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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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मूवी रिव्यू: दसवीं

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कहानी
'दसवीं' शुरू होती है हरित प्रदेश (काल्पनिक नाम) के जाट नेता गंगा राम चौधरी (अभिषेक बच्चन) से, जिसे टीचर भर्ती घोटाले में एसआईटी की छानबीन होने तक न्यायिक हिरासत में भेजा जा गया है। जेल जाने के बावजूद चौधरी साहब के नखरे उतने ही है। उन्हें अच्छा खाना, बिस्तर और दो-चार चेले चम्मचे चाहिए जो उनकी खातिरदारी करते रहे। लेकिन उनका ठाठ-बाट तब धरा रह जाता है जब जेलर ज्योति (यामी गौतम) की एंट्री होती है। रफ एंड टफ जेलर के आगे नेताजी के सारे नखरे धरे रह जाते हैं। वहीं दूसरी ओर गंगा राम के जेल जाने के बाद सीएम की कुर्सी पर उसकी बीवी (बिमला देवी) को मिलती है। वो बिमला जो सालों से पति की दादागिरी सहती आई है। अब पति के जेल जाने के बाद उसे कुर्सी का ऐसा चस्का लगता है कि वह किसी भी कीमत पर इसे गंवाना नहीं चाहती है। कहानी में मोड़ तब आता है जब जेल में आठवीं पास गंगा राम चौधरी पढ़ने की ठानता है। वह कसम खाता है कि अगर वह दसवीं पास नहीं करेगा तो वह कभी सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठेगा। अब इसी बिंदु को लिए कहानी आगे बढ़ती है और अंत में आप देख पाएंगे कि क्या चौधरी साहब दसवीं पास कर पाते हैं? क्या उनकी अक्कड़ ठिकाने लगती है या फिर जीत के साथ घमंड दुगुना हो जाता है? इस फिल्म को देख आपको दो दिग्गज नेताओं की कहानी याद आएगी। एक तो बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव की, जिन्होंने जेल जाने के बाद पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंपी थी तो दूसरी कहानी, हरियाणा की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल के कर्ताधर्ता और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की। वही ओम प्रकाश चौटाला जिन्होंने जेल में रहकर 86 साल की उम्र में दसवीं पास की। फिल्म में अभिषेक बच्चन का लुक भी एकदम चौटाला की तरह देखने को मिलता है।

निर्देशन
'दसवीं' का निर्देशन तुषार जलोटा ने किया है। वह 'रामलीला', 'पद्मावत' और 'बर्फी' जैसी नामी फिल्मों में अस्सिटेंट डायरेक्टर के तौर पर काम कर चुके हैं। लेकिन उनकी पहली निर्देशित फिल्म 'दसवीं' में ऐसा जलवा देखने को नहीं मिलता है। वह 8-9 फिल्मों के सहायक निर्देशक रहे हैं। पहला मौका उन्हें 'दसवीं' से मिला लेकिन वह कुछ खास छाप छोड़ न सके। फिल्म में लगातार उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। ये दर्शकों को बांधने में भी सफल नहीं होती है। अगर तूषार फिल्म को कसने में कामयाब होते तो शायद ये फिल्म ज्यादा असर दिखा पाती।

लेखन
'दसवीं' का लेखन 'कहानी 2' के स्क्रिप्ट राइटर सुरेश रैना और 'कमांडे' व 'सरदार उधर सिंह' जैसी शानदार फिल्में लिखने वाले रितेश शाह ने किया है। दोनों की जोड़ी इस बार फीकी रह लगती है। जैसे फिल्म के क्लाइमैक्स सीन में अभिषेक बच्चन की स्पीच है, वह फिल्म के सबसे अहम सीन में से एक था। इस स्पीच का लेखन इतना कमजोर रहा कि ये दृश्य सबसे बेरंग दिखा। फिल्म में कई संवाद ऐसे हैं जो आपको जरूर हंसाएंगे लेकिन कहानी कभी एकदम तेजी से रफ्तार पकड़ती है तो कहीं एकदम धीमी पड़ जाती है। यही इस फिल्म का सबसे वीक प्वाइंट रहा है। एकाध जगह निर्देशक और लेखक फिल्म में जो दृश्य पर्दे पर उकेरना चाहते थे वह उस भाव से उमड़ नहीं पाए। ऐसा लगता है कि अचानक से ये कैसे हो गया। कुल मिलाकर पटकथा में कसावट होनी चाहिए थी और ये कमी बहुत खलती है।

अभिनय

'दसवीं' की डोर वैसे तो अभिषेक बच्चन, यामी गौतम और निम्रत कौर के हाथों में थी लेकिन सब पर निम्रत कौर भारी पड़ीं। उन्होंने एक बार फिर नेचुरल ऐक्टिंग से दर्शकों का दिल जीत लिया। बात यामी गौतम की करें तो उनसे काफी उम्मीदें रखी जाती हैं। 'ए थर्सडे' और 'बाला' जैसी कई फिल्मों में वह शानदार काम कर चुकी हैं लेकिन इस बार उनका परफॉर्मेंस एवरेज देखने को मिलता है। बात करें 'दसवीं' के सबसे मुख्य किरदार की तो वह है गंगा राम चौधरी का, जिसे जूनियर बच्चन यानी अभिषेक बच्चन ने निभाया है। 'लूडो', 'बॉब बिस्वास' और 'द बिग बुल' के बाद चौथी फिल्म अभिषेक बच्चन ओटीटी पर लाए हैं। इन हालिया फिल्मों में वह एक अलग और गंभीर रोल में नजर आए। खास बात ये है कि वह पहले के मुकाबले ज्यादा निखकर पर्दे पर दिख रहे हैं और उनकी तारीफ एक बार फिर 'दसवीं' में करनी बनती है। कहीं कहीं वह बॉडी लैंग्वज को कैच करने से चूकते जरूर हैं लेकिन वह बखूबी इसे संभालते हैं।

तकनीकी पक्ष
सिनेमेटोग्राफी का जिम्मा कबीर तेजपाल ने उठाया है। उन्होंने अपने काम में कोई कसर ने छोड़ी है। कैमरा वर्क फिल्म में बढ़िया रहा है। बात करें म्यूजिक की तो सचिन और जिगर की जोड़ी का संगीत आपको सुनने को मिलेगा। फिल्म के दृश्यों और सेट की बात करें तो दसवीं की शूटिंग आगरा के जेल में हुई है। लिहाजा जेल की लाइब्रेरी, काल कोठरी पर फोकस किया गया है। कई बार आपको दोहराते हुए से द़ृश्य भी लग सकते हैं।


क्यों देखनी चाहिए और क्यों नहीं
'दसवीं' फेल होती है या पास? तो इसका जवाब है कि ये मैरिट से नहीं बल्कि ग्रेस मार्क्स से पास हुई है। ऐसा लगता है कि मेकर्स ने फिल्म को शिक्षा जैसे सबसे बड़े सामाजिक विषय पर बनाने का महज छलावा किया है। वे न तो इस मुद्दे को ही उठा पाए न ही राजनीति ही कर पाए। लेकिन अगर आप अभिषेक बच्चन और निम्रत कौर के जबरा फैन हैं तो आप उनका ये जाट किरदार कतई मिस नहीं करना चाहिए।

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