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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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सूरज पे मंगल भारी

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कोरोना काल में पूरे 9 महीने बाद किसी फिल्म का थिएटर में आना बॉलिवुड ही नहीं बल्कि फिल्म प्रेमियों के लिए भी राहत और खुशी का सबब है और ये पहल हुई है निर्देशक अभिषेक शर्मा निर्देशित सूरज पे मंगल भारी से। वाकई निर्देशक की तारीफ करनी होगी कि कोरोना काल में जब जाने-माने फिल्मकारों ने अपनी बड़ी फिल्मों को ओटीटी पर रिलीज करने का आसान रास्ता चुना, तो अभिषेक ने फिल्म को थिएटर में लाने का साहस किया। सभी जानते हैं कोविड 19 के चलते कई बड़ी फिल्मों को तीसरे पर्दे का दामन पकड़ना पड़ा, मगर सूरज पे मंगल भारी को दर्शक 15 नवंबर को सिनेमाघरों में जाकर देख सकते हैं। कोरोना के अवसाद और जद्दोजहद के बाद दर्शकों को दिवाली पर एक हलकी-फुलकी पारिवारिक मनोरंजक कॉमिडी फिल्म की जरूरत थी और यह फिल्म कुछ हद तक उस जरूरत को पूरा करती नजर आती है।

कहानी शुरू होती है 90 के दशक से, जहां मंगल राणे (मनोज बाजपेयी) एक मैरिज डिटेक्टिव है। उसे रास नहीं आता कि लड़कों का घर बसे, इसलिए वह अपने तौर पर जासूसी करके शादी करने के इच्छुक लड़कों के नुक्स निकालता है और उनकी शादियां तुड़वा देता है। असल में उसकी अपनी प्रेमिका (नेहा पेंडसे) की शादी उसके बजाय किसी और से हो गई थी और वह अपनी शादी से खुश नहीं थी। यही वजह है कि मंगल राणे ने सारी शहर की लड़कियों को गलत लड़कों से बचाने का जिम्मा ले लिया है। मगर कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब वह सूरज (दिलजीत दोसांज) की शादी तुड़वा देता है। उधर बदला लेने पर उतारू सूरज को मंगल की बहन तुलसी (फातिमा सना शेख) से ही प्यार हो जाता है। अब मंगल अपनी बहन तुलसी और सूरज को दूर करने के लिए कैसे प्रपंच रचता है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

'तेरे बिन लादेन' और 'परमाणु:द स्टोरी ऑफ पोखरण' के निर्देशक अभिषेक शर्मा की इस फिल्म का फर्स्ट हाफ सुस्त है और इसका कारण है फिल्म के नब्बे के दशक का बैकड्रॉप। कहानी में आज के दौर की तरह 'इंस्टंट' कुछ भी नहीं है। प्यार की पेंगें भरने के लिए स्मार्टफोन की जगह पेजर है। मगर सेकंड हाफ में फिल्म अपनी रफ्तार पकड़ती है और मनोरंजन के मौके भी देती है। फूहड़ता से परे साफ-सुथरी कॉमिडी फिल्म की विशेषता है, मगर विषय के अनुरूप कहानी में कॉमिडी का तड़का और जोरदार हो सकता था। डायलॉग्स में अगर और ज्यादा पंचेज होते, तो फिल्म और मजेदार बन सकती थी। इसके बावजूद कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान ओटीटी पर जो दर्शक डार्क कॉन्टेंट देखकर थक गए हों, उनके लिए यह लाइट मनोरंजन साबित हो सकती है।

कलाकारों का अभिनय फिल्म का सशक्त पहलू है। मनोज बाजपेयी जैसे समर्थ अभिनेता ने अपने अभिनय की विशिष्ट शैली से मंगल के किरदार को भारी रखा है, तो दिलजीत दोसांझ भी सूरज के चरित्र में खासे चमके हैं। फातिमा सना शेख ने खूबसूरत लगी हैं और वे अपनी भूमिका को निभा ले गईं हैं। मराठी माणूस की भूमिका में अन्नू कपूर ने खूब रंग जमाया है। सुप्रिया पिलगांवकर, मनोज पाहवा, सीमा पाहवा, विजय राज और नेहा पेंडसे जैसी सहयोगी कास्ट ने खूब साथ दिया है।

क्यों देखें-साफ-सुथरी कॉमिडी फिल्मों के शौकीन यह फिल्म देख सकते हैं। सिनेमाघरों में हर तरह के प्रीकॉशंस और सोशल डिस्टेंसिंग के बीच दर्शक चाहें तो परिवार संग जाकर यह फिल्म देख सकते हैं।

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