कहानी
नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज 'ये काली काली आंखे' विलियम शेक्सपियर के ओथेलो फ्रेज के "फॉर शी हेड आइज एंड चूज" पर आधारित है। यह वेब सीरीज उत्तर प्रदेश की राजनीति को केंद्र में रखकर बनाई है, जिसका निर्देशन सिद्धार्थ सेनगुप्ता ने किया है। वेब सीरीज का टाइटल शाहरुख खान की फिल्म 'बाजीगर' के मशहूर गाने 'ये काली काली आंखे' से लिया गया है।
यह वेब सीरीज यूपी के एक छोटे शहर से शुरू होती है जहां नेता अखिराज (सौरभ शुक्ला) करप्ट, खूनी और वोट के लालच में वो सब करता है जो फिल्मों के विलेन किया करते हैं। अखिराज की जान बेटी पूर्वा (आंचल सिंह) में बसती है। ये कहानी तीन अहम किरदार विक्रांत (ताहिर राज भसीन), शिखा (श्वेता त्रिपाठी) और पूर्वा (आंचल) के इर्द-गिर्द घूमती है। विक्रांत, अखिराज के मुनीम (बृजेंद्र काला) का बेटा है। विक्रांत को महज 7 साल की उम्र में देखकर उसकी स्कूल में पढ़ने वाली पूर्वा दिल दे बैठती है, लेकिन विक्रांत को शुरू से ही पूर्वा पसंद नहीं आई, वह उसे अपनी जिंदगी की पनौती मानता है। बचपन में तो विक्रांत का जैसे-तैसे पूर्वा से पीछा छूट जाता है क्योंकि वह पढ़ाई करने विदेश चली जाती है। लेकिन विक्रांत जब इंजीनियर बन जाता है और जैसे ही उसकी जिंदगी ट्रैक पर आने लगती है वैसे ही कहानी नया मोड़ ले लेती है। कॉलेज में विक्रांत को पहली ही नजर में शिखा से प्यार हो जाता है। विक्रांत मध्यम परिवार वाले सपने रखता है। वह छोटे से घर में शिखा के साथ अपनी जिंदगी बनाना चाहता है। विक्रांत के इस छोटे से सपने के बीच 15 साल बाद अचानक सनकी प्यार के साथ पूर्वा की एंट्री होती है। पूर्वा विक्रांत से शादी करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है और विक्रांत इन सबसे बचने की कोशिश करता है। नेता की बेटी का प्यार और ताकतवालों के आगे विक्रांत की एक नहीं चलती।
रिव्यू
''हमारे फ्रेंड बनोगे..? हमारा नाम विक्रांत सिंह चौहान, डेट ऑफ बर्थ 19 दिसंबर, डेट ऑफ डेथ शायद आज ही मरेंगे...'' धुआंधार गोलियों के बीच एक कमरे में खून से लतपथ विक्रांत (ताहिर राज भसीन) के दृश्य के साथ सीरीज का आगाज होता है। ये कहानी राजनीति, पैसा, ताकत के साथ आगे बढ़ती है। दर्शकों को रोमांच, थ्रिलर के साथ साथ सत्ता का घिनौना खेल देखने को मिलता है लेखक ने 90 दशक की फिल्मों वाला कॉन्सैप्ट एक बार फिर दोहराया है जहां मारकाट, खूनी खेल के साथ प्यार का पागलपन देखने को मिलता है।
अभिनय
ताहिर राज भसीन बैक टू बैक तीन फिल्मों में नजर आए हैं। '83', 'रंजिश ही सही' और जल्द आने वाली 'लूप लपेटा' में ताहिर राज भसीन को मौका मिला है। 'ये काली काली आंखे' में ताहिर लगातार खुद को साबित करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। इसका असर उनके अभिनय पर देखने को मिलता है। इसके बावजूद वह अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय करने की कोशिश करते हैं। कुछ जगहों पर उनके चेहरे से ये भाव थोड़ा फीके लगते हैं जिन्हें वह बराबर संभालने का प्रयास करते हैं। अगर निर्देशक उनकी प्रतिभा को स्क्रीन पर थोड़ा और निखार पाते तो वह ज्यादा कमाल लगते। वहीं श्वेता त्रिपाठी अपने दमदार अभिनय के लिए ही जानी जाती हैं। एक बार फिर वह 'मिर्जापुर' की 'गोलू' जैसी ही नजर आती हैं। उनका लुक और ऐक्टिंग के वही गुर देखने को मिले हैं। इस सीरीज में सबसे ज्यादा बढ़िया काम आंचल सिंह, सौरभ शुक्ला और बृजेंद्र काला ने किया है।
'ये काली काली आंखे' में आंचल सिंह को भारी-भरकम और मजबूत रोल मिला है। वह कहानी की जरूरत के मुताबिक दमदार पर्सनैलिटी और बोल्ड अदाओं से अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करती दिख रही हैं। आंचल इस सीरीज की सबसे मजबूत कड़ी हैं, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया है
निर्देशन
'बालिका वधू' जैसे लोकप्रिय शो के निर्देशक सिद्धार्थ सेनगुप्ता ने 'ये काली काली आंखे' को डायरेक्ट किया है। वह इससे पहले ऑल्ट बालाजी की 'अनदेखी' और 'अपहरण' जैसी वेब सीरीज का निर्देशन कर चुके हैं। उनके लिए ये एक बड़ा प्रोजेक्ट है जो Netflix पर रिलीज हुआ है। 'ये काली काली आंखे' की कहानी उन्होंने अनाहता मेनन और वरुण बडोला के साथ लिखी है। कहानी की स्क्रिप्ट और निर्देशन में छोटे पर्दे का स्टाइल नजर आता है। निर्देशक ने हर एपिसोड को बांधने का भरसक प्रयास किया है लेकिन कई जगहों पर ये ढीली पड़ने लगती है और कुछ दृश्य अनचाहे से लगते हैं।
नेटफ्लिक्स पर रिलीज इस वेब सीरीज से दर्शकों की उम्मीदें बढ़ जाती हैं। सौरभ शुक्ला, ताहिर राज, बृजेंद्र काला और श्वेता त्रिपाठी जैसे कलाकार उम्मीद दोगुनी कर देते हैं। इस वेब सीरीज का राजनीति, क्राइम और थ्रिल का कॉकटेल अमेजन प्राइम पर मौजूद 'मिर्जापुर' को टक्कर नहीं दे पाता है।
क्यों देखें
ताहिर राज और श्वेता त्रिपाठी की ये वेब सीरीज 90 दशक की फिल्मों की याद दिलवाती है जिसमें मेकर्स ने ओटीटी मसाला जोड़ दिया है। अगर आप 90 के दशक की बॉलिवुड थ्रिलर को पसंद करते हैं तो आपको 'ये काली काली आंखे' जरूर अच्छी लगेगी।
इस सीरीज में दर्शकों को 90 के दशक का डोज तो आसानी से मिल जाता है लेकिन उस जमाने के गाने सुनने को नहीं मिलते। वेब सीरीज में कुछ गाने जरूर हैं जो दर्शकों को मोहने में फेल हो जाते हैं। इस सीरीज की सबसे बड़ी कमी ये रही कि इसके इमोशनल करने वाले सीन भावुक नहीं कर पाते। जैसा निर्देशक ने सोचा होगा कि दर्शक सीन्स को देखकर रो पड़ेंगे या गुस्सा से तमतमा उठेंगे तो ऐसा कुछ नहीं होता। सभी कलाकारों की मेहनत और निर्देशक की सूझबूझ के बावजूद ये वेब सीरीज कुल-मिलाकर औसत साबित होती है।
नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज 'ये काली काली आंखे' विलियम शेक्सपियर के ओथेलो फ्रेज के "फॉर शी हेड आइज एंड चूज" पर आधारित है। यह वेब सीरीज उत्तर प्रदेश की राजनीति को केंद्र में रखकर बनाई है, जिसका निर्देशन सिद्धार्थ सेनगुप्ता ने किया है। वेब सीरीज का टाइटल शाहरुख खान की फिल्म 'बाजीगर' के मशहूर गाने 'ये काली काली आंखे' से लिया गया है।
यह वेब सीरीज यूपी के एक छोटे शहर से शुरू होती है जहां नेता अखिराज (सौरभ शुक्ला) करप्ट, खूनी और वोट के लालच में वो सब करता है जो फिल्मों के विलेन किया करते हैं। अखिराज की जान बेटी पूर्वा (आंचल सिंह) में बसती है। ये कहानी तीन अहम किरदार विक्रांत (ताहिर राज भसीन), शिखा (श्वेता त्रिपाठी) और पूर्वा (आंचल) के इर्द-गिर्द घूमती है। विक्रांत, अखिराज के मुनीम (बृजेंद्र काला) का बेटा है। विक्रांत को महज 7 साल की उम्र में देखकर उसकी स्कूल में पढ़ने वाली पूर्वा दिल दे बैठती है, लेकिन विक्रांत को शुरू से ही पूर्वा पसंद नहीं आई, वह उसे अपनी जिंदगी की पनौती मानता है। बचपन में तो विक्रांत का जैसे-तैसे पूर्वा से पीछा छूट जाता है क्योंकि वह पढ़ाई करने विदेश चली जाती है। लेकिन विक्रांत जब इंजीनियर बन जाता है और जैसे ही उसकी जिंदगी ट्रैक पर आने लगती है वैसे ही कहानी नया मोड़ ले लेती है। कॉलेज में विक्रांत को पहली ही नजर में शिखा से प्यार हो जाता है। विक्रांत मध्यम परिवार वाले सपने रखता है। वह छोटे से घर में शिखा के साथ अपनी जिंदगी बनाना चाहता है। विक्रांत के इस छोटे से सपने के बीच 15 साल बाद अचानक सनकी प्यार के साथ पूर्वा की एंट्री होती है। पूर्वा विक्रांत से शादी करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है और विक्रांत इन सबसे बचने की कोशिश करता है। नेता की बेटी का प्यार और ताकतवालों के आगे विक्रांत की एक नहीं चलती।
रिव्यू
''हमारे फ्रेंड बनोगे..? हमारा नाम विक्रांत सिंह चौहान, डेट ऑफ बर्थ 19 दिसंबर, डेट ऑफ डेथ शायद आज ही मरेंगे...'' धुआंधार गोलियों के बीच एक कमरे में खून से लतपथ विक्रांत (ताहिर राज भसीन) के दृश्य के साथ सीरीज का आगाज होता है। ये कहानी राजनीति, पैसा, ताकत के साथ आगे बढ़ती है। दर्शकों को रोमांच, थ्रिलर के साथ साथ सत्ता का घिनौना खेल देखने को मिलता है लेखक ने 90 दशक की फिल्मों वाला कॉन्सैप्ट एक बार फिर दोहराया है जहां मारकाट, खूनी खेल के साथ प्यार का पागलपन देखने को मिलता है।
अभिनय
ताहिर राज भसीन बैक टू बैक तीन फिल्मों में नजर आए हैं। '83', 'रंजिश ही सही' और जल्द आने वाली 'लूप लपेटा' में ताहिर राज भसीन को मौका मिला है। 'ये काली काली आंखे' में ताहिर लगातार खुद को साबित करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। इसका असर उनके अभिनय पर देखने को मिलता है। इसके बावजूद वह अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय करने की कोशिश करते हैं। कुछ जगहों पर उनके चेहरे से ये भाव थोड़ा फीके लगते हैं जिन्हें वह बराबर संभालने का प्रयास करते हैं। अगर निर्देशक उनकी प्रतिभा को स्क्रीन पर थोड़ा और निखार पाते तो वह ज्यादा कमाल लगते। वहीं श्वेता त्रिपाठी अपने दमदार अभिनय के लिए ही जानी जाती हैं। एक बार फिर वह 'मिर्जापुर' की 'गोलू' जैसी ही नजर आती हैं। उनका लुक और ऐक्टिंग के वही गुर देखने को मिले हैं। इस सीरीज में सबसे ज्यादा बढ़िया काम आंचल सिंह, सौरभ शुक्ला और बृजेंद्र काला ने किया है।
'ये काली काली आंखे' में आंचल सिंह को भारी-भरकम और मजबूत रोल मिला है। वह कहानी की जरूरत के मुताबिक दमदार पर्सनैलिटी और बोल्ड अदाओं से अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करती दिख रही हैं। आंचल इस सीरीज की सबसे मजबूत कड़ी हैं, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया है
निर्देशन
'बालिका वधू' जैसे लोकप्रिय शो के निर्देशक सिद्धार्थ सेनगुप्ता ने 'ये काली काली आंखे' को डायरेक्ट किया है। वह इससे पहले ऑल्ट बालाजी की 'अनदेखी' और 'अपहरण' जैसी वेब सीरीज का निर्देशन कर चुके हैं। उनके लिए ये एक बड़ा प्रोजेक्ट है जो Netflix पर रिलीज हुआ है। 'ये काली काली आंखे' की कहानी उन्होंने अनाहता मेनन और वरुण बडोला के साथ लिखी है। कहानी की स्क्रिप्ट और निर्देशन में छोटे पर्दे का स्टाइल नजर आता है। निर्देशक ने हर एपिसोड को बांधने का भरसक प्रयास किया है लेकिन कई जगहों पर ये ढीली पड़ने लगती है और कुछ दृश्य अनचाहे से लगते हैं।
नेटफ्लिक्स पर रिलीज इस वेब सीरीज से दर्शकों की उम्मीदें बढ़ जाती हैं। सौरभ शुक्ला, ताहिर राज, बृजेंद्र काला और श्वेता त्रिपाठी जैसे कलाकार उम्मीद दोगुनी कर देते हैं। इस वेब सीरीज का राजनीति, क्राइम और थ्रिल का कॉकटेल अमेजन प्राइम पर मौजूद 'मिर्जापुर' को टक्कर नहीं दे पाता है।
क्यों देखें
ताहिर राज और श्वेता त्रिपाठी की ये वेब सीरीज 90 दशक की फिल्मों की याद दिलवाती है जिसमें मेकर्स ने ओटीटी मसाला जोड़ दिया है। अगर आप 90 के दशक की बॉलिवुड थ्रिलर को पसंद करते हैं तो आपको 'ये काली काली आंखे' जरूर अच्छी लगेगी।
इस सीरीज में दर्शकों को 90 के दशक का डोज तो आसानी से मिल जाता है लेकिन उस जमाने के गाने सुनने को नहीं मिलते। वेब सीरीज में कुछ गाने जरूर हैं जो दर्शकों को मोहने में फेल हो जाते हैं। इस सीरीज की सबसे बड़ी कमी ये रही कि इसके इमोशनल करने वाले सीन भावुक नहीं कर पाते। जैसा निर्देशक ने सोचा होगा कि दर्शक सीन्स को देखकर रो पड़ेंगे या गुस्सा से तमतमा उठेंगे तो ऐसा कुछ नहीं होता। सभी कलाकारों की मेहनत और निर्देशक की सूझबूझ के बावजूद ये वेब सीरीज कुल-मिलाकर औसत साबित होती है।
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