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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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मूवी रिव्‍यू: राधे श्‍याम

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कहानी
विक्रमादित्‍य (Prabhas) एक मशहूर ज्‍योतिष है। हाथ की रेखाओं को देखकर इंसान का भूत और भविष्‍य दोनों बता देता है। न चाहते हुए भी उसे डॉ. प्रेरणा (Pooja Hegde) से प्‍यार हो जाता है। वह भविष्‍यवाणी करता है कि प्रेरणा की जिंदगी बहुत ही बेहतरीन होने वाली है। लेकिन किस्‍मत को कुछ और ही मंजूर है। क्‍या जो भविष्‍य ने जो तय किया है, वही होने वाला है या लिखे हुए को बदला जाएगा... फिल्‍म इसी की कहानी है।

रिव्‍यू
गुरु परमहंस (सत्‍य राज) एक वैदिक स्‍कूल चलाते हैं। कुछ वैज्ञानिक उनके पास पहुंचते हैं। गुरु परमहंस और वैज्ञानिक के बीच विवाद बढ़ता है। वैज्ञानिक उनके ज्ञान, अध्‍ययन, ज्‍योतिषी और हस्‍तरेखा विज्ञान पर सवाल उठाते हैं। इसी क्रम में दर्शकों के सामने एंट्री होती है विक्रमादित्‍य (प्रभास) की। उसे फिल्‍म में 'भारत का नोस्ट्राडेमस' बताया गया है। कहते हैं कि विक्रमादित्‍य की भविष्‍यवाणी कभी गलत नहीं होती।

पूरी फिल्‍म में विक्रमादित्‍य यह दावा करता है कि उसकी हाथों में प्‍यार की रेखा यानी लव-लाइन नहीं है। वह फर्ल्‍ट तो करता है, लेकिन कोई रिलेशनश‍िप नहीं चाहता। फिर भी वह डॉ. प्रेरणा (पूजा हेगड़े) से प्‍यार करने लगता है। डॉ. प्रेरणा अपनी निजी जिंदगी में बड़े ही मुश्‍क‍िल हालातों का सामना कर रही है। कहानी में ट्विस्‍ट यह है कि विक्रमादित्‍य उसकी हाथ की रेखाओं को देखकर एक उज्‍जवल भविष्‍य की बात करता है, जबकि उसकी जिंदगी में जो कुछ हो रहा है, वह उसे किसी और ही दिशा में ले जा रहे हैं।

फिल्‍म की कहानी यह बताती है कि कोई भी विज्ञान 100 फीसदी सटीक नहीं है। यह समझाने की कोश‍िश करती है कि इंसान अपने कर्म से अपने भाग्‍य को बदल सकता है। यह बात दुनिया के सबसे विद्वान हस्‍तरेखा ज्‍योतिष पर भी लागू होती है। 140 मिनट की यह लंबी फिल्‍म एक मोड़ के बाद थकाऊ लगने लगती है, लेकिन जैसे जैसे यह आगे बढ़ती है, अंत तक वहां भी नहीं पहुंच पाती, जहां डायरेक्‍टर साहब इसे पहुंचाना चाहते थे। कुल मिलाकर फिल्‍म दर्शकों पर असर छोड़ने में नाकाम साबित होने लगती है। फिल्‍म में बड़े सितारे हैं, तकनीक के सहारे भी खूबसूरत काम करने की कोश‍िश की गई है, लेकिन यह सब धरे के धरे रह जाते हैं।


पूजा हेगड़े और प्रभास की केमिस्‍ट्री इस लव स्‍टोरी की सबसे बड़ी परेशानी है। दुख की बात यह है कि दोनों के किरदारों में गहराई की कमी खलती है। इसे और बेहतर तरीके से, ज्‍यादा स्‍पष्‍ट और लाजिकली यानी तर्कों के साथ गढ़ा जा सकता था। इस कमी का असर दोनों ऐक्‍टर्स की परफॉर्मेंस पर भी पड़ता है। हालांकि, प्रभास और पूजा हेगड़े दोनों ने ही अपने हिस्से के काम को श‍िद्दत से पूरी करने की कोश‍िश की है। स्‍क्रीनप्‍ले में ऐसे बहुत से सीन हैं, जिनकी जरूरत नहीं थी। ऐसे कई किरदार हैं, जिनका कहानी में कोई काम नहीं था। साथ ही ऐसी कई घटनाएं हैं जिनके बारे में अच्‍छे से बताया-समझाया नहीं गया है। ऐसे में आप यही सोचते रहते हैं कि ये क्‍यों हुआ या कैसे हुआ।

'राधे श्‍याम' को बहुत ही बड़े कैनवस पर शूट किया गया है। फिल्‍म में खूबसूरत यूरोप है और यह आपको परियों की कहानी की तरह लगता है। फिल्‍म बड़े पर्दे पर देखने के लिहाज से खूबसूरत और ग्रैंड है। मिथुन, अमाल मलिक और मनन भारद्वाज का संगीत फिल्‍म की कहानी के साथ बुना गया है और यह आपको अच्‍छा लगता है। कुछ गानों के पिक्‍चराइजेशन अच्‍छे हैं।

फिल्‍म में इस्‍तेमाल किए गए वीएफएक्‍स की तारीफ करनी होगी। यह 'राधे श्‍याम' की क्‍लवालिटी है। लेकिन यह सब बेकार साबित होते हैं, क्‍योंकि इस प्रेम कहानी में कनेक्‍ट नहीं है। यकीनन इस फिल्‍म का भाग्‍य कुछ और हो सकता था, लेकिन अफसोस कि ऐसा हुआ नहीं।

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