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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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बीहड़ का बागी

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चंबल के बीहड़ हमेशा से अपने डाकुओं के किस्सों के लिए मशहूर रहे हैं। चंबल के खूंखार डाकुओं की चर्चा विदेशों तक रही है। अब इस मुद्दे पर फ्री ओटीटी प्लैटफॉर्म MX Player अपनी ऑरिजनल वेब सीरीज 'बीहड़ का बागी' लेकर आया है। केवल 5 एपिसोड वाली इस सीरीज में बताया गया है कि कैसे एक सामान्य आदमी डकैत बनकर गरीबों का मसीहा बनता है और बाद में विलन का रूप ले लेता है।

कहानी: 'बीहड़ का बागी' सच्ची घटनाओं से प्रेरित है। कहानी साल 1998 से शुरू होती है जबकि बुंदेलखंड के चित्रकूट के रहने वाले सीधे-साधे आदमी शिव कुमार के पिता और बहन को गांव के दबंग लोग दिनदहाड़े काटकर मार देते हैं। शिव कुमार तुरंत ही अपनों की मौत का बदला लेने निकल जाता है और वह लगातार गांव के दबंगों के पूरे परिवार को खत्म कर देता है। इसके बाद शिव कुमार डाकुओं के गैंग में शामिल हो जाता है। हालांकि शिव कुमार अन्य डाकुओं जैसा नहीं है। उसके सिद्धांत और गरीबों की मदद करने जैसी बातें उसे गैंग का लीडर और गरीबों का मसीहा बना देती हैं। इसी बीच राजनीतिक दल शिव कुमार की लोकप्रियता का फायदा उठाना चाहते हैं जिससे शिव कुमार के अंदर घमंड आ जाता है और कहानी एकदम से पूरी तरह तब बदल जाती है जबकि शिव कुमार हीरो से विलन बन जाता है।

रिव्यू: बुंदेलखंड के बीहड़ों के डाकुओं पर काफी सारी फिल्में बन चुकी हैं। इस बार डकैतों की यह कहानी लिखी है रीतम श्रीवास्तव ने जो पहले भी एमएक्स प्लेयर की सुपरहिट सीरीज 'रक्तांचल' लिख चुके हैं। इस सीरीज के साथ बिना किसी ग्लैमर के साथ लगभग वैसा ही ट्रीटमेंट किया गया है जैसा शेखर कपूर ने 'बैंडिट क्वीन' के साथ किया था और जैसा तिग्मांशु धूलिया ने 'पान सिंह तोमर' के साथ किया। शायद इसीलिए सीरीज के कई सीन आपको इन फिल्मों की याद दिला देंगे। सीरीज का पूरा बोझ इस बार शिव कुमार के रूप में दिलीप आर्य पर रहा है जिन्होंने अपना काम बखूबी निभाया है। भ्रष्ट नेता जगत प्रभु के किरदार में रवि खानविलकर, एसपी अजय सिन्हा के किरदार में इंद्रनील भट्टाचार्य और डाकू के किरदार में जीतू शास्त्री ने बढ़िया ऐक्टिंग की है।

इस सीरीज में लॉरा मिश्रा और पारुल बंसल एकदम डी-ग्लैम अवतार में जमीं हैं और इनके किरदार को थोड़ा और लंबा किया जा सकता था। विनोद नाहरडीह और शशिभूषण चतुर्वेदी के किरदार भी काफी सोच-समझकर लिखे गए हैं। डायरेक्टर के तौर पर रीतम श्रीवास्तव की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने बिल्कुल बुंदेलखंड के माहौल को फील करते हुए इस सीरीज का डायरेक्शन किया है।

क्यों देखें: बुंदेलखंड के डाकुओं की कहानियों में इंट्रेस्ट हो और कम समय में अच्छी सीरीज देखना चाहते हों तो इसे देख सकते हैं।

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