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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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मूवी रिव्‍यू: गहराइयां

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कहानी
समंदर की दौड़ती लहरों और जिंदगी में हम सभी के बीच लगातार बह रही भावनाओं में कई तरह की समानताएं होती हैं। कई बार इनमें एकरसता आ जाती है, ठीक वैसे ही जैसे संमदर की हर लहर एक जैसी होती है, आती हैं और जाती हैं। इनमें एक अशांति होती है, और हमें भ‍िगोकर फिर छोड़ जाने की भी आदत। 'गहराइयां' फिल्‍म में किरदारों के बहाने जीवन में रिश्‍तों के इसी समानंतर उलझनों को समझने या दिखाने की कोश‍िश की गई है। अलीशा (दीपिका पादुकोण) और जैन (सिद्धांत चतुर्वेदी) को एक-दूसरे का साथ अच्‍छा लगता है। लेकिन इस रिश्‍ते के धागे उलझे हुए हैं। इसमें एक-दूसरे के साथ एक सुकून भी है और बेचैनी भी। दर्द भी है और दवा भी।

रिव्‍यू
अलीशा एक योग इंस्‍ट्रक्‍टर है। जैन एक रियल एस्‍टेट का हॉटशॉट। पहली मुलाकात में ही दोनों के बीच एक अट्रेक्‍शन पैदा होता है। दोनों समय के साथ इस नए रिश्‍ते की गहराइयों में गोते लगाने लगते हैं। लेकिन भावनाओं से इतर एक असल दुनिया भी है, जिसकी सच्‍चाई इस रिश्‍ते को बड़ा झटका देती हैं। अलीशा की कजिन है टिया (अनन्‍या पांडे), जिससे जैन की शादी होनी है। खुद अलीशा भी छह साल से करण (धैय करवा) के साथ लिव-इन रिलेशन में है। अलीशा और जैन का रिश्‍ता जीवन की इस सच्‍चाई के आगे एक अनसुलझी पहले की तरह है और यह एक ऐसी राह पर आगे बढ़ता है, जहां आगे फिसलन है। लेकिन क्‍या उनका रोमांस इस फिसलन भरी राह को पार पा सकेगा? 'गहराइयां' आज के जमाने के ऐसे ही रिश्‍तों की कहानी कहती है।

रिश्‍तों में बेवफाई कब और क्‍यों होती है? डायरेक्‍टर शकुन बत्रा ने 'गहराइयां' में इस पर सिर्फ फौरी या सतही तौर पर बात नहीं की है। वह इसकी गहराइयों में उतरते हैं। कुछ इस तरह से कि इस पर हिंदी सिनेमा में बहुत कम बात हुई है। फिल्‍म साफ तौर पर वुडी ऐलन की साइकोलॉजिकल थ्र‍िलर 'मैच पॉइंट' (2005) से प्ररित है। डायरेक्‍टर शकुन बत्रा ने फिल्‍म में इंटीमेसी न सिर्फ दिखाई है, बल्‍क‍ि इसे इस तरह पर्दे पर रखा है कि आप उसमें फिजिकल लव से अध‍िक गहराई ढूंढ़ते हैं। कल्‍पना कीजिए, कैसा हो यदि आप जिसे प्‍यार करते हैं, उसके सामने आप इमोशनली नेकेड यानी भावनात्‍मक रूप से नग्‍न हो जाएं? और क्‍या आपकी इस कमजोरी पर यह समाज आपको पछताने पर मजबूर कर देता है? फिल्‍म में इस पर भी बात है।


अलीशा का आज और बीता हुआ कल दोनों में चिंता और परेशानी है। बचपन से ही वह एक ट्रबल्‍ड चाइल्‍ड रही है। उसे आज भी याद है कि उसकी मां को सताया गया था और उससे वह उबर नहीं पाई है। हालांकि इसका सच भी कुछ और है। मोहब्‍बत को लेकर हमारी जो सोच है, उसमें कहीं न कहीं हमारे पैरेंट्स के बीच के प्‍यार की छाप जरूर होती है। अलीशा के साथ भी ऐसा ही है। शकुन बत्रा पर‍िवार और प्‍यार के रिश्‍तों की परतों पर अनफिल्‍टर तरीके से पर्दे पर रखते हैं। इसकी एक झलक हम 'कपूर एंड सन्‍स' में भी देख चुके हैं। वह इंसान के कॉम्‍प्‍लेक्‍स बिहेवियर के हर पहलू को अपनी कहानी में जगह देते हैं। उन बातों को भी सामने रखते हैं, जिसे कहानी में शामिल करना कई बार मुश्‍क‍िल होता है।

दीपिका पादुकोण ने एक बार फिर पर्दे पर छाप छोड़ी है। कई मौकों पर वह बिना आंखों में आंख डाले, बहुत कुछ कह जाती हैं। सीधे दिल पर चोट करती हैं। सिद्धांत ने भी एक ऐसे किरदार को निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, जिसकी कई परते हैं। एक ऐसा किरदार, जो रिश्‍तों की उधेड़बुन में उलझा हुआ है। दोनों की ही परफॉर्मेंस काबिल-ए-तारीफ है। दोनों ही किरदारों के दिल में भूचाल है और बाहर एक शांति। इस भाव को दीपिका और सिद्धांत ने जबरदस्‍त तरीके से जीने का काम किया है। इसमें कोई शक नहीं है कि फिल्‍म की कहानी के हिसाब से इससे बेहतर कास्‍ट‍िंग नहीं हो सकती थी। एक ऐसी कहानी जो सामान्‍य और सहज तरीके से शुरू होती है, लेकिन फिर थ्र‍िलर का रूप ले लेती है। एक गहरी अंधेरी दुनिया में लेकर जाती है। फिल्‍म एक टाइम बम की तरह आगे बढ़ती है, जिसकी सूई घूम रही है और एक डर दर्शकों में भी बनता है कि न जाने आगे क्‍या होने वाला है। फिल्‍म के थ्र‍िल को पर्दे पर उतारने में सिनेमेटोग्राफी और साउंड का बहुत योगदान है। कई सीन ऐसे डिजाइन किए गए हैं, जहां खामोशी है, शांति है, लेकिन उनमें भीतर ही भीतर बहुत शोर भरा है।

हालांकि, फिल्‍म में कुछ ऐसा भी है जो खलता है। एक तो इसकी लंबाई, जो आपकों खींची हुई लगती है। और दूसरी इसी स्‍पष्‍टता। फिल्‍म अपने दूसरे हिस्‍से में कुछ इस तरह आगे बढ़ती है कि आप यह सोचने लगते हैं कि यह किस ओर जा रही है। 2 घंटे और 28 मिनट में यह समंदर की लहरों की तरह ही एकबारगी एकरसता यानी मोनोटोनस लगने लगती है। थकाने लगती है। हालांकि, कुल मिलाकर फिल्‍म में कई ऐसे मौके हैं, जो दर्शकों के दिल को छूते हैं। यदि आप कुछ अलग देखना चाहते हैं तो 'गहराइयां' आपको निराश नहीं करेगी।

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