है कि कभी किसी को इस बात पर नहीं आंकना चाहिए कि उसने क्या चुना है या क्या निर्णय किया है।
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