एक अरसे से कंगना रनौत की जो फिल्म 'थलाइवी' सुर्खियों में थी, अब सिनेमाघरों को गुलजार करने को तैयार है। जैसा कि सभी जानते हैं कि यह साउथ की जानी-मानी अभिनेत्री और तमिलनाडु की 6 बार सीएम बन चुकी लीजेंडरी हस्ती जयललिता की बायॉपिक है। फिल्म के ट्रेलर को काफी तारीफ मिली है और फिल्म भी आपको निराश नहीं करती। अपने फॉलोवर्स के लिए अम्मा, अपने मेंटॉर के लिए अमु और अपनी पार्टी के लिए थलाइवी (लीडर) कहलाने वाली जयललिता के हर लेयर में कंगना बीस साबित होती हैं।
कहानी: फिल्म की कहानी असेंबली की उस जगह प्रसिद्ध राजनीतिक घटनाक्रम से होती है, जब जयललिता (कंगना रनौत) को करुणा (नासर) की पार्टी के लोग गाली-गलौच करके जमीन पर गिरा कर उसकी साड़ी का पल्लू खींचकर बेइज्जत करते है। उस पल चोट खाई नागिन की तरह फुंफकारती हुई जयललिता चुनौती देती है कि वह इसी विधानसभा में मुख्यमंत्री बनकर लौटेंगी। उसके बाद कहानी अतीत में जाती है, जहां किशोरी जया स्कूल छोड़ने के बाद अपनी मां संध्या (भाग्यश्री) के साथ फिल्मों में हीरोइन बनने को प्रयासरत हैं। मध्यांतर तक स्टोरी जया के फिल्मों की नायिका बनने और साउथ सुपरस्टार एमजी रामचंद्रन (अरविंद स्वामी) के साथ की प्रेम कहानी को दर्शाती है। इंटरवल के बाद कहानी में जयललिता के अम्मा बन कर राजनीतिक पटल पर उभरने और शीर्ष तक पहुंचने की दास्तान को दर्शाया गया है। इस दास्तान में जयललिता के फर्श से लेकर अर्श तक पहुंचने का सफर है। एक स्त्री के आत्मसम्मान और पुरुषवादी मानसिकता का चित्रण है, जिसमें जयललिता को फिल्मों में ही नहीं बल्कि राजनीतिक करियर में भी लगातार हीनता और अवरोध का सामना करना पड़ता है, मगर कैसे वह अपने निस्वार्थ प्रेम की डोर पकड़कर अपने जुनून के बलबूते पर सीएम की कुर्सी पर विराजमान होती है।
रिव्यू: इसमें कोई शक नहीं कि निर्देशक विजय ने इस लीजेंडरी चरित्र को पर्दे पर भी लार्जर दैन लाइफ के रूप में ही चित्रित किया है। सभी जानते हैं कि तमिलनाडु की अम्मा कहलाने वाली जयललिता अपने राजनीतिक करियर में भ्रष्टाचार के आरोपों और विवादों में भी खूब घिरी रहीं, मगर जैसा कि फिल्मकार अक्सर करते हैं, बायॉपिक बनाते समय वे विवादास्पद पहलुओं को दर्शाने से कन्नी काट जाते हैं। यहां भी निर्देशक ने वही किया। उनका सारा जोर एमजीआर और जयललिता की प्योर लवस्टोरी और उसके बाद उनके राजनीतिक करियर के उत्कर्ष पर रहा। निर्देशक ने कहानी के घटनाक्रम को तेजी से आगे बढ़ाया है। वे 80-90 के दशक के बैकड्रॉप को बखूबी दर्शा ले जाते हैं। राजनीतिक रैलियों और एमजीआर के निधन के वक्त भीड़ वाले दृश्य दमदार बन पड़े हैं। फिल्म में कंगना के किरदार को सशक्त बनाने के लिए खूब डायलॉगबाजी रखी गई है। कुछ डायलॉग आपको याद भी रह जाते हैं। विजेंद्र प्रसाद का संगीत निराश करता है। फिल्म की कास्टिंग मजबूत है और उस दौर को दर्शाने में नीता लुल्ला के कॉस्ट्यूम मददगार साबित होते हैं।
ऐक्टिंग: आप जब पर्दे जयललिता के रूप में कंगना को देखते हैं, तो आपको अंदाजा हो जाता है कि इस किरदार में फिल्मकार की पहली पसंद कंगना क्यों रही होंगी। कंगना ने जयललिता के रूप में पावरपैक्ड परफॉर्मेंस दी है। किशोरी जया की अल्हड़ता हो या अम्मा का रौद्र रूप, हर परत को कंगना बखूबी निभा ले जाती है। अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए वे शेरनी की तरह दहाड़ती हैं, तो अपने प्रेमी के लिए सेल्फलेस लव दर्शाती हैं। उनके नोकदार ब्लाउज, गौड़ी मेकअप, फूलों से सजा हेयर स्टाइल और बॉडी लैंग्वेज 70-80 की साउथ नायिका को खूबसूरती से साकार करता है। एमजीआर के रूप में अरविंद स्वामी ने उनका खासा साथ दिया है। वे परदे पर एमजीआर को जीवंत कर ले जाते हैं। करुणानिधि की भूमिका में नासर ख़ूबतर रहे हैं, मगर उनके हिस्से में ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं आया। एमजीआर के सहयोगी आरएमवी के किरदार में राज अर्जुन फिल्म का सरप्राइज पैकेज साबित हुए हैं। उनका सशक्त अभिनय फिल्म का प्लस पॉइंट है। कंगना की मां की भूमिका में भाग्यश्री ने अपनी भूमिका को खूबसूरती से निभाया है। मधु एमजीआर की पत्नी की छोटी-सी भूमिका में नजर आती हैं। सहयोगी कास्ट कहानी के मुताबिक है।
क्यों देखें: कंगना की दमदार परफॉर्मेंस और जयललिता की जिंदगी को जानने की उत्सुकता के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है।
कहानी: फिल्म की कहानी असेंबली की उस जगह प्रसिद्ध राजनीतिक घटनाक्रम से होती है, जब जयललिता (कंगना रनौत) को करुणा (नासर) की पार्टी के लोग गाली-गलौच करके जमीन पर गिरा कर उसकी साड़ी का पल्लू खींचकर बेइज्जत करते है। उस पल चोट खाई नागिन की तरह फुंफकारती हुई जयललिता चुनौती देती है कि वह इसी विधानसभा में मुख्यमंत्री बनकर लौटेंगी। उसके बाद कहानी अतीत में जाती है, जहां किशोरी जया स्कूल छोड़ने के बाद अपनी मां संध्या (भाग्यश्री) के साथ फिल्मों में हीरोइन बनने को प्रयासरत हैं। मध्यांतर तक स्टोरी जया के फिल्मों की नायिका बनने और साउथ सुपरस्टार एमजी रामचंद्रन (अरविंद स्वामी) के साथ की प्रेम कहानी को दर्शाती है। इंटरवल के बाद कहानी में जयललिता के अम्मा बन कर राजनीतिक पटल पर उभरने और शीर्ष तक पहुंचने की दास्तान को दर्शाया गया है। इस दास्तान में जयललिता के फर्श से लेकर अर्श तक पहुंचने का सफर है। एक स्त्री के आत्मसम्मान और पुरुषवादी मानसिकता का चित्रण है, जिसमें जयललिता को फिल्मों में ही नहीं बल्कि राजनीतिक करियर में भी लगातार हीनता और अवरोध का सामना करना पड़ता है, मगर कैसे वह अपने निस्वार्थ प्रेम की डोर पकड़कर अपने जुनून के बलबूते पर सीएम की कुर्सी पर विराजमान होती है।
रिव्यू: इसमें कोई शक नहीं कि निर्देशक विजय ने इस लीजेंडरी चरित्र को पर्दे पर भी लार्जर दैन लाइफ के रूप में ही चित्रित किया है। सभी जानते हैं कि तमिलनाडु की अम्मा कहलाने वाली जयललिता अपने राजनीतिक करियर में भ्रष्टाचार के आरोपों और विवादों में भी खूब घिरी रहीं, मगर जैसा कि फिल्मकार अक्सर करते हैं, बायॉपिक बनाते समय वे विवादास्पद पहलुओं को दर्शाने से कन्नी काट जाते हैं। यहां भी निर्देशक ने वही किया। उनका सारा जोर एमजीआर और जयललिता की प्योर लवस्टोरी और उसके बाद उनके राजनीतिक करियर के उत्कर्ष पर रहा। निर्देशक ने कहानी के घटनाक्रम को तेजी से आगे बढ़ाया है। वे 80-90 के दशक के बैकड्रॉप को बखूबी दर्शा ले जाते हैं। राजनीतिक रैलियों और एमजीआर के निधन के वक्त भीड़ वाले दृश्य दमदार बन पड़े हैं। फिल्म में कंगना के किरदार को सशक्त बनाने के लिए खूब डायलॉगबाजी रखी गई है। कुछ डायलॉग आपको याद भी रह जाते हैं। विजेंद्र प्रसाद का संगीत निराश करता है। फिल्म की कास्टिंग मजबूत है और उस दौर को दर्शाने में नीता लुल्ला के कॉस्ट्यूम मददगार साबित होते हैं।
ऐक्टिंग: आप जब पर्दे जयललिता के रूप में कंगना को देखते हैं, तो आपको अंदाजा हो जाता है कि इस किरदार में फिल्मकार की पहली पसंद कंगना क्यों रही होंगी। कंगना ने जयललिता के रूप में पावरपैक्ड परफॉर्मेंस दी है। किशोरी जया की अल्हड़ता हो या अम्मा का रौद्र रूप, हर परत को कंगना बखूबी निभा ले जाती है। अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए वे शेरनी की तरह दहाड़ती हैं, तो अपने प्रेमी के लिए सेल्फलेस लव दर्शाती हैं। उनके नोकदार ब्लाउज, गौड़ी मेकअप, फूलों से सजा हेयर स्टाइल और बॉडी लैंग्वेज 70-80 की साउथ नायिका को खूबसूरती से साकार करता है। एमजीआर के रूप में अरविंद स्वामी ने उनका खासा साथ दिया है। वे परदे पर एमजीआर को जीवंत कर ले जाते हैं। करुणानिधि की भूमिका में नासर ख़ूबतर रहे हैं, मगर उनके हिस्से में ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं आया। एमजीआर के सहयोगी आरएमवी के किरदार में राज अर्जुन फिल्म का सरप्राइज पैकेज साबित हुए हैं। उनका सशक्त अभिनय फिल्म का प्लस पॉइंट है। कंगना की मां की भूमिका में भाग्यश्री ने अपनी भूमिका को खूबसूरती से निभाया है। मधु एमजीआर की पत्नी की छोटी-सी भूमिका में नजर आती हैं। सहयोगी कास्ट कहानी के मुताबिक है।
क्यों देखें: कंगना की दमदार परफॉर्मेंस और जयललिता की जिंदगी को जानने की उत्सुकता के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है।
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