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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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मूवी र‍िव्‍यू: द मेट्रिक्‍स रेसरेक्शन्‍स

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कहानी
'मेट्रिक्‍स फ्रेंचाइजी' की यह चौथी फिल्‍म करीब दो दशक बाद रिलीज हुई है। फिल्‍म की कहानी न सिर्फ दमदार है, बल्‍क‍ि आज के दौर के हिसाब से रेलेवेंट भी।

रिव्‍यू
सिनेमा की दुनिया के दीवानों के लिए यह हफ्ता जबरदस्‍त है। ऐसा इसलिए कि जहां 'स्‍पाइडर-मैन' में हमें तीनों स्‍पाइडर-मैन का रीयूनियन देखने को मिला है, वहीं अब 'मेट्रिक्‍स' को एक बार फिर से पर्दे पर लौटते हुए देखना रोमांचक है। लेदर जैकेट्स, काला चश्‍मा, मोटरसाइकिल बूट्स, बाइक्‍स... सबकुछ पर्दे पर लौट आया है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि सिनेमाघर पहुंचते ही आप नॉस्‍टैल्‍ज‍िक हो जाएंगे। पिछली बार ऐसा तब हुआ था, जब दो साल पहले 'टर्मिनेटर' सीरीज में लिंडा हैम‍िल्‍टन की वापसी हुई थी। अब जाहिर तौर पर सवाल उठता है कि क्‍या 'मेट्रिक्‍स रेसरेक्शन्‍स' का इंतजार वाजिब है?

जो लोग नहीं जानते, उन्‍हें बता दें कि 'स्‍क्‍व‍िड गेम' के रेड लाइट, ग्रीन लाइट से पहले पर्दे पर दो कैप्‍सूल ने तहलका मचाया था। नीले रंग की और लाल रंग की। हमारी जिंदगी हमारे फैसलों पर निर्भर करती है। फिल्‍म इसी की बानगी है। 20 साल से अध‍िक वक्‍त बीत चुका है। डायरेक्‍टर लाना वाचोव्स्की ने इंसान और आर्टिफिश‍ियल इंटेलिजेंस के बीच लड़ाई को दिखाया। असल और नकली दुनिया की उलझन से रूबरू करवाया। नियो (कियानू रीव्स) के जरिए हमने पर्दे पर जो कहानी देखी, उसने हमें खुद के अस्तित्व पर सवाल उठाने को मजबूर कर दिया।

आज दौर बदल गया है। हम पहले ही सुपर इंटेलिजेंट मशीनों के युग में हैं। आर्टिफिश‍ियल इंटेलिजेंस अब घर-घर में है। जाहिर है ऐसे में 'मेट्र‍िक्‍स 4' की कहानी और अधिक प्रासंगिक हो जाती है। लाना वाचोव्स्की ने थॉमस या नियो को एक बार फिर एक रोमांचक यात्रा पर भेजा है। एक ऐसी दुनिा जहां, खुद को पाने के लिए उसे वास्तविकता से दूर जाना पड़ता है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि वाचोवस्की का दिमाग ही ऐसी जटिल बुन सकता है और उसे पर्दे पर रोमांच के साथ उतार सकता है।


एक्शन कोरियोग्राफी से लेकर विजुअल इफेक्‍ट्स तक 'मेट्रिक्स सीरीज' में हमने आज तक जो भी देखा है, यह फिल्‍म अपनी विरासत को आगे बढ़ाती है। खासकर बुलेट टाइम वाला सीक्‍वेंस फिल्‍म में एक बार फिर दर्शकों पर असर छोड़ता है। डायरेक्‍टर लाना ने नियो और ट्रिनिटी (कैरी-ऐनी मॉस) के रोमांस पर इस बार बहुत ज्‍यादा फोकस नहीं किया है। बल्‍क‍ि इसे फिलॉसफिकल अंदाज में आगे बढ़ाया है। हालांकि, फिल्‍म में इस कारण बहुत ज्‍यादा ऐक्‍शन सीक्‍वेंस नहीं हैं। यह एक ऐसी चीज है, जो बतौर दर्शक चुभती है। आप इंतजार करते हैं कि इस बार भी कुछ रोमांचक ऐक्‍शन देखने को मिलेगा, लेकिन फिल्‍म यहां निराश करती है। इसके अलावा कई मौकों पर फिल्‍म लंबी ख‍िंचती है। इस कारण इंतजार बढ़ जाता है।

फिल्म कई मौकों पर आपको पिछली फिल्‍मों की याद दिलाती है। यह आपको जोड़कर रखती है। प्रोग्राम डिजाइनर इस बात से वाकिफ हैं कि 'रीबूट' बिकता है। हालांकि, यह फिल्‍म अपनी पिछली मूवीज के मुकाबले एंटरटेनमेंट के मामले में थोड़ी कमजोर है, लेकिन एक अच्‍छे सीक्‍वल के तौर पर इसकी गिनती जरूर कर सकते हैं।

कियानू रीव्‍स के अंदर पर्दे पर एक हिचक दिखती है। शायद इसलिए कि वह खुद भी इस बात को लेकर संशय में हैं कि नियो के किरदार में पर्दे पर वापसी दो दशक बाद सही है या नहीं। ट्रिनिटी के रोल में कैरी सही मायने में अपने रोल से ज्‍यादा जुड़ी हुई लगती हैं। उन्‍हें देखकर यह एहसास नहीं होता है कि वह दो दशक बाद यह रोल प्‍ले कर रही हैं। एजेंट स्‍म‍िथ के रोल में जोनाथन ग्रॉफ ने बढ़‍िया काम किया है। फिल्‍म में प्रियंका चोपड़ा का रोल छोटा है, लेकिन वह एक महत्‍वपूर्ण किरदार में हैं। प्रियंका ने अपना काम बखूबी किया है।

'मेट्रिक्‍स 4' एक ऐसी सीक्‍वल फिल्‍म है, जो आपको यादों के ड्रॉइंगरूम में ले जाती है। फिल्‍म देखने के लिए आपके पास पिछली फिल्‍मों का एक बैकग्राउंड होना भी जरूरी है। बेहतर यही होगा क‍ि आप इसे देखने से पहले पिछली तीन फिल्‍में भी देख आइए।

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