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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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मूवी रिव्यू: बच्चन पांडे

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कोरोना काल में वो सुपर स्टार अक्षय कुमार (Akshay Kumar) ही थे, जिन्होंने पहले 'बेल बॉटम' और फिर 'सूर्यवंशी' जैसी गाढ़ी कमाई करने वाली फिल्म के जरिए सिनेमा घरों को गुलजार किया। अब खिलाड़ी कुमार 2014 में आई तमिल फिल्म 'जिगरठंडा' की रीमेक 'बच्चन पांडे' (Bachchhan Paandey) के साथ प्रस्तुत हुए हैं। निर्देशक फरहाद सामजी की इस फिल्म में अक्षय कुमार एक ऐसे डॉन की भूमिका में हैं, जिसकी एक आंख ही नहीं बल्कि दिल भी पत्थर का है। होली के मौके पर रिलीज होने वाली इस फिल्म में मनोरंजन के तमाम मसाले ठूंसे गए हैं, मगर इसके बावजूद फिल्म बांधे रखने में नाकाम रही है।

कहानी की शुरुआत दिलचस्प ढंग से होती है। असिस्टेंट डायरेक्टर मायरा (कृति सेनन) इंडिपेंडेंट डायरेक्टर बनने का सपना देख रही है और अपने सपने को पूरा करने के लिए वह एक गैंगस्टर की बायॉपिक बना कर नाम कमाना चाहती है। देश भर के कई गुंडे-बदमाशों पर रिसर्च करने के बाद अंततः वह बघवा पहुंचती हैं, जहां पर गैंगस्टर बच्चन पांडे के खौफ की तूती बोलती है। मायरा के साथ ऐक्टर बनने की ख्वाहिश रखने वाला उसका दोस्त विशु (अरशद वारसी) भी है। बघवा उत्तर भारत की एक ऐसी जगह है, जहां अराजकता का राज चलता है। यहां दिन-दहाड़े गुंडे पुलिस की धुनाई करते हैं और पत्रकार को जिंदा जला दिया जाता है। यहां का माफिया सिर्फ गोलियों की जुबान जानता है और इन कुख्यात गुंडों का सरगना है बच्चन पांडे (अक्षय कुमार)। बच्चन पांडे की जिंदगी का पीछा करते हुए मायरा और विशु एक ऐसे खूनी रोलर-कोस्टर में सवार होते हैं, जहां जान लेना उतना ही आम है, जितना की मच्छर मारना।


कहानी में बच्चन पांडे गैंग के पेंडुलम, बफरिया चाचा, कांडी जैसे कई अतरंगी लोग हैं। खून की होली खेलने वाले बेरहम बच्चन पांडे पर मायरा फिल्म बना पाती है या नहीं, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
एंटरटेनमेंट और 'हाउसफुल 3' जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके फरहाद सामजी की फिल्म की सबसे बड़ी समस्या यही है कि दर्शक ट्रेलर में इतना कुछ देख चुका है कि फिल्म देखने के दौरान उसे 'पिक्चर अभी बाकी है' वाली फीलिंग नहीं आती। फिल्म टुकड़ों-टुकड़ों में मनोरंजन देती है।

फर्स्ट हाफ का सारा समय निर्देशक ने बच्चन पांडे के किरदार को डेवलप करने में लगा दिया है, इसीलिए फिल्म की गति स्लो लगने लगती है। शुक्र है सेकंड हाफ में कई टर्न और ट्विस्ट और पंकज त्रिपाठी की एंट्री फिल्म को बचा लेती है। स्क्रीनप्ले में काफी झोल नजर आते हैं। फिल्म की एडिटिंग और पैनी की जा सकती थी। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी दर्शनीय है, जिसका श्रेय गेवमिक यू एरी को जाता है। गानों की बात करें, तो 'मार खाएगा' और 'सारे बोले बेवफा' म्यूजिक प्रेमियों को पसंद आ रहे हैं।


अभिनय की बात करें तो बच्चन पांडे नाम के किरदार को अक्षय कुमार 2008 में आई टशन में निभा चुके हैं, मगर इस बार उन्होंने अपने एंटी हीरो किरदार में खौफ और कॉमिक रंग को एक साथ जोड़ा है। वे अपनी भूमिका को इंजॉय करते दिखते हैं। अक्षय का पत्थर वाली आंख का अवतार जुगुप्सा प्रेरक, किंतु ऐक्शन दृश्यों में वे बीस साबित होते हैं, मगर उनकी बैकस्टोरी किरदार के प्रति सहानुभूति नहीं जगा पाती। कृति सेनन अपनी भूमिका को निभा ले गई हैं। जैकलीन फर्नांडिस को हमने इस तरह की भूमिकाओं में पहले भी देखा है। प्रतीक बब्बर नासमझ गुंडे के चरित्र में प्रभाव नहीं छोड़ पाते। पेंडुलम के रूप में अभिमन्यु सिंह, बफरिया चाचा के रूप में संजय मिश्रा और कांडी के रोल में सहर्ष कुमार अपनी कॉमिडी से राहत देते हैं।


क्यों देखें-मसाला और ऐक्शन फिल्मों के शौकीन यह फिल्म देख सकते हैं।

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