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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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कट्टी-बट्टी

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चंद्रमोहन शर्मा

​यकीनन लंबे समय
से एक अदद हिट को तरसते डायरेक्टर निखिल आडवाणी और लंबे अर्से के बाद स्क्रीन पर एक बार फिर बॉक्स ऑफिस पर राज कर रही ऐक्ट्रेस कंगना रनौत के साथ नजर आ रहे इमरान खान के लिए सितंबर का महीना कुछ खास रहा होगा। करण जौहर के साथ बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट कल हो न हो के बाद जहां निखिल को अपनी अगली सुपरहिट की तलाश लंबे अर्से से लगी थी, ऐसे में इस महीने जब उनकी एकसाथ दो फिल्में हीरो और कट्टी बट्टी एक हफ्ते के गैप में रिलीज हुई तो निखिल की सुपरहिट की आस बढ़ना समझा जा सकता है। अफसोस अब जब यह दोनों फिल्में दर्शकों के सामने आ चुकी हैं तो लगता है निखिल का इंतजार अब और आगे बढ़ना तय है। हीरो बॉक्स ऑफिस पर कुछ नहीं कर पाई तो वहीं इमरान खान स्टारर यह फिल्म भी शुरुआत से क्लाइमैक्स तक कुछ ऐसी स्लो स्पीड से फ्लैशबैक का सहारा लेकर आगे खिसकती है कि दर्शक सवा दो घंटे की फिल्म के साथ भी खुद को स्टार्ट से लास्ट तक कहीं बांध नहीं पाता। बेशक, निखिल ने अपनी इस फिल्म को जेन एक्स और मल्टिप्लेक्स कल्चर को फोकस करके बनाया, लेकिन कहानी चंद मिनट बाद ही ट्रैक से कुछ ऐसी भटकनी शुरू होती है जो आखिर तक संभल नहीं पाती। निखिल की यह फिल्म हॉलिवुड फिल्म अ वॉक टु रिमेंबर से काफी हद तक प्रभावित है। करीना कपूर जैसी हिट हिरोइन के साथ भी नाकाम रहे इमरान खान को इस बार कंगना रनौत जैसी बॉक्स ऑफिस की क्वीन का साथ मिला।



कहानी : अहमदाबाद के एक कॉलेज में आर्किटेक्चर बनने मुंबई से आए मैडी उर्फ माधव (इमरान खान) को पहली नजर में ही यहां पढ़ रही पायल (कंगना रनौत) से प्यार हो जाता है। मैडी का यह प्यार पूरी तरह से वन साइड है, क्योंकि पायल ने तो कभी उसके साथ अपने प्यार का इजहार नहीं किया। पायल अपनी अपने दोस्तों के साथ बिंदास जिंदगी गुजारना चाहती हैं। कॉलेज में कुछ मुलाकातों के बाद पायल भी मैडी को लाइक करने लगती है। कॉलेज की स्टडी पूरी होने के बाद पायल अपने आगे की स्टडी के लिए पैरिस जाने का प्लान रद्द करके मैडी के साथ मुंबई में रहने का फैसला करती है। मुंबई में मैडी और पायल एक दो नहीं, बल्कि पूरे पांच साल तक एक-दूसरे के साथ लिव इन रिलेशनिशप में रहते हैं। अचानक, एक दिन पायल मैडी की दुनिया से कहीं दूर चली जाती है। मैडी समझ नहीं पा रहा कि उसने ऐसा क्या कर दिया कि पायल उससे दूर चली गई। मैडी पूरी तरह से पायल के प्यार में ऐसा डूब चुका है कि पायल के जाने के बाद वह जहर पीकर आत्महत्या की भी कोशिश करता है। मैडी को अब भी पायल की तलाश है, क्योंकि मैडी उससे सच्चा प्यार करता है। इसी बीच एक दिन जब मैडी को पता चलता है कि पायल दिल्ली में एक एनजीओ के सिलसिले में है और जल्द ही अपने कॉलेज के उस दोस्त से शादी करने वाली है जिससे उन्होंने कई साल पहले ब्रेकअप कर लिया था तो मैडी पायल से मिलने दिल्ली जाने का फैसला करता है।


डायरेक्शन : निखिल आडवाणी ने जवां दिलों की इस लव-स्टोरी को बेहद सुस्त ढंग से पेश किया। बेशक इंटरवल के बाद कहानी कुछ रफ्तार पकड़ती है और क्लाइमैक्स कुछ चौंकाता भी है, लेकिन कहानी को आगे बढ़ाने के लिए निखिल ने बार-बार फ्लैशबैक सीन्स का कुछ ज्यादा ही सहारा लिया जो खटकता है। कंगना और इमरान पर फिल्माया देवदास नाटक फिल्म की लंबाई बढ़ाने के अलावा कुछ और नहीं करता। पायल और मैडी की लव-स्टोरी के साथ दर्शकों का कहीं भी बंध न पाना फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है।


संगीत : फिल्म का संगीत फिल्म की यूएसपी है। रिलीज से पहले फिल्म के कई गाने म्यूजिक चार्ट में टॉप फाइव में शामिल हो चुके हैं। चल ले किसिया, दे किसिया और मैं भी सिरफिरा तू भी सिरफिरी पहले से यंगस्टर्स में हिट है।

क्यों देखें : कंगना का बोल्ड अंदाज, दमदार अभिनय, चौंका देने वाला क्लाइमैक्स और जेन एक्स की कसौटी पर फिट फॉर्म्युला इस कट्टी बटटी में हैं।

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मेरठिया गैंगस्टर्स

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चंद्रमोहन शर्मा

कुछ साल पहले रिलीज हुई अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के स्क्रीन राइटर रहे जीशान कादरी ने जब फिल्म डायरेक्शन में हाथ आजमाया तो उन्हें गैंगस्टर शब्द और सब्जेक्ट ही पसंद आए। जीशान की बतौर स्क्रिप्ट राइटर फिल्मों की कहानी भी वासेपुर जैसे छोटे शहर के गैंग्स पर बेस्ड थी। अब उनकी यह नई फिल्म भी एक छोटे शहर में रहने वाले ऐसे युवकों की कहानी है जो बिना मेहनत किए रातोंरात करोड़पति बन जाना चाहते हैं। इस मकसद को पूरा करने के लिए यह सभी ऐसा शॉर्टकट अपनाते हैं, जिसका अंजाम पहले से ही उन सबको मालूम है। सीमित बजट में नई स्टार कास्ट के साथ बनी इस फिल्म को प्रॉडक्शन कंपनी ने बिना किसी खास प्रमोशन के रिलीज कर दिया। ऐसे में बॉक्स ऑफिस पर फिल्म कमजोर साबित हो सकती है। मेरठ, नोएडा और आसपास की लोकेशन को जीशान ने जीवंत ढंग से पेश किया है, लेकिन एक फिल्म के रूप में कुछ नया नहीं कर पाए।

कहानी : मेरठ के एक कॉलेज में पढ़ रहे छह दोस्तों निखिल, अमित, संजय फॉरनर, सनी, गगन और राहुल चैलेंजर स्टडी कंप्लीट करने के बाद अच्छी नौकरी की तलाश में लग जाते हैं। नौकरी की चाह में यह सभी एक ऐसे गिरोह के झांसे में भी फंसते हैं जो इनसे मोटी रकम लेकर इन्हें नौकरी का ऑफर लेटर तो देता है, लेकिन यह सब जाली निकलता है। इसके बाद सभी रातों-रात मोटी कमाई करने की चाह में किडनैपिंग, लूटपाट के धंधे को अपनाते हैं। इनके साथ मानसी भी शामिल है जो एक बड़ी कंपनी में नौकरी करती है और गिरोह के एक सदस्य की प्रेमिका है। मानसी इनको किडनैपिंग की टिप्स देती है। मानसी की कंपनी के एक बड़े अधिकारी जयंती लाल जैन और उसके बाद कंपनी के मालिक का किडनैप करके मोटी फिरौती वसूली जाती है। शहर में एक के बाद एक हो रही घटनाओं को रोकने के लिए जांबाज पुलिस इंस्पेक्टर आर के सिंह की ड्यूटी लगाई जाती है।




निर्देशन : जीशान ने कहानी की शुरुआत तो दमदार की, लेकिन क्लाइमैक्स तक कहानी पूरी तरह से भटकती नजर आती है। जीशान ने अपनी कहानी के किरदारों की डायलॉग डिलीवरी पर अच्छा फोकस किया है, लेकिन अगर जीशान थोड़ा और होम वर्क करते तो स्क्रिप्ट और बेहतर हो सकती थी। फिल्म का क्लाइमैक्स फीका सा दिखता है। पहली बार डायरेक्शन की कमान संभाल रहे जीशान की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपनी ओर से एक अच्छी शुरुआत तो की, लेकिन कहानी को असरदार ढंग से अजांम तक नहीं पहुंचा पाए।

ऐक्टिंग : जीशान की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने बॉक्स ऑफिस पर भीड़ बटोरने की चाहत में बेवजह बड़े स्टार्स को नहीं लिया। बेशक यह फिल्म अनुराग की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के सामने कहीं नहीं ठहर पाती हो, लेकिन फिल्म के किरदार और उनका अभिनय अनुराग की फिल्म की याद जरूर दिलाते हैं। गैंगस्टर गिरोह के हेड बने निखिल के किरदार में जयदीप अहलावत सभी पर हावी नजर आते हैं। प्रॉपर्टी डीलर मामा के रोल में संजय मिश्रा का जवाब नहीं। अपने सपनों को साकार करने के लिए अपने ही दोस्तों को उल्लू बनाकर अपना मकसद पूरा करने वाली महत्वाकांक्षी लड़की मानसी के रोल में नुसरत भरूचा जमी हैं। अपनी मर्जी और अपने कायदों से आला अफसरों की परवाह किए बिना केस सॉल्व करने इंस्पेक्टर आर.के. सिंह के रोल में मुकुल देव पूरी तरह से फिट नजर आए। अन्य किरदारों ने भी अपने-अपने रोल को ठीक-ठाक निभाया।

संगीत : फिल्म में गाने रखे गए हैं, लेकिन ये गाने सिर्फ फिल्म की रफ्तार को कम करने का काम ही करते हैं। एक-दो गाने कहानी और माहौल पर फिट होते हैं, लेकिन सिनेमा हॉल से बाहर आने के बाद आपको शायद ही कोई गाना याद रह पाएगा।

क्यों देंखे : मेरठ जैसे छोटे शहर की पृष्ठभूमि के बीच आज की शिक्षित युवा पीढ़ी की मानसिकता और रातों-रात करोड़पति बनने की चाह को डायरेक्टर ने कुछ अलग अंदाज में बयां करने की कोशिश तो जरूर की, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट और इंटरवल से पहले फिल्म की बेहद धीमी गति आपके सब्र का इम्तिहान लेती है। नई स्टार कास्ट ने अपने किरदारों को असरदार ढंग से पेश किया है तो फिल्म के संवाद कहानी की यूएसपी है।

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कैलेंडर गर्ल्स

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चंद्रमोहन शर्मा

मधुर ने हमेशा
से मूवी के लिए एक ऐसा टॉपिक चुना जो समाज में होता है, लेकिन उसपर कोई चर्चा नहीं करता। उनकी पुरानी फिल्में जैसे की पेज थ्री, कॉर्पोरेट, फैशन, ट्रैफिक सिग्नल इस बात की गवाह हैं। इस बार उन्होंने 'कैलेंडर गर्ल्स' की लाइफ पर यह एक रियल मूवी डायरेक्ट की है, लेकिन इसमें वह क्लास नजर नहीं आती जो उनकी पुरानी फिल्मों में दिखती थी। इस मूवी में उन्होंने जो सब दिखाने की कोशिश की, जैसा शायद सब पहले से जानते हैं।

कहानी : हर साल छपने वाले देश के एक नामी बिज़नस टायकून (सुहेल सेठ) की कंपनी के फैशन कैलेंडर को हर कोई अपने ड्रॉइंग रूम में रखने को बेताब रहता है। इस बार इस कैलेंडर के लिए हैदराबाद की नंदिता मेनन (आकांक्षा पुरी), रोहतक की मिडिल क्लास फैमिली की मयूरी चौहान (रूही सिंह), गोवा की बिंदास शेरोन पिंटो (कियारा दत्त), कोलकाता से परोमा घोष (सतपुरा पाइन) और पाकिस्तान के लाहौर शहर की नाजनीन मलिक (अवनी मोदी) सिलेक्ट होकर मुंबई पहुंचती हैं। मुंबई में पहली बार यह सभी मिलती हैं। अब इन सबको लगने लगता है कैलेंडर गर्ल्स बनते ही उनके पास फैशन इंडस्ट्री, मॉडलिंग और बॉलिवुड मूवीज के ऑफर आएंगे।



मुंबई में हुई पार्टी के बाद ये सभी कैलेंडर शूट के लिए मॉरिशस जाती हैं। पार्टी में देश की नामी हस्तियों के बीच इनका कैलेंडर लॉन्च किया जाता है। कैलेंडर लॉन्च होने के बाद यह सभी मुंबई आकर अपने-अपने सपनों को साकार करने में लग जाती हैं। इस दौरान नाजनीन को बॉलिवुड फिल्म मिलती है, लेकिन पाकिस्तानी कलाकारों के देश से निकालने और उन्हें टीवी शो से बाहर करने की डिमांड को लेकर हो रहे प्रदर्शनों के कारण उन्हें इस मूवी से निकाल दिया जाता है। यहीं से नाजनीन का ऐसा सफर शुरू होता है जिसकी उसने कभी कल्पना तक नहीं की थी। रोहतक की मयूरी चौहान का मकसद पैसा कमाना है, लेकिन अपने उसूलों पर मयूरी स्ट्रगल से हार नहीं मानती। उसे अगर किसी शहर के सबसे अमीर की मौत के बाद होने वाली शोक सभा में हिस्सा लेने के लिए दो-तीन लाख मिलते हैं तो उसे वहां जाना भी मंजूर है। नामी बिल्डर के बेटे की फिल्म मयूरी इसलिए साइन करती हैं कि बिल्डर से मिलने वाली 1.5 करोड़ की रकम से अपने लिए फ्लैट खरीद सके। परोमा अपने प्रेमी के सपनों को पूरा करने के लिए मैच फिक्सिंग में फंसती है। कैलेंडर लॉन्च होने के बाद क्या इनके सपने पूरे हो पाते हैं, पूरी फिल्म इसी पर टिकी है।



ऐक्टिंग : मधुर ने फिल्म शुरू करने से पहले फिल्म की स्टार कास्ट के साथ कुछ दिन की वर्कशॉप की, जिसका रिजल्ट कैमरे के सामने नजर आया। फिल्म में ऐसे कई नए चेहरे हैं, जिन्होंने अपनी पहली ही फिल्म में अपने किरदार को इस बेहतरीन ढंग से निभाकर इतना तो साबित किया कि अगर चांस मिले तो ग्लैमर इंडस्ट्री में लंबी पारी खेल सकती हैं। परोमा के किरदार में अवनी मोदी और छोटे शहर से आई लड़की मयूरी चौहान के किरदार में रूही सिंह ने जान डाली है। अन्य कलाकारों में हैदराबाद से आईं नंदिता मेनन के किरदार में अवंतिका ठीकठाक रहीं।



निर्देशन : ऐसा लगता है इस बार मधुर ने स्क्रिप्ट पर कंप्लीट होमवर्क किए बिना ही फिल्म पर काम शुरू कर दिया। फिल्म शुरू करते वक्त मधुर के जेहन में उनकी पिछली फिल्में पेज थ्री, फैशन और हिरोइन जरूर घूमती रही, तभी तो करीब सवा दो घंटे की इस फिल्म में मधुर ने मैच फिक्सिंग, रिऐलिटी शो, राजनीति, टीवी मीडिया और फैशन इंडस्ट्री पर फोकस किया है। इस बार मधुर कुछ नया दिखाने के चक्कर में कहानी के ट्रैक से ऐसे उतरे कि आखिर तक संभल नहीं पाए। फिल्म की कहानी की डिमांड पर न्यूकमर्स को चांस दिया और इनके किरदारों पर अच्छी मेहनत भी की, लेकिन कैलेंडर के पीछे की सच्चाई दिखाने की बजाए कुछ और दिखा रहे थे। सेंसर ने भी फिल्म के साथ कुछ सख्त रुख अपनाया तभी तो क्लाइमैक्स में फिल्म और ज्यादा हल्की हो जाती है।



संगीत : फिल्म का बैकग्राउंड संगीत अच्छा है। कहानी और माहौल पर बैकग्राउंड म्यूजिक फिट है।

क्यों देंखे : फैमिली के साथ एंटरटेनमेंट और टाइम पास के लिए थिऐटर जाने वाली क्लास अपसेट हो सकती है।

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किस किसको प्यार करूं

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चंद्रमोहन शर्मा

अब्बास-मस्तान की पिछली फिल्मों पर नजर डाली जाए तो हिट रही ज्यादातर फिल्में ऐक्शन, सस्पेंस और थ्रिल बेस्ड थीं। इस जोड़ी के निर्देशन में बनीं फिल्म खिलाड़ी, बाजीगर, हमराज, ऐतराज, अजनबी के अलावा रेस सीरीज की दो फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रहीं। ऐसा नहीं कि इस जोड़ी ने इससे पहले कॉमिडी के नाम पर कुछ न किया हो। इनकी शाहरुख खान स्टारर बादशाह बेशक सस्पेंस थ्रिल फिल्म थी, लेकिन कॉमिडी से भरपूर थी। इस बार लंबे गैप के बाद इस जोड़ी ने कॉमिडी बेस्ड फिल्म तो बनाई, लेकिन ऐसा लगता है उन्होंने स्क्रिप्ट पर दिल लगाकर काम नहीं कर पाए। ऐसा लगता है कि इस फिल्म के जरिए कमीडियन कपिल शर्मा की लोकप्रियता को कैश करने की कोशिश हुई है। फिल्म के राइटर अनुकल्प गोस्वामी ही कपिल के कॉमिडी शो की स्क्रिप्ट लिखते हैं। यही वजह है कि अब्बास-मस्तान को अपने राइटर और हीरो को ज्यादा तवज्जो देना पड़ा। इसी वजह से यह फिल्म उनके हाथों से फिसल गई।

कहानी : हालात हर बार ऐसे बने कि कुमार शिव राम किशन (कपिल शर्मा) को एक दो नहीं, बल्कि तीन-तीन शादियां करनी पड़ गई। बेचारे शिव राम किशन की तीनों बीवियां जूही (मंजरी फडनीस), सिमरन (सिमरन कौर मुंडी) अंजली (साईं लोंकर) एक ही बिल्डिंग में अलग-अलग फ्लोर पर रहती हैं। शर्मा जी की इन तीनों बीवियों को इस बात का बिल्कुल पता नहीं है कि शिव, राम और किशन तीन अलग आदमी नहीं, बल्कि एक ही आदमी के तीन नाम हैं। शर्मा जी की एक गर्लफ्रेंड दीपिका (एली अवराम) भी है। इसी ट्रैक पर धीरे-धीरे आगे खिसकती कहानी के कई मोड़ पर अलग-अलग टिवस्ट आते हैं। तीनों बीवियों के साथ वक्त गुजारने के मकसद से शिव हर बार अलग-अलग बहाने मारता है। एसआरके की मुसीबत उस वक्त बढ़ती है, जब शिव की प्रेमिका दीपिका (एली अवराम) एकबार फिर से उसकी लाइफ में लौटती है। इस बार शर्मा जी अपने पहले प्यार को भी खोना नहीं चाहते और दीपिका से भी जल्दी शादी करने का वादा कर बैठते हैं। दूसरी ओर शिव के माता-पिता (शरत सक्सेना और सुप्रिया पाठक) भी नहीं जानते कि उनके बेटे ने क्या गुल खिलाया हुआ है।

ऐक्टिंग : अगर बिग स्क्रीन पर पहली बार ऐक्टिंग के मापदंड पर रखकर कपिल शर्मा को परखा जाए तो उनकी तारीफ करनी होगी कि उन्होंने कमजोर और लचर स्क्रिप्ट को अपने दम पर इंटरवल तक खूब संभाला है। हां, कपिल कभी-कभी 70 एमएम के पर्दे पर कॉमिडी नाईट्स जैसा माहौल बना देते हैं। सिमरन कौर मुंडी, साईं लोकर, मंजरी फडनीस, अरबाज खान हर किसी ने अपने किरदार के हिसाब से ठीकठाक काम किया है। यह बात अलग है कि कपिल को छोड़ दूसरे कलाकारों को ज्यादा फुटेज नहीं मिल पाई। वरुण शर्मा ने कमाल का अभिनय किया है।

निर्देशन : अब्बास मस्तान ने अपने ट्रैक से अलग हटकर इस बार ऐसी स्क्रिप्ट पर काम किया जो नब्बे के दशक की याद दिलाती है। इंटरवल से पहले तो फिल्म एक ट्रैक पर ठीकठाक रफ्तार से आगे चलती है, लेकिन बाद में रोचकता कम होने लगती है। अगर अब्बास मस्तान कपिल को उनके टीवी शो से बाहर निकालकर अलग ट्रैक पर फिल्म बनाते तो यकीनन उनकी यह फिल्म कपिल के कॉमिडी शो से बेहतर बनती ।

संगीत : फिल्म के गाने फिल्म की रफ्तार को कम करने का काम करते हैं। अगर डायरेक्टर जोड़ी गाने का पहला अंतरा दिखाकर कहानी को आगे करती तो फिल्म और दमदार बन सकती थी। ऐसा लगता है फिल्म में गाने महज औपचारिकता के लिए रखे गए हैं।

क्यों देखें : अगर आप कपिल शर्मा के दीवाने हैं तो इस फिल्म को देखने जाएं वरना कुछ नया देखने की चाह में जाएंगे तो अपसेट होंगे।

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तलवार

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​चंद्रमोहन शर्मा

करीब 7 साल
पहले देश की राजधानी से सटे नोएडा में एक ऐसा दोहरा मर्डर केस हुआ जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। ऐसा शायद पहली बार हुआ जब देश की नंबर वन जांच एजेंसी सीबीआई ने इस केस की एक नहीं, दो बार अलग-अलग एंगल से जांच की और उसके बाद भी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई। ताज्जुब होता है कि एक ऐसी दोहरी हत्या की गुत्थी जो सिर्फ चार लोगों के आसपास टिकी, इनमें से भी दो इस दुनिया में नहीं हैं और बाकी बचे दो पर पुलिस और खूफिया एजेंसियां बरसों बाद भी एकमत नहीं हो पाईं। शायद यही वजह रही बॉलिवुड में हर बार कुछ अलग और लीक से हटकर फिल्म बनाने में अपनी पहचान बना चुके विशाल भारद्वाज ने ऐसे संवेदनशील मसले पर फिल्म बनाने का फैसला किया।

देखिए: फिल्म तलवार का ट्रेलर

इस फिल्म को शुरू करने से पहले विशाल भारद्वाज के साथ इस फिल्म का निर्देशन कर रहीं मेघना गुलजार ने इस दोहरे हत्याकांड की जांच से जुड़े हर पहलू पर गौर से काम करने पर अपनी रिसर्च टीम को लगा दिया था। ऐसे में इस टीम ने जांच रिपोर्टों का गहन अध्ययन किया तो नोएडा में जाकर इस हत्याकांड के बिखरे अलग-अलग तारों को भी अपने ढंग से जोड़ने का बाखूबी काम हुआ। स्टार्ट टु लास्ट एक पल भी फिल्म की कहानी अपने ट्रैक से जरा भी नहीं भटकती। मेघना की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने फिल्म का ऐसा क्लाइमैक्स पेश करने की हिम्मत जुटाई जो इस दोहरे हत्याकांड पर अलग-अलग जांच सीमित द्वारा पेश की गई हो। ताज्जुब होता है कि लोकल पुलिस की जांच के बाद सीबीआई की दो टीमों ने अपनी जो फाइनल रिपोर्ट पेश की उसमें कहीं समानता नजर नहीं आती।



रिलीज से पहले ही इस फिल्म का क्रेज हर तरफ नजर आया, तभी तो इस फिल्म को 40वें टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के लिए भी चुना गया। नोएडा के आरुषि मर्डर पर बनी इस फिल्म को बनाने में डायरेक्टर ने कुछ फिल्मी आजादी भी ली है। मसलन, फिल्म के किरदारों के नामों और अपार्टमेंट के नाम में बदलाव किया गया।

कहानी : नोएडा के समीर अपार्टमेंट में अपने डॉक्टर माता-पिता रमेश टंडन (रमेश काबी) और नूतन टंडन (कोंकणा सेन शर्मा) के साथ रह रहीं 14 साल की श्रुति टंडन (आयशा परवीन) की हत्या के बाद लोकल पुलिस इंस्पेक्टर धनीराम (गजराज राव) अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचता है। धनीराम इस बेहद गंभीर केस की जांच किस एंगल से कर रहा है इसका अंदाजा आप यहीं से लगा सकते हैं कि सिपाही मौके और लाश की तस्वीरे लेने के लिए आए फोटोग्राफर से अलग-अलग पोज में फोटो खिंचवाने में बिजी है। पूरी जांच में धनीराम को पता नहीं चलता कि यहीं पर एक और मर्डर टंडन परिवार के घरेलू नौकर का भी हुआ है। लोकल पुलिस आनन-फानन में केस को खत्म करने में लगी है, क्योंकि मीडिया में पुलिस की खूब किरकिरी हो रही है। श्रुति के पापा डॉक्टर टंडन को दोषी मानकर पुलिस अरेस्ट करके जेल भेज देती है। इसके बाद सीबीआई की टीम अश्विन कुमार (इरफान खान) के नेतृत्व में केस की गहराई से परत दर परत जांच करने के बाद डॉक्टर टंडन को बेगुनाह पाती है, लेकिन एजेंसी चीफ इस रिर्पोट से सहमत नहीं है। एकबार फिर जांच शुरू होती है। इस कहानी के साथ-साथ फिल्म में अश्विन कुमार और उनकी वाइफ रीमा कुमार (तब्बू) की कहानी भी चलती है, जो शादी के कई साल गुजर जाने के बाद अब अलग रहने का फैसला कर चुके हैं।

ऐक्टिंग : डॉक्टर रमेश टंडन के रोल में नीरज काबी ने बेहतरीन ऐक्टिंग की है, एक ऐसे पिता के किरदार में जो अपनी बेटी को खो चुका है और पुलिस उसे ही हत्यारा साबित करने पर आमादा है। ऐसे पिता की बेबसी और असहज स्थिति को नीरज ने पर्दे पर जीवंत कर दिखाया है। श्रुति टंडन की मां के किरदार में कोंकणा सेन शर्मा ने एक बार फिर खुद को बेहतरीन साबित किया। सीबीआई जांच अधिकारी अश्विन कुमार के रोल में इरफान खान का जवाब नहीं। इरफान जब-जब स्क्रीन पर आए तो कहानी की रफ्तार पहले से और तेज हो गई। फिल्म में इरफान की वाइफ बनी तब्बू को फुटेज बेशक कम मिली, लेकिन अपने किरदार में वह खूब जमी हैं। अन्य कलाकारों में यूपी पुलिस के इंस्पेक्टर धनीराम के किरदार में गजराज राव का अभिनय तारीफे काबिल है।

निर्देशन : स्क्रिप्ट के साथ मेघना गुलजार ने सौ फीसदी न्याय किया है। शूटिंग शुरू करने से पहले कंप्लीट होमवर्क और टीम की फुल रिसर्च ने फिल्म को एक ऐसी बेहतरीन फिल्म बना दिया है, जो हॉल से बाहर आने के बाद भी दर्शकों को इस दोहरे हत्याकांड पर कुछ सोचने को बाध्य करती है। मेघना ने हर किरदार से बेहतरीन काम लिया तो करीब सवा दो घंटे की फिल्म की स्पीड कहीं कम नहीं होने दी।

संगीत : मेघना और विशाल इस सच्चाई को शायद पहले से जानते थे कि ऐसे सब्जेक्ट पर बनने वाली फिल्म में गानों की गुंजाइश नहीं रहती, लेकिन इन दोनों ने कहानी की गति को धीमा करे बिना गानों को उस सिचुएशन पर बैकग्राउंड में पेश किया, जहां यह गाने कहानी का हिस्सा बन जाते हैं।

क्यों देंखे: अगर अच्छी, बेहतरीन फिल्मों के शौकीन हैं तो मिस न करें। देशभर को हिला देने वाले आरुषि हत्याकांड की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म को अगर हम इस दोहरे हत्याकांड पर तैयार एक श्वेतपत्र कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

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सिंह इज ब्लिंग

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चंद्रमोहन शर्मा

इस फिल्म से पहले अक्षय कुमार और प्रभु देवा की फिल्म राउडी राठौड़ बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही थी। अब करीब तीन साल बाद दोनों एकबार फिर साथ आए हैं। इस बार प्रभुदेवा ने अक्षय कुमार को उस लुक और अंदाज में पेश किया है, जिसमें वह पहले कई बार हिट हो चुके हैं। नमस्ते लंदन और सिंह इज किंग के बाद अक्षय एकबार फिर सरदार के किरदार में नजर आते हैं। प्रभुदेवा ने कहानी को भव्य अंदाज में पेश में किया है। हालांकि, फिल्म में कुछ नया तो नहीं है लेकिन अगर सिर्फ एंटरटेनमेंट और पैसा वसूल फिल्मों के शौकीन हैं तो फिल्म एकबार देखी जा सकती है।

कहानी : पंजाब के एक छोटे से गांव में रहने वाला रफ्तार सिंह (अक्षय कुमार) अपनी मां (रति अग्निहोत्री) का लाडला है, लेकिन उसके पिता (योगराज सिंह) उसे निखट्टू, कामचोर और सारा दिन आवारागर्दी करने वाला ऐसा बेटा मानते हैं जो कुछ नहीं कर सकता। रफ्तार अपनी धुन में मस्त रहता है सो अपनी सारी जिम्मेदारियों से हमेशा नजरें चुराता है। रफ्तार की इन हरकतों से तंग उसके पिता उसे गोवा में अपने दोस्त के पास नौकरी करने के लिए भेजते हैं। यहां उसकी मुलाकात सारा (एमी जैक्सन) से होती है। रफ्तार को मन ही मन सारा से प्यार हो जाता है मुश्किल बस इतनी है सारा सिर्फ अंग्रेजी जानती है और रफ्तार को इंग्लिश नहीं आती। ऐसे में रफ्तार अपने साथ एक ट्रांसलेटर एमिली (लारा दत्ता भूपति) को रखता है जो उसके दिल की बात सारा को समझा सके। दूसरी और एमिली अपनी नौकरी बचाने के लिए अक्सर गलत ट्रांसलेट करके दोनों को कन्फ्यूज करती है। कुछ अर्से बाद रफ्तार को पता चलता है सारा किसी खास मकसद से गोवा आई है। इसी बीच सारा के पीछे रोमानिया के अंडरवर्ल्ड डॉन मार्क (के के मेनन) के गुंडे गोवा पहुंच जाते हैं।


ऐक्टिंग : अगर अक्षय कुमार की ऐक्टिंग की बात करें तो उन्होंने इस बार पिछली फिल्मों के मुकाबले बेहतर ऐक्टिंग की है। छोटे से गांव के रफ्तार सिंह के किरदार में अक्षय स्क्रीन पर कभी आपको हंसाते हैं तो कुछ सीन्स में आंखें नम करते हैं। कुछ लोगों को अक्षय के किरदार में ओवर ऐक्टिंग और पिछली फिल्मों के किरदारों की कॉपी लग सकती है, लेकिन गहराई से देखें तो रफ्तार पिछले किरदारों से काफी हद तक जुदा है। एमिली के रोल में लंबे अर्से बाद स्क्रीन पर नजर आई लारा दत्ता भूपति के कुछ सीन आपको हंसाने का दम रखते हैं, लारा ट्रांसलेटर बनी है और उसका अंदाज कहीं-कहीं आपके चेहरे पर मुस्कान लाने का दम रखता है। एमी जैक्सन स्टंट और ऐक्शन सीन्स में गजब का काम किया है। फिल्म में एमी पर फिल्माए कुछ ऐक्शन सीन तो अक्षय के स्टंट सीन पर भी भारी पड़े हैं। मार्क के रोल के.के. मेनन को ज्यादा फुटेज तो नहीं मिली, लेकिन मेनन ने अच्छी ऐक्टिंग की है।

डायरेक्शन : प्रभुदेवा अलग स्टाइल की ऐसी फिल्में बनाते हैं जो मसाला-ऐक्शन फिल्मों के शौकीनों की कसौटी पर खरी उतरती हैं। इंटरवल से पहले की फिल्म आपको खूब हंसाती है, लेकिन इंटरवल के बाद कहानी गोवा, पंजाब, रोमानिया में जाकर कमजोर पड़ जाती है। ऐसे रफ्तार सिंह का पंजाब से गोवा आना और फिर रोमानिया जाना समझ से परे है। ऐसे में प्रभुदेवा ने ऐसी कहानी को जो इससे पहले भी गई बार पेश की जा चुकी है, लेकिन इसे नए स्टाइल में पेश किया है। फिल्म की स्क्रिप्ट गोवा से पंजाब और रोमानिया के चक्कर में बिखर जाती है, लेकिन इसके बावजूद प्रभुदेवा ने हंसी के कई सीन दमदार बनाए हैं। फिल्म का शुरुआती फ्लेवर सिंह इज किंग की याद दिलाता है। प्रभुदेवा की तारीफ करनी होगी कि उन्होनें कैमरामैन की मदद से पंजाब, गोवा और रोमानिया की खूबसूरती को बेहतरीन ढंग से फिल्माया है।

संगीत : फिल्म का शुरुआती गाना टुंग-टुंग मस्त टाइप गाना है, गाने में पंजाबी कलेवर का तड़का लगाया गया है। प्रभुदेवा की फिल्मों में वैसे भी गानों को अलग अंदाज में पेश किया जाता है। टाइटल ट्रैक सिंह और कौर, माही आजा का फिल्मांकन आंखों को अच्छा लगता है। सिनेमाहॉल में तो आप इन गानों का मजा ले सकते है, लेकिन सिनेमाहॉल से बाहर आने के बाद आपको शायद ही कोई गाना याद रह पाए। फिल्म के डायरेक्टर प्रभु देवा अच्छे कोरियॉग्राफर हैं, ऐसे में फिल्म के ज्यादातर गानों में साउथ टच वाले अलग स्टेप्स नजर आते हैं।

क्यों देखें : अगर आप अक्षय कुमार के फैन हैं और सिनेमाहॉल टेंशन भुलाने और बिना माथापच्ची करे हंसने-हंसाने जाते हैं तो आपके लिए यह एक पैसा वसूल फिल्म है, लेकिन फिल्मी पर्दे पर हर बार कुछ नया देखने वालों और रियलिस्टिक फिल्मों के शौकीनों को फिल्म अपसेट कर सकती है।

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जज्बा

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चंद्रमोहन शर्मा

संजय गुप्ता बॉलिवुड के उन डायरेक्टर्स में शामिल हैं जिनकी ज्यादातर फिल्में किसी न किसी विदेशी फिल्म का रीमेक होती हैं, या कहानी उस फिल्म से पूरी तरह से प्रेरित होती है। अर्से से वह सस्पेंस, थ्रिलर, एक्शन व मसाला फिल्में बनाते आए हैं। इसी कड़ी में 'जज्बा' भी आती है।

'जज्बा' आठ साल पहले रिलीज हुई साउथ कोरिया की फिल्म 'सेवन डेज' की रीमेक है। इस फिल्म के साथ ऐश्वर्या राय बच्चन का नाम भी जुड़ा है, जो हिंदी फिल्मों में पांच साल बाद लौटी हैं। संजय गुप्ता की 'कांटे', 'जिंदा' और 'शूटआउट ऐट लोखंडवाला' स्टाइल में बनी 'जज्बा' भी उसी स्टाइल में बनी ऐसी थ्रिलर फिल्म है, जो अंत तक बांधती तो जरूर है। लेकिन अगर आप इस फिल्म में कुछ नयापन देखने की चाह में हॉल में जाएंगे, तो यकीनन अपसेट होंगे।



कहानी : अनुराधा वर्मा (ऐश्वर्या राय) ऐसी हाई-प्रोफाइल वकील है, जो सिर्फ उन्हीं के केस लड़ती है जो उसकी भारी-भरकम फीस अदा कर सके। उसे इससे कोई लेना-देना नहीं कि वह किस मुजरिम का केस लड़कर उसे कोर्ट से बरी करा रही है। योहान (इरफान खान) अनुराधा का स्कूल टाइम से दोस्त है। योहान अब क्राइम ब्रांच में इंस्पेक्टर है। योहान एक विभागीय जांच में ऐसा फंसता है कि उसे इससे निकलने के लिए अपने आला अफसरों को डेढ़ करोड़ रुपये की घूस देने की नौबत आ जाती है। योहान चाहता है कि अनुराधा उसका केस लड़े, लेकिन उसके पास टाइम नहीं है। इसी बीच अचानक एक दिन अनुराधा की बेटी सनाया (सारा अर्जुन) का अपहरण हो जाता है। किडनैपर उसे अपनी बेटी को बचाने के लिए नियाज शेख (चंदन राय सान्याल) को जेल से छुड़ाने के लिए कहता है। अनुराधा अब चाहती है पुलिस उसकी बेटी के मामले में ज्यादा कुछ न करे। इसकी बड़ी वजह किडनैपर द्वारा उस पर हर वक्त नजर रखना भी है। अनुराधा जब केस की जांच शुरू करती है तो उसे पता चलता है नियाज ने सिया (प्रिया बैनर्जी) का रेप करने के बाद उसकी हत्या कर दी थी। उस वक्त इंस्पेक्टर योहान ने ही इस केस की जांच की और नियाज को अदालत ने मुजरिम पाकर सजा भी सुना दी थी। योहान को जब सनाया के अपहरण की खबर मिलती है तो वह अनुराधा की मदद करने का फैसला करता है।

ऐक्टिंग : एक मां और लॉयर के रोल में ऐश ने अच्छी एक्टिंग की है। उनके कमबैक के लिए यह फिल्म अच्छा प्लैटफॉर्म रही, पर कुछ सीन्स में वह ओवरएक्टिंग की शिकार रही हैं। इरफान का किरदार और उनकी बेहतरीन एक्टिंग के साथ-साथ उनके डायलॉग इस फिल्म की सबसे बडी यूएसपी हैं। योहान के किरदार में इरफान खूब जमे हैं, वहीं कुछ सीन्स में उनका किरदार सिंघम और चुलबुल पांडे की याद दिलाता है। लंबे अर्से बाद स्क्रीन पर नजर आईं शबाना आजमी ने भी बेहतरीन ऐक्टिंग की है। जैकी श्रॉफ एक टिपिकल विलन नजर आए, तो अतुल कुलकर्णी अपने रोल में फिट हैं।

यहां देखिए: ऐश्वर्या की फिल्म जज्बा का ऑफिशल ट्रेलर

डायरेक्शन : संजय गुप्ता की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने फिल्म को कहीं भी धीमा नहीं पड़ने दिया। शुरू से अंत तक संजय ने इस फिल्म को एक अनसुलझे केस की तहकीकात की तरह पेश किया है। इंटरवल के बाद कहानी ट्रैक से कुछ भटकने लगती है, लेकिन क्लाइमेक्स में संजय ने सब कुछ अच्छी तरह से हैंडल कर लिया है। फिल्म का कैमरा वर्क भी इसका सबसे जानदार पक्ष है।

संगीत : फिल्म की कहानी में इसकी जरा-भी गुंजाइश नहीं थी, ऐसे में कोई भी गाना आपको हॉल से बाहर आने के बाद याद नहीं रह पाता।

क्यों देंखें : इरफान खान का लाजवाब अभिनय, अंत तक बांधते सस्पेंस के साथ अर्से बाद ऐश्वर्या राय की बढ़िया कमबैक मूवी।

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ऑल इज वेल

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चंद्रमोहन शर्मा

निर्देशक उमेश शुक्ला
की पहचान आज भी उनकी पिछली सुपरहिट फिल्म 'ओह माय गॉड' से बनी है। लंबे अरसे बाद अब जब नामी स्टार्स के साथ उनकी फिल्म 'ऑल इज वेल' रिलीज हुई तो यकीनन उनके फैन्स को उनसे और ज्यादा मजेदार और दमदार फिल्म की उम्मीद थी, लेकिन अपने फैन्स की कसौटी पर इस बार शुक्ला खरा नहीं उतर पाए।

करीब सवा दो घंटे की इस फिल्म में शुक्ला ने अच्छा मेसेज देने की कोशिश तो की, लेकिन कमजोर स्टोरी के साथ स्लो क्लाइमैक्स के चलते मेसेज दर्शकों पर कोई भी असर नहीं छोड़ पाया।

कहानी: इंदर भल्ला (अभिषेक बच्चन) ने बचपन से ही अपने मां-बाप (सुप्रिया पाठक) और (ऋषि कपूर) को तकरार करते ही देखा। दोनों ने लव मैरेज की, लेकिन शादी के बाद लगातार आर्थिक तंगी के चलते दोनों में झगड़ा रहता है। बचपन से मां-बाप की इस तकरार को सुनते-सुनते अब उनके बेटे इंदर भल्ला का प्यार और शादी से भरोसा ही उठ चुका है। इंदर के पिता भल्ला साहब की हिमाचल के एक छोटे से कस्बे में बेकरी है, लेकिन इस बेकरी से इतनी कमाई नहीं है, जिससे उनकी फैमिली का गुजारा हो सके। इंदर को गीत-संगीत का शौक है। इसी फील्ड में अपना करियर बनाना चाहता है।

दूसरी और उसके पापा भल्ला साहब चाहते हैं इंदर भी अपने फैमिली बिजनस के साथ जुड़ जाए। पिता के साथ लगातार बढ़ते मतभेदों से परेशान होकर इंदर एक दिन घर छोड़कर विदेश चला जाता है, जहां जाकर उसका सपना अपना म्यूजिक एलबम निकालना है। करीब दस साल बाद इंदर को अचानक एक दिन फोन आता है कि उसके पिता अपनी बेकरी बेचना चाहते हैं, इसके लिए उन्हें उसके साइन की जरूरत है।

विदेश से घर वापस लौटने पर इंदर को पता चलता है कि उसकी मां ऐल्टशाइमर्ज़ डिज़ीज़ (भूलने की बीमारी) से पीड़ित हैं और भल्ला साहब पर करीब 20 लाख रुपये का कर्ज चढ़ा है। इसी के साथ फिल्म में पंजाबी फैमिली की निम्मी (असिन) की लव स्टोरी का प्लॉट भी है। निम्मी, इंदर से बेहद प्यार करती है और शादी करना चाहती है, लेकिन अपने माता-पिता की शादी का हाल देख इंदर अब निम्मी के साथ शादी के रिश्ते में नहीं बंधना चाहता। ऐसे में निम्मी की शादी किसी दूसरे लड़के के साथ तय हो जाती है।

ऐक्टिंग: अगर ऐक्टिंग की बात की जाए तो ऋषि कपूर ने एक बार फिर अपने किरदार को बेहतरीन ढंग से निभाया है। अभिषेक ने इस बार भी वही किया, जो इससे पहले अपनी फिल्मों में करते आए हैं। इंदर के किरदार में जूनियर बी पूरी तरह से अनफिट नजर आए। हां, चीमा के किरदार को मोहम्मद जीशान अय्यूब ने बेहतर ढंग से निभाया है। भल्ला साहब ने इनसे ही 20 लाख का कर्ज लिया है। सुप्रिया पाठक जैसी बेहतरीन कलाकार को कुछ करने का मौका ही नहीं मिला। असिन पूरी तरह से अपने रोल में अनफिट नजर आईं।

डायरेक्शन: इस बार उमेश शुक्ला ने एक रोड ट्रिप को बेस बनाकर फैमिली के बीच की दूरियों को खत्म करने की कोशिश तो की, लेकिन अपनी इस कोशिश में वह नाकाम रहे। फिल्म की सुस्त रफ्तार कई स्थान पर दर्शकों के सब्र की परीक्षा लेती है।

संगीत: फिल्म का एक गाना हफ्ते में चार शनिवार होने चाहिए पहले से कई म्यूजिक चार्ट में हिट चल रहा है। सोनाक्षी पर फिल्माया आइटम नंबर कुछ खास नहीं कर पाया।

क्यों देंखे: अगर टाइम पास करने के लिए फिल्म देखने जा रहे हैं तो फिल्म आपको निराश नहीं करेगी।

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बांके की क्रेज़ी बारात

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चंद्रमोहन शर्मा

इन दिनों मूवी टिकट के दाम सातवें आसमान पर हैं। जहां नामी स्टार्स की मेगा बजट फिल्में सिल्वर स्क्रीन पर दस्तक देने को तैयार है, ऐसे में छोटी बजट की फिल्मों को पर्दे तक पहुंचाना और इनके जरिए बिज़नस करना सबसे मुश्किल काम है। सैफ अली-कटरीना जैसे स्टार्स और बजरंगी भाईजान जैसे रेकॉर्ड कमाई करने वाली फिल्म के डायरेक्टर कबीर खान की फिल्म से हटकेग 'बांके की क्रेजी बरात' का हाल भी यही है। डायरेक्टर ऐजाज खान की राजपाल यादव स्टारर यह फिल्म गांवों में और कस्बों में कभी-कभार मीडिया की सुर्खियों में नजर आने वाली प्रॉक्सी मैरिज पर है।

कहानी : बांके (राजपाल यादव) करीब 30-32 साल की उम्र का ऐसा शख्स है, जिसकी कुंडली में कोई दोष है और उसकी शादी नहीं हो पा रही है। बांके भी बेहद अपसेट है। पंडितों को बांके की कुंडली में ऐसा दोष मिला, जिसके चलते उसकी शादी में हर बार ऐन वक्त पर रुकावट आना तय है। बांके के पिता (राकेश बेदी) भी परेशान हैं। बांके के चाचा (संजय मिश्रा) उसकी शादी कराने का प्लान बनाते हैं। बांके की शादी के इस प्लान में विराट (सत्यजीत दूबे) अपने पिता के कर्ज को चुकाने की मजबूरी में शामिल होता है। विराट शादी के मंडप में खूबसूरत अंजलि (टिया बाजपेयी) का दूल्हा तो बनता है, लेकिन बांके के चाचा के प्लान के मुताबिक इस शादी का असली दूल्हा तो बांके ही था।

ऐक्टिंग : संजय मिश्रा और विजय राज की जबर्दस्त ऐक्टिंग इस फिल्म की इकलौती यूएसपी है। राजपाल यादव ने इस बार भी वही कुछ किया जो पहले दर्जनों बार कर चुके हैं। टिया के लिए कुछ खास था हीं नही, राकेश बेदी अपने किरदार में परफेक्ट नजर आए।

निर्देशन : ऐजाज खान ने इस कहानी को पूरी ईमानदारी के साथ पर्दे पर उतारा तो जरूर, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट के साथ-साथ दो घंटे की कहानी के साथ दर्शकों को जोड़ नहीं पाए।

संगीत : कोई गाना ऐसा नहीं, जो म्यूजिक लवर्स की कसौटी पर खरा उतर सके।

क्यों देखें : इस बरात में दिमाग से काम लेने की जरा भी जरूरत नहीं, बस जाएं और दूल्हे की बेबसी देखकर लौट आएं।

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फैंटम

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चंद्रमोहन शर्मा

बॉक्स ऑफिस पर
सुपरहिट बजरंगी भाईजान ने पाकिस्तान को अलग नजरिए से पेश किया। फिल्म ने दोनों देशों में जबर्दस्त बिज़नस भी किया। कबीर की नई फिल्म फैंटम को पाकिस्तान सेंसर बोर्ड ने बिना देखे ही बैन कर दिया। दरअसल, प्रॉडक्शन कंपनी ने इसे मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले पर आधारित बताते हुए प्रमोशन शुरू की थी। यही वजह है कि पाक सेंसर बोर्ड ने स्क्रीनिंग के बिना ही फिल्म को बैन कर दिया। कबीर खान ने इस फिल्म से नेताओं को जो मेसेज देने की पहल की है, शांति और भाईचारे के नारों के बीच वे शायद ही इसे पसंद कर पाते।



कहानी : यह फिल्म 26/11 अटैक के बाद बनाए गए एक सीक्रेट मिशन के बारे में है। इसकी इजाजत सरकार के नुमांइदे देने को राजी नहीं हैं, क्योंकि ऐसा मिशन दो देशों के रिश्तों में हमेशा के लिए खटास पैदा कर सकता है। सरकार की मंजूरी के बिना ही इंडियन सीक्रेट सर्विस के हेड रॉय (सव्यसांची मुखर्जी) ऐसे खतरनाक मिशन को ग्रीन सिग्नल दे देते हैं। रॉय इस सीक्रेट मिशन के लिए दानियाल खान (सैफ अली खान) को चुनते हैं, जिन्हें आर्मी से निकाला जा चुका है। यही वजह है दानियाल के सेना से रिटायर पिता ने बेटे से बात करना बंद कर दिया है। अपना खोया हुआ सम्मान हासिल करने और पिता को काबिलियत दिखाने के लिए दानियाल मिशन की कमान संभालता है। मिशन के लिए लंदन पहुंचने पर दानियाल की मुलाकात नवाज मिस्त्री (कटरीना कैफ) से होती है। मिस्त्री भी उसके मिशन का हिस्सा बन जाती है। दानियाल और मिस्त्री अपने मिशन को पूरा करने के लिए लंदन, सीरिया, जर्काता होते हुए पाकिस्तान पहुंचकर मुंबई अटैक के दोषियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में कामयाब होते हैं।



ऐक्टिंग : पिछले कुछ अर्से में एक के बाद कई फ्लॉप दे चुके सैफ अली खान ने इस बार यकीनन बेहतरीन ऐक्टिंग की है। उन्होंने किरदार को जीवंत बनाया है। ऐक्शन सीन्स के लिए यकीनन सैफ ने जबर्दस्त मेहनत की है। पारसी लड़की नवाज मिस्त्री बनीं कटरीना के कुछ ऐक्शन सीन्स उनकी पिछली फिल्म एक था टाइगर की याद दिलाते हैं। रांझना, तनु वेड्स मनु रिर्टन्स के बाद ऑल इज वेल में नजर आए मोहम्मद जीशान अयूब ने इस बार भी अपने किरदार को कुछ ऐसे ढंग से पेश किया है, जो आपको बांधे रखता है। सीक्रेट सर्विस के हेड रॉय के किरदार में सव्यसांची मुखर्जी ने बेहतरीन ऐक्टिंग की है।




डायरेक्शन : कबीर खान की खासियत है कि वह हमेशा फिल्म की स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले पर पूरा काम करने के बाद ही शूटिंग शुरू करते हैं। फिल्म की शुरुआत जबर्दस्त है। इंटरवल के बाद अचानक कहानी कुछ भटकती नजर आती है। क्लाइमैक्स बेवजह लंबा खींचा गया है। कबीर ने कई देशों में शूटिंग कर सीन्स और बैकग्राउंड को तो दमदार बनाया, लेकिन क्लाइमैक्स में वैसा कमाल नहीं दिखा पाए। ऐक्शन सीन्स जबरदस्त और हैरतअंगेज हैं। कहानी को बेवजह इमोशनल टच देने की कोशिश बेकार लगती है। तारीफ करनी होगी कि सभी किरदारों के लिए कलाकारों का सही चयन किया गया है।

संगीत : फिल्म के गाने माहौल और सीन्स की डिमांड के मुताबिक हैं। कबीर खान की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने इन गानों को भी कहानी का हिस्सा बनाकर पेश किया।

क्यों देखें : कबीर खान ने जो मेसेज दिया है, फिल्म देखकर हॉल में बैठा हर दर्शक दिल से यही दुआ करता है कि कबीर ने सिल्वर स्क्रीन पर जो कर दिखाया, काश ऐसा रीयल लाइफ में भी हो जाए। अगर अगर आप सैफ, कटरीना के फैन हैं तो फिल्म जरूर देखें।

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वेडिंग पुलाव

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chandermohan.sharma@timesgroup.com

नई फिल्म

वेडिंग पुलाव

एनबीटी रेटिंग : 2 स्टार

बिजनेस रेटिंग : डेढ स्टार

जरूरी नहीं कि आप अगर किसी कला में नंबर वन हैं तो बाकी बची कलाओं में भी आपकी महारथ होगी, अगर ऐसा होता तो बॉलिवुड में बतौर कैमरामैन अपनी खास पहचान बना चुके बिनोद प्रधान डायरेक्शन की फील्ड में भी अपनी अलग पहचान छोड़ पाते। लेकिन बतौर डायरेक्टर इस फिल्म में बिनोद डायरेक्शन के हर मोर्चे पर पूरी तरह से नाकाम ही रहे। बिनोद ने देवदास, मुन्नाभाई एमबीबीएस, रंग दे बसंती, 2 स्टेट्स और भाग मिल्खा भाग जैसी सुपर हिट फिल्मों में बतौर सिनेमेटोग्राफर बेहतरीन काम किया। इस फिल्म का टाइटल काफी कैची है, इसी वजह से फिल्म का फर्स्ट लुक जब सोशल साइट पर आया तो इसे जमकर बाइट्स मिलीं।

कहानी : दिल्ली के एक फॉर्म हाउस में ठेठ पंजाबी फैमिली के आदित्य उर्फ आदि (दिगनाथ) की सगाई का फंक्शन जारी है। जल्दी ही रिया (सोनाली सहगल) से उसकी शादी होने वाली है। रिया शहर के एक टॉप बिजनेसमैन (परमीत सेठी) की बेटी है, कुछ साल पहले रिया के पापा और मम्मी (किट्टू गिडवानी) के बीच तलाक हो चुका है। सगाई का वक्त हो रहा है लेकिन आदि को इंतजार है अपनी बेस्ट फ्रेंड लंबू (अनुष्का रंजन) का जो अपने दोस्त की सगाई के लिए लंदन से आ रही है। सगाई के बाद अगले दिन लंबू , आदि को जे (करन ग्रोवर) के बारे में बताती है, जे एक आर्टिस्ट है और कुछ अर्से बाद लंबू और जे शादी करने की प्लानिंग कर रहे है। सगाई के बाद थाइलैंड के फाइव स्टार होटल में शादी की रस्मों का दौर शुरू होता है। इसी दौरान अनुष्का और आदि को अहसास होता है दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं। कहानी में एक एंगल होटल के जीएम लव कपूर (ऋषि कपूर) का भी है जो इन्हें मिलाने का काम भी कर रहा है।

एक्टिंग : अनुष्का रंजन ने अच्छी एक्टिंग की है, सतीश कौशिक और उपासना सिंह दोनों ने एक बार फिर वही पुरानी स्टाइल पेश की है। दोनों बेवजह हंसते और कुछ भी करते नजर आते हैं। परमीत सेठी और किट्टू गिडवानी अपने किरदार को बस निभा भर गए। गुलाबो बनी हिमानी शिवपुरी ने ओवर एक्टिंग की है। सोनाली सहगल, करन ग्रोवर और साउथ से आए दिग्नाथ मछाले ने बिना तैयारी किए कैमरे सामने शॉट किए और चले गए।

डायरेक्शन : बतौर डायरेक्टर बिनोद प्रधान फिल्म के सभी मोर्चो पर नाकाम ही रहे।

संगीत : बैकग्राउंड स्कोर के साथ साथ 'जानिया' और टाइटल ट्रैक अच्छा है जिसे अच्छे ढंग से फिल्म में फिट किया गया है।

क्यों देखें : अगर आप टाइमपास के लिए मूवी देखने जा रहे हैं तो थाईलैंड की बेहतरीन लोकेशन आपके लिए एक्स्ट्रा बोनस है। वैसे यह पुलाव ज्यादा जायकेदार नहीं है, जिसे चखने के लिए आप मोटी रकम खर्च करें।

कलाकार : सोनाली सहगल, करन ग्रोवर, अनुष्का रंजन, दिग्नाथ मंछाले, सतीश कौशिक, उपासना सिंह , परमीत सेठी, हिमानी शिवपुरी, परमीत सेठी, किट्टू गिडवानी, और ऋषि कपूर, निर्माता : शशि रंजन, निर्देशक : बिनोद प्रधान, गीत : इरफान सिद्दीकी, संगीत : सलीम-सुलेमान, सेंसर सर्टिफिकेट : यूए , अवधि : 122 मिनट

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प्यार का पंचनामा 2

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चंद्रमोहन शर्मा

​करीब चार साल
पहले यंग डायरेक्टर लव रंजन के निर्देशन में बनी प्यार का पंचनामा रिलीज हुई तो पहले दिन की बॉक्स ओपनिंग बेहद कमजोर रही। लेकिन क्रिटिक्स रिव्यू आने के बाद यंगस्टर्स ने इस फिल्म को हाथोंहाथ लिया। बाद में यह फिल्म 2011 की बेहतरीन फिल्मों की लिस्ट में शामिल हुई। बॉक्स आफिस पर जबर्दस्त कलेक्शन मिला। पिछली फिल्म इंटरवल के बाद कुछ सीरियस रही थी लेकिन इस बार स्टार्ट टु ऐंड लाइट कॉमिडी में पेश किया। ऐसा लगता है सेंसर ने अडल्ट सर्टिफिकेट देने से पहले भी कई सीन्स में कैंची चलाई है। फिल्म में बार-बार 'बीप' की आवाज सुनाई देगी।




कहानी
कहानी तीन दोस्तों तीन अंशुल गोगो (कार्तिक आर्यन), सिद्धार्थ उर्फ चौका (सनी सिंह) और तरुण उर्फ ठाकुर (ओंकार कपूर) के आसपास घूमती है। बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों में तीनों अच्छी सैलरी वाली जॉब कर करते हैं। फैमिली से दूर दिल्ली के पॉश एरिया में तीनों एक आलीशान फ्लैट में साथ रहते हैं। इन तीनों को तलाश है सच्चे प्यार और अपने लिए लाइफ पार्टनर की, सो तीनों के बीच अक्सर इसी बात को लेकर बहस होती रहती है कब किसकी लाइफ में खूबसूरत लड़की की एंट्री होगी। अचानक इन तीनों की लाइफ में रुचिका उर्फ चीकू (नुसरत भरूचा), सुप्रिया (सोनाली सहगल) और कुसुम (इशिता शर्मा) आती हैं। तीनों को लगता है अब उनकी लाइफ भी मस्ती औैर रोमांस के साथ गुजरने वाली है। कुसुम पर अपना दिल हार चुके ठाकुर साहब का क्रेडिट कार्ड उसकी फरमाइशें पूरी करने में ब्लॉक हो जाता है। चौका जब सुप्रिया को अपनी पत्नी बनाने का सपना लिए उसके घर पहुंचता है उसके पापा, रंधावा साहब (शरत सक्सेना) और मम्मी को एक ऐसा फ्री का नौकर मिल जाता है जो उनके किचन में गैस सिलेंडर पहुंचाने के साथ सुप्रिया की मम्मी को शॉपिंग कराने के काम में बिजी हो जाता है। रुचिका यानी चीकू से मिलने के बाद अंशुल को लगता है उसे अपने सपनों की रानी मिल गई, दिनभर चीकू के नखरे उठाने में लगे गोगो को उस वक्त जबर्दस्त झटका लगता है जब चीकू के बचपन का एक दोस्त उसकी जिदंगी में लौटता है।

यहां देखें प्यार का पंचनामा 2 का ट्रेलर

ऐक्टिंग
फिल्म की तीनों लीड जोड़ियों में नजर आए सभी स्टार्स ने बेहतरीन परफॉर्म किया है। तारीफ करनी होगी कार्तिक आर्यन की जिन्होंने एकबार फिर साबित किया की ऐक्टिंग की एबीसी से लेकर एक्स वाई जेड तक की उन्हें समझ है। गोगो पर फिल्माया एक लंबा संवाद हॉल में बैठे दर्शकों को तालियां बजाने के लिए मजबूर करता है। गोगो के किरदार में कार्तिक ने बेस्ट परफॉर्मेस दी है।

डायरेक्शन
लव रंजन ने ऐसी स्क्रिप्ट पर अच्छा काम किया है जो बेचारे बैचलर्स के दर्द को उजागर करती है। सीक्वल को बनने में चार साल का वक्त लगा, ऐसा लगता है इस बीच रंजन ने लड़कियों की पसंद और उनके मूड पर अच्छी रिसर्च की है। इस बार किरदारों के नाम ज्यादा कैची हैं।

संगीत :
पिछली फिल्म का ट्रैक इस फिल्म में भी बैकग्रांउड में सुनाई देता है, अगर गाने कम कर दिए जाते तो फिल्म की रफ़्तार ज्यादा तेज हो सकती थी।

क्यों देखें :
अगर आप किसी रिलेशनशिप में हैं या फिर मैरिड हैं तो यह फिल्म आपके लिए है। यूथ को यह काफी पसंद आने वाली है। सभी कलाकारों की बेहतरीन एक्टिंग फिल्म की यूएसपी है। फिल्म अडल्ट है। साफ सुथरी फिल्में देखने वालों की कसौटी पर खरी नहीं उतरेगी।

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शानदार

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चंद्रमोहन शर्मा

कम बजट में
क्वीन जैसी सुपरहिट फिल्म बना चुके यंग डायरेक्टर विकास बहल ने अपनी मेगा बजट फिल्म शानदार में शाहिद और आलिया को तो ले लिया, लेकिन सिल्वर स्क्रीन पर ऐसा कुछ भी नहीं कर पाए कि उनकी फिल्म को शानदार कहा जाए। बॉक्स आफिस पर पहली बार नजर आई शाहिद और आलिया की जोड़ी ने बेशक अपनी अच्छी केमिस्ट्री के दम पर ऑडियंस को जरूर हंसाया है। हालांकि, बेहद कमजोर स्क्रिप्ट , स्लो स्पीड, एनिमेशन तकनीक और बैकग्राउंड में नसीरुद्दीन शाह की आवाज इस फिल्म को दमदार बनाने की बजाए कमजोर ही करती है। विकास की यह शानदार, पहली फिल्मों के मुकाबले बिल्कुल भी जबरदस्त नहीं है।



कहानी

अरबपति अरोड़ा फैमिली में ममी जी यानी कमला अरोड़ा (सुषमा सेठ) का राज होता है। कमला अरोड़ा का बड़ा बेटा विपिन (पंकज कपूर) एक अनाथ लड़की आलिया (आलिया भट्ट) को घर लेकर आता है। कमला इस फैमिली की पूरी प्रॉपर्टी की अकेली मालकिन हैं। 70 से ज्यादा की उम्र में हर वक्त वीलचेयर पर नजर आने वाली कमला का फैमिली में ऐसा खौफ है कि वह अपने तीनों जावन बेटों के साथ भी नौकरों जैसा सलूक करती है। घर में विपिन की पत्नी और मां कमला भी अनाथ आलिया को हमेशा यतीम होने का ताना कसती हैं। विपिन की एक बेटी ईशा अरोड़ा (सना कपूर) है, कुछ दिन बाद ईशा की शादी एक अमीर व्यापारी हैरी (संजय कपूर) के छोटे बेटे रॉबिन (दिलजीत दोसांझ) से होने वाली है। दरअसल, यह शादी दो रईस घरानों के बीच एक सीक्रेट बिज़नस डील की तरह है। कमला अपने बड़े बेटे विपिन की बेटी ईशा की शादी अपने औद्योगिक घरानों को बैंक करप्ट होने से बचाने के लिए कर रही है। विपिन और ईशा न चाहते हुए भी इस मैरिज डील का हिस्सा बनते हैं। शहर से दूर एक आलीशान लोकेशन पर होने वाली इस शानदार वेडिंग को ऑर्गेनाइज करने की जिम्मेदारी जगजिंदर जोगिंदर उर्फ जेजे (शाहिद कपूर) की है। यहीं पर जेजे की मुलाकात विपिन की दूसरी बेटी आलिया से होती है। दोनों को ही रात में न सो पाने की बीमारी है। कुछ दिन पहले विपिन की कार के सामने जेजे की मोटरसाइकल टकरा गई थी और यहीं पर इन दोनों के बीच कुछ ऐसे हालात बने कि विपिन, जेजे से नफरत करने लगता है। एक दिन विपिन को ईशा से पता चलता है कि जेजे और आलिया एक-दूसरे को पसंद करते हैं तो विपिन इन दोनों के बीच दीवार बन जाता है। शुरुआत से लास्ट तक इस फिल्म में शादी के फंक्शन के अलावा सस्पेंस भी है जो हर वक्त गोल्ड के साथ नजर आने वाली फंडवानी फैमिली की हकीकत को भी खोलता है।



ऐक्टिंग
शाहिद कपूर बिंदास किरदार में नजर आए। आलिया का रोल ठीक ठाक रहा है। केमिस्ट्री अच्छी रही है। यूएसपी पंकज कपूर की ऐक्टिंग है। सना कपूर ने अपने मोटी ईशा के किरदार में जान डाली है।

डायरेक्शन
फिल्म की स्क्रिप्ट कन्फ्यूजिंग है। यही सबसे बड़ी कमजोरी है। बेवजह एनिमेशन और शादी में शॉ ऑफ दिखाने के नाम पर इस बार विकास ने करोड़ों रुपये फूंक डाले।

संगीत



टाइटिल सॉन्ग और रायता फैल गया का फिल्मांकन डायरेक्टर विकास ने स्टोरी की डिमांड के मुताबिक किया है।

क्यों देखें
आलिया-शाहिद के बीच अच्छी केमिस्ट्री, गजब लोकेशन और आलीशान सेट।

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गुड्डू की गन

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चंद्रमोहन शर्मा

'गुड्डू की गन' टाइटल से ही आप समझ सकते हैं कि फिल्म में क्या है। अफसोस इस बात का है कि फिल्म देखकर आप खुद को ठगा महसूस करेंगे। पिछले कुछ अर्से से बॉक्स ऑफिस पर कुछ हॉट, डबल मीनिंग, सेक्सी फिल्मों ने औसत से ज्यादा बिजनस कर दिखाया। कुछ अर्सा पहले आई सेक्स कॉमिडी फिल्म हंटर और इसी मूवी के लीड किरदार में काफी समानताएं हैं। हालांकि ये किरदार दर्शकों की उस क्लास को भी प्रभावित नहीं कर पाते, जिसे इन फिल्मों का शौकीन माना जाता है। गुड्डू की गन देखने के बाद मानना होगा कि अगर कहानी, स्क्रिप्ट में दम न हो और सिर्फ सेक्स परोसने के नाम पर हॉट फिल्म बनाई जाए तो भी बॉक्स आफिस पर ऐसी फिल्म के टिकने के आसार कम हैं।

कहानी: कोलकाता में घर-घर जाकर वॉशिंग पाउडर बेचने वाला सेल्समैन गुड्डू (कुणाल खेमू) अपने दोस्त लड्डू (सुमित व्यास) के साथ रहता है। गुड्डू कुछ ज्यादा ही रंगीनमिजाज टाइप का है। शादीशुदा महिलाओं के साथ मौज-मस्ती करना और रिश्ते बनाना उसकी आदत में शामिल है। दरअसल 'गुड्डू की गन' यानी उसका गुप्तांग कहीं ज्यादा पॉवरफुल है। जिस महिला के साथ गुड्डू का रिश्ता बनता है, वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है। गुड्डू अब खुद को ऐसा इंसान समझता है जिसके लिए महिलाएं अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार बैठी हैं। इसी बीच गुड्डू एक सुंदर लड़की भोली (अपर्णा शर्मा) के साथ रिश्ता बनाकर छोड़ देता है। भोली के दादाजी को कई तांत्रिक शक्तियां भी प्राप्त हैं। दादाजी गुड्डू को ऐसा शाप देते हैं कि उसका गुप्तांग गोल्ड का हो जाता है। इसके बाद अचानक गुड्डू की डिमांड बढ़ जाती है। माफिया के लोग गुड्डू की गोल्डन गन को हासिल करने की दौड़ में लग जाते हैं। आखिर गुड्डू दादाजी से मिलता है, जो उसे बताते हैं कि जिस दिन उसे सच्चा प्यार मिलेगा, सब ठीक हो जाएगा। अचानक गुड्डू की मुलाकात काली (पायल सरकार) से होती है। पायल के सामने आते ही गुड्डू ठीक हो जाता है, लेकिन उसके जाते ही फिर वैसा।

एक्टिंग: करियर में पहली बार शायद कुणाल खेमू ने बिहारी युवक का किरदार निभाया है और अपने किरदार में परफेक्ट रहे हैं। सुमित व्यास भी लडडू के रोल में अच्छे जमे हैं। न्यूकमर पायल सरकार ने अपने किरदार को बस निभा दिया है। अपर्णा शर्मा ने भोली के किरदार को अच्छे ढंग से निभाया है।

डायरेक्शन: डायरेक्टर जोड़ी का दावा है कि फिल्म एक हॉट सेक्सी कॉमिडी फिल्म है। हालांकि दो घंटे की फिल्म में ऐसा एक-आध सीन ही है जो आपको हंसा सके। फिल्म की शुरूआत तो ठीक-ठाक होती है, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म कुछ ऐसी भटकती है कि कौन सा किरदार क्या कर रहा है, समझ से परे लगता है। बेवजह कहानी में ट्विस्ट लाने के लिए गुड्डू की लव स्टोरी का किस्सा भी फिल्म में जोड़ा गया है।

संगीत: यूं तो फिल्म में एक कव्वाली भी फिट की गई है, लेकिन किसी भी गाने में इतना दम नहीं है जो इस सुस्त फिल्म में थोड़ी सी रफ्तार डाल सके।



क्यों देखें: अगर कुछ नहीं कर रहे हैं और सेंसर का अडल्ट सर्टिफिकेट या फिल्म के नाम में गन शब्द जुड़ा देखकर टिकट खरीद रहे हैं, तो ठीक है। अच्छी फिल्मों के शौकीन इस गन से दूर ही रहें तो बेहतर होगा।

कलाकार: कुणाल खेमू, पायल सरकार, अपर्णा शर्मा, बृजेंद्र काला, फ्लोरा सैनी, जमील खान, सुमित व्यास,

निर्देशन: शांतुन छिब्बर, शीर्षक आनंद,

गीत: विमल कश्यप, असीम अहमद,

संगीत: राजू सरदार, गजेंद्र, विक्रम,

सेंसर सर्टिफिकेट: एडल्ट,

अवधि : 131 मिनट

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यारा सिली सिली

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चंद्रमोहन शर्मा

कुछ अर्सा पहले आई करीना कपूर और राहुल बोस स्टारर फिल्म चमेली अगर आपने देखी है तो इस फिल्म के कुछ सीन्स आपको उसकी याद दिलाएंगे। डायरेक्टर सुभाष सहगल की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने कुछ अर्सा पहले हेट स्टोरी में बेहद बोल्ड अंदाज में नजर आई पाउली डैम को अपनी इस फिल्म के लीड किरदार में लिया लेकिन पाउली को अलग अंदाज में पेश किया। अगर सेंसर बोर्ड ने भी इस फिल्म को अडल्ट सर्टिफिकेट दिया है तो इसकी बस यही वजह रही होगी कि पाउली के ज्यादातर डायलॉग शब्दों की अश्लीलता की कैटिगरी में आते हैं। सुभाष की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने ऐसी फिल्म में भी एक अच्छा मेसेज देने की कोशिश की है।



कहानी
मैडम के कोठे पर आने वाले कस्टमर्स की पहली पसंद हमेशा मल्लिका (पाउली दाम) ही रहती है। मल्लिका का अंदाज अलग है, वह कुछ भी कहीं भी बोलती है उसे फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला क्या सोच रहा है। अचानक एक दिन मल्लिका के कोठे पर आने वाले कुछ रुटीन यंग कस्टमर्स अपने साथ सैम (परमवर्त चटर्जी) को लेकर आते हैं। सैम बेहद शर्मीला है, किसी लड़की को टच करना तो दूर उससे बात करते हुए भी आंखें नीचे करके बात करता है। कुछ दिन बाद सैम की शादी (विद्या मालवड़े) से होने वाली है। बस अपने दोस्त की वर्जनिटी को खत्म करने के मकसद से उसके दो खास दोस्त उसे मैडम के कोठे पर लाते हैं और सैम को मल्ल्किा के साथ रात गुजारनी है। सैम की सादगी और उसका स्वभाव मल्लिका को पहले तो बुरा लगता है लेकिन कुछ देर बाद उसके सामने सैम की अच्छाइयां आने लगती हैं। इस रात में सैम और मल्लिका एक दूसरे से खूब बातें करते हैं, एक दूसरे को अच्छी तरह से जानने के बाद देर रात मार्केट में घूमने भी जाते हैं। सुबह सैम मल्लिका को उसके यहां छोड़कर लौटता है। करीब पांच साल बाद दोनों की मुलाकात दिल्ली आने वाली ट्रेन में एकबार फिर होती है मल्लिका को मालूम है सैम की शादी हो चुकी है, सैम अपने सामने बैठी मल्लिका को देख रहा है जो अब पूरी तरह से बदल चुकी है।

ऐक्टिंग
मल्लिका के किरदार में पाउली ने अच्छी एक्टिंग की है, विद्या को ज्यादा सीन्स नहीं मिले। सैम के किरदार में परमवर्त चटर्जी ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है।

निर्देशन
इंटरवल से पहले फिल्म बेहद धीमी गति से आगे चलती है, लेकिन इंटरवल के बाद सुभाष दर्शकों को बांधने में जरूर सफल रहे हैं।

संगीत
ऐसा कोई गाना नहीं है जो हॉल से बाहर आकर याद रह जाए।

क्यों देखें
पाउली दाम का अलग अंदाज और ऐसी कहानी जो महिला शक्ति को दर्शाती है।

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चार्ली के चक्कर में

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चंद्रमोहन शर्मा

आमतौर से दिवाली से पहले के वीक में ऐसी फिल्में ही बॉक्स ऑफिस पर दस्तक देती है जिनकी अप्रोच सीमित और सब्जेक्ट कुछ हटकर होता है। ऐसे फिल्में फैमिली क्लास की कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं लेकिन एक खास वर्ग जरूर इन्हें पसंद करता है। यंग डायरेक्टर मनीष श्रीवास्तव की इस फिल्म में भी ऐसा मसाला मौजूद है जो मल्टिप्लेक्स कल्चर और जेन एक्स की कसौटी पर खरा उतरने का दम रखता है।

कहानी
हुसैनी (विकास आनंद) की हत्या की जांच एसीपी संकेत पुजारी (नसीरुद्दीन शाह) इंस्पेक्टर समीरा (औरोशिखा) के साथ कर रहा है। केस की जांच के दौरान इन दोनों के हाथ कुछ विडियो फुटेज लगते हैं। इनको संकेत और समीरा बार-बार देखते हैं, इन्हें लगता है ये टेप्स उन्हें कातिल तक पहुंचा सकती हैं। इन्हीं टेप्स से उन्हें दीपक उर्फ आदि (आनंद तिवारी), पैटी (आंचल नंदजोग्र), नीना (मानसी) और जीवन (निशांत लाल) के बारे में पता लगता है। यहीं से कहानी ऐसे चक्रव्यूह में जाकर फंसती है कि हॉल में बैठा दर्शक भी सोच में पड़ जाता है। हुसैनी के मर्डर से जुड़े तार दुबई तक पहुंचते हैं संकेत को जांच में पता लगता है कि हुसैनी का रिश्ता दुबई में बैठे डॉन अजमत खान से है। इस विडियो में ऐसा कुछ भी है जो सोची समझी प्लानिंग करके तैयार किया गया है। संकेत और समीरा को इस टेप के बारे में ऐसा एक राज पता लगता है जिसे सुनकर दोनों के पैरों तले जमीं निकल जाती है।



ऐक्टिंग
डायरेक्टर मनीष की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने बॉक्स ऑफिस का मोह किए बिना किरदारों के मुताबिक फिल्म की स्टार कॉस्ट चुनी। सैम के रेाल में अमित सयाल ने बेहतरीन ऐक्टिंग की है। एकबार फिर पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में नसीरुद्दीन शाह छा गए। ज्यादातर नए कलाकार है लेकिन हर किसी ने अपने किरदार को अच्छे ढंग से निभाया है। खासकर आदि के रोल में आनंद तिवारी ने अपनी पहचान छोड़ी तो अन्य कलाकारों में मानसी रच, आंचल नन्द्रजोग, दिशा अरोड़ा, निशांत लाल, सिराज मुस्तफा, सनम सिंह सहित सभी ने अपने किरदार को अच्छे ढंग से निभाया है।

डायरेक्शन
इस फिल्म की कहानी भी मनीष ने लिखी है शायद यही वजह है उनकी कहानी और किरदारों पर पूरी पकड़ है। बेशक इंटरवल से पहले कहानी की रफ्तार कुछ धीमी है लेकिन इंटरवल के बाद कहानी ट्रैक पर फुल स्पीड से लौटती है। हर किरदार को मनीष ने पावरफुल बनाने की अच्छी कोशिश की है। कुछ सीन्स को जरूरत से ज्यादा लंबा किया गया है। नसीर जब भी स्क्रीन पर नजर आते हैं, कहानी की रफ्तार तेज हो जाती है।

क्यों देखें
अगर आप डार्क और लीक से हटकर बनी सस्पेंस थ्रिलर फिल्मों को कुछ ज्यादा ही पसंद करते हैं तो इस फिल्म को एकबार देखा जा सकता है।

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प्रेम रतन धन पायो

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चंद्रमोहन शर्मा

अगर सूरज बड़जात्या और सलमान खान की पहली फिल्म 'मैंने प्यार किया' की बात की जाए तो बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी के नए रेकॉर्ड बनाने वाली इस फिल्म से पहले बॉलिवुड में इन दोनों की कोई पहचान नहीं थी। आलम यह था राजश्री जैसे टॉप बैनर के तले बनी यह फिल्म बनने के कई महीने बाद तक रिलीज के इंतजार में डिब्बे में पड़ी रही थी। फिल्म जब रिलीज हुई तो पहले दिन पहले शो में बीस से तीस फीसदी की बेहद कमजोर ऑक्यूपेंसी रही, लेकिन पहले शो के बाद फिल्म ने राजश्री बैनर के तले बनी पिछली सभी फिल्मों की कलेक्शन और कामयाबी के रेकॉर्ड ब्रेक कर दिए। बस यहीं से सूरज और सलमान की जोड़ी को कामयाबी की गारंटी माना जाने लगा, लेकिन तीन घंटे लंबी इस फिल्म की कहानी इतनी ही छोटी है और सीन दर सीन देखकर ऐसा लगता है जैसे सूरज बेवजह फिल्म के हर सीन को लंबा करने पर तुले हैं। अगर सिनेमा हॉल के हाउसफुल शो में दर्शक इन लंबे सीन्स को पसंद करके ताली बजा रहे थे तो यकीनन यह सलमान के स्टारडम का कमाल ही कहा जाएगा। इस बार सूरज ने अपनी फिल्म पर दिल खोलकर पैसा लगाया। शीशमहल का सेट भव्य और गजब का नजर आता है।

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कहानी : प्रेम एक बड़े दिलवाला लेकिन सीधा-साधा राम भक्त है, जो संजय मिश्रा की राम-लीला कंपनी से जुड़ा है। रामलीला का मालिक बेशक कंजूस है, लेकिन उसका अपनी रामलीला को करने का स्टाइल बेहद फैशनेबल और भव्य है। रामलीला में प्रेम जो भी कमाता है उसका बड़ा हिस्सा रानी मैथिली (सोनम कपूर) के एनजीओ में दान करता है। राजकुमारी मैथिली के सोशल कामों का प्रेम इस तरह दीवाना है कि किसी भी सूरत में एक बार राजकुमारी से मिलना चाहता है। प्रेम की इस कहानी के साथ फिल्म में प्रीतमपुर के युवराज विजय सिंह (सलमान खान) की कहानी भी चलती है। विजय का कुछ दिन बाद राजतिलक होने वाला है, विजय सिंह की सगाई राजकुमारी मैथिली से उसके परिवार वालों ने बहुत पहले ही तय कर दी थी। युवराज विजय का छोटा भाई अजय सिंह (नील नितिन मुकेश) अपने मैनेजर चिराज ( अरमान कोहली) और युवराज की सेक्रेटरी के साथ मिलकर एक साजिश रचकर युवराज पर जानलेवा हमला करवाता है। इस हमले में विजय सिंह किसी तरह से बच जाता है ,राजघराने के वफादार दीवान साहब (अनुपम खेर) एक खूफिया किले में युवराज का इलाज करवाते हैं। विजय पर अटैक उसकी अपनी फैमिली के लोगों ने किया, इस साजिश को बेनकाब करने के लिए दीवान साहब प्रेम को युवराज बनाकर पेश करते हैं।

ऐक्टिंग : फिल्म में सलमान फुल फॉर्म में नजर आते हैं। प्रेम और विजय के किरदार में सलमान खूब जमे हैं। सलमान की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने कई ऐसे सीन्स को भी अपनी मौजूदगी से दमदार बना दिया जो बेवजह डाले गए लगते हैं। सलमान के फैंस के लिए फिल्म परफेक्ट दिवाली गिफ्ट है। राजकुमारी मैथिली के किरदार में सोनम कपूर इस फिल्म की कमजोर कड़ी लगती हैं, सोनम को सूरज ने शायद इसीलिए कम डायलॉग दिए हैं। अनुपम खेर दीवान साहब के रोल में खूब जमे हैं। दीपक डोबरियाल को जो करने के लिए दिया उसे उन्होंने निभा भर दिया। नील नीतिन मुकेश का किरदार कमजोर लिखा गया तो अरमान कोहली सत्तर अस्सी के दशक की फिल्मों में नजर आने वाले विलन लगे। स्वरा भास्कर बस ठीकठाक रहीं, लेकिन संजय मिश्रा ने कम सीन्स के बावजूद अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।



डायरेक्शन : फिल्म की शुरुआत में स्क्रीन पवित्र श्लोक और रामलीला देखकर समझ आ जाता है सूरज क्या दिखाने वाले हैं। हां, इस बार उन्होंने आज बॉक्स आफिस के बादशाह सलमान खान के माध्यम से पूर्ण नैतिकता और प्रेम की परिभाषा को दिखाया है। फिल्म में पारिवारिक मूल्यों, रिश्ते वाले सीन बेवजह लंबे किए गए हैं। ऐसा लगता है कि कमज़ोर स्क्रिप्ट की वजह से सूरज ने फिल्म के लगभग हर सीन में सलमान को फिट कर डैमेज कंट्रोल किया। सोनम कपूर के सीन्स उसी वक्त अच्छे लगते हैं जब सलमान स्क्रीन पर उनके साथ नजर आते हैं। सूरज इस फिल्म में हिरोइन का किरदार पावरफुल नहीं बना पाए।

संगीत : सलमान के साथ कई हिट फिल्म कर चुके हिमेश रेशमिया ने इस फिल्म के लिए पूरे दस गाने बनाए, लेकिन अगर टाइटिल ट्रैक को छोड़ दिया जाए तो फिल्म का हर गाना ज़बरदस्ती ठूंसा हुआ लगता है।

क्यों देखें : अगर आप सलमान खान के दीवाने हैं तो उनका डबल किरदार ही आपके लिए काफी होगा। फैमिली ड्रामा है, लेकिन इस बार 'हम आपके हैं कौन' या 'हम साथ साथ हैं' वाली फैमिली नहीं है। वहीं फिल्म की कमजोर स्क्रिप्ट और जरूरत से ज्यादा लंबाई कई सीन्स में आपके सब्र की परीक्षा ले सकती है।

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एक्स-पास्ट इज प्रजेंट

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चंद्रमोहन शर्मा

ऐक्टर और डायरेक्टर
रजत कपूर की बॉलिवुड में अलग इमेज बनी हुई है। विनय पाठक और रजत कपूर की जोड़ी ने बॉक्स ऑफिस पर 'भेजा फ्राई' जैसी सीमित बजट में कई फिल्में भी बनाईं, जिन्हें पब्लिक और क्रिटिक्स का अच्छा रिस्पॉन्स भी मिला। इस शुक्रवार को रिलीज हो रही रजत स्टारर इस फिल्म में उनके साथ ग्लैमर इंडस्ट्री में अपनी कुछ अलग पहचान बना चुकीं कई ऐक्ट्रेस हैं, लेकिन स्टार्ट टू लास्ट तक फिल्म रजत कपूर के किरदार के आस-पास ही घूमती रहती है। करीब डेढ़ घंटे की इस फिल्म के लिए ग्यारह डायरेक्टरों ने अपनी अलग-अलग कहानी पर काम किया, लेकिन स्क्रिप्ट के नजरिए से फिल्म बिखरी नजर आती है। फिल्म के किरदारों का कहीं कोई सामंजस्य नहीं बन पाता और हर दस बारह मिनट में कहानी में एक नया ऐसा टर्न आता है जो समझ से परे लगता है। कई डायरेक्टर्स ने अपने-अपने हिस्से को बेहद बोल्ड बनाने की कोशिश तो की, लेकिन इसमें नाकामयाब रहे।

कहानी : किशन (रजत कपूर) लीक से हटकर अलग टाइप की फिल्में बनाने वाला ऐसा फिल्मकार है, जिसकी जिंदगी में कई महिलाएं आती हैं। वह अब तक करीब पंद्रह-बीस फिल्म बना चुका है, लेकिन उसकी दर्शकों और ट्रेड में अभी तक खास पहचान नहीं बन पाई है। किशन खुद को के कहलाना ज्यादा पंसद करता है। अपनी लाइफ में आने वाली नई लड़की को वह अपना इतना ही परिचय देता है। के को लाइफ में सच्चा प्यार भी हो चुका है। रिजा (राधिका आप्टे) के साथ के ने अपनी लाइफ के बेहतरीन कई साल गुजारे हैं, लेकिन उसके बाद उसे पिछली जिंदगी की उन कड़वी यादों ने परेशान करना शुरू कर दिया जब वह अपनी पहचान बनाने के लिए स्ट्रगल कर रहा था। इस दौर में रजत अपनी अगली फिल्म के लिए हर बार नई कहानी पर काम शुरू करता, लेकिन उसके साथ कई तरह की ऐसी घटनाएं घटती हैं कि अपनी फिल्म की लीड ऐक्ट्रेस के लिए उसकी भागदौड़ उतनी ही ज्यादा बढ़ जाती है। के को तो तलाश थी अपनी नई अलग कहानी के लिए नए चेहरे की, लेकिन उसकी अपनी जिंदगी ही अब तक बिखर कर ऐसे मोड़ पर चुकी थी जहां उसे आगे का कुछ नहीं सूझ रहा है।

ऐक्टिंग : के यानी किशन के किरदार में रजत कपूर एकबार उसी लुक में नजर आए, जिसमें आप उन्हें पहले भी कई बार देख चुके हैं, लेकिन रजत ने अपने किरदार की डिमांड के मुताबिक काम जरूर किया। महिला कलाकारों की लंबी भीड़ में स्वरा भास्कर और राधिका आप्टे अपनी पहचान साबित करने में कामयाब रहीं।

डायरेक्शन : इस फिल्म के साथ एक दो नहीं, कई यंग डायरेक्टरों के नाम जुड़े हैं। यही वजह है कहानी में कई ऐसे टर्न हैं जो समझ से परे हैं। ऐसा लगता है डायरेक्शन टीम ने पहले से अपनी इस फिल्म को मल्टिप्लेक्स कल्चर की ऐसी फिल्म बनाने का फैसला कर लिया था जो कुछ नया और बॉलिवुड फिल्मों से टोटली डिफरेंट देखने की चाह में थिऐटर का रुख करते हैं, लेकिन कई डायरेक्टर्स ने अपनी-अपनी कहानी को बेहतरीन कैमरा एंगल के साथ शूट किया। फिल्म के कई सीन्स में कैमरा इस फिल्म का हीरो बन जाता है।

संगीत : फिल्म के बैकग्राउंड में गाने हैं, लेकिन न तो इनकी जरूरत कहानी में कहीं थी और न ही इनमें दम है कि आप हॉल से बाहर आने के बाद इन गानों का पहला अंतरा भी याद रख पाएं।

क्यों देखें : अगर हिंग्लिश कल्चर में बनी कुछ ज्यादा बोल्ड और अलग टाइप की फिल्मों को देखने का आपको जुनून है या रजत कपूर, स्वरा और राधिका आप्टे के पक्के फैन हैं तभी देखने जाएं।

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स्पेक्टर

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चंद्रमोहन शर्मा

करीब पांच दशक पहले 1962 में शुरू हुआ बॉन्ड सीरीज की फिल्मों का सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। वक्त के साथ-साथ इस सीरीज की फिल्मों की लोकप्रियता और कमाई बढ़ती गई। बॉन्ड सीरीज की यह 24वीं फिल्म भारत में कुछ देर से रिलीज की गई। इसने चीनी बॉक्स ऑफिस पर पहले 345 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई का रेकॉर्ड बनाया।

वर्ल्ड वाइड कलेक्शन में भी फिल्म ने शुरुआती बीस दिनों हैरी पॉटर सीरीज की पिछली फिल्म को पीछे छोड़ दिया। डेनियल क्रेग चौथी बार बॉन्ड बने हैं। अगर बॉन्ड सीरीज की पिछली फिल्म स्काईफॉल की बात करें तो करीब तीन साल पहले रिलीज हुई इस फिल्म ने करीब एक हजार करोड़ डॉलर का बिजनेस किया था। प्रॉडक्शन हाउस ने इस फिल्म के निर्देशन की कमान भी स्काइफॉल के निर्देशक सैम मेंडेस को सौंपी और उन्होंने करीब आठ महीनों में इस फिल्म को पूरा कर दिखाया। इस फिल्म का बजट 31 करोड़ डॉलर रहा जबकि पिछली फिल्म का बजट 21 करोड़ डॉलर के करीब था।

इस फिल्म को दिल्ली एनसीआर के लगभग सभी मल्टिप्लेक्सों पर औसतन पांच से आठ शोज में रिलीज किया गया और रिलीज से पहले फिल्म के क्रेज का ही असर था कि गुरूवार को फिल्म के प्रिव्यू शोज में कई मल्टिप्लेक्सों पर शो हाउसफुल रहे। वहीं इंडिया में बॉन्ड सीरीज की इस फिल्म पर शायद पहली बार कुछ ज्यादा ही सेंसर ने कैंची चलाई। किस सीन्स की लंबाई को पचास फीसदी कम करने औैर कुछ डायलॉग की साउंड डिलीट करने के बाद सोशल साइट्स पर सेंसर बोर्ड के सुप्रीमो पहलाज निहलानी की जमकर आलोचना भी हुई इसके बावजूद फिल्म को रिलीज के पहले दिन पचास से अस्सी फीसदी की जबर्दस्त ओपनिंग मिली।



कहानी
जेम्स बॉन्ड (डेनियल क्रेग) एक खास मैसेज मिलने के बाद मैक्सिको और रोम में अपने एक सीक्रिट मिशन पर निकल पड़ता है। यहां उसकी मुलाकात होती है लूसिया (मोनिका बलुची) से होती है जो एक क्रिमिनल की विधवा है। लूसिया बॉन्ड को एक संस्था 'स्पेक्टर' के बारे में बताती है, जिसमें उसका पति भी काम करता था। इस आतंकी संस्था का मकसद दुनियाभर में आतंकवादी घटनाओं को बढ़ाना है। बॉन्ड किसी तरह इस संस्था की एक मीटिंग में पहुंचने में कामयाब होता है लेकिन इस मीटिंग स्पेक्टर का लीडर फ्रांज ओबेरहोजर बॉन्ड को पहचान लेता है।

दूसरी ओर, लंदन में नैशनल सिक्युरिटी सेंटर के नए हेड मैक्स डेनबिंग (एंड्रू स्कॉप) बॉन्ड के मिशन पर कई सवाल खड़े कर देता है। मैक्स डेनबिग को बॉन्ड के मिशन और उसके काम करने के तरीकों पर जबर्दस्त ऐतराज है। ऐसे में बॉन्ड को मैक्स की और अपने कुछ पुराने साथियों के ऐतराज करने और सहयेाग ना करने के बावजूद अपने आतंक के खिलाफ मिशन को कामयाब करना है। अब बॉन्ड अपने इसी मकसद को पूरा करने में लग जाता है। इस बार बेशक डायरेक्टर ने बॉन्ड के मिशन को तो कंप्लीट कर दिखाया लेकिन फिल्म को ऐसी जगह पर खत्म किया है जहां से अगली फिल्म की शुरूआत का रास्ता साफ नजर आता है।

ऐक्टिंग
अगर ऐक्टिंग की बात की जाए तो लगतार बढ़ती उम्र के बावजूद एकबार फिर बॉन्ड के किरदार में डेनियल क्रेग ने साबित किया कि उन्हें इस किरदार में साइन करके कोई गलती नहीं की है। फिल्म के ऐक्शन सीन्स में क्रेग ने खूब मेहतन की है। इस बार फिर बिना ड्यूप्लिकेट का सहारा लिए कई बेहद खतरनाक सीन्स खुद ही किए हैं। फिल्म के लगभग हर फ्रेम में डेनियल बेहतरीन नजर आए, लेकिन अगर स्काईफॉल की बात करें तो यकीनन उस फिल्म के ऐक्शन सीन्स को सैम ने गजब ढंग से फिल्माया था लेकिन इस बार उनकी वैसी महारत दिखाई नहीं देती। अन्य कलाकारों में मोनिका बलुची, रॉल्फ फ्लेंस, बेन विशा, एंड्रयू स्कॉट ने अपने किरदारों में अच्छा काम किया है।

डायरेक्शन
सैम मेंडेस ने बॉन्ड सीरीज की फिल्मों में बरसों से नजर आती विशेषताओं को इस बार भी असरदार ढंग से पेश किया है। बेशक फिल्म के कुछ ऐक्शन सीक्वेंस ज्यादा ही लंबे हो गए हैं। अगर इन सीन्स पर सैम खुद ही कैंची चलाते तो फिल्म की स्पीड और ज्यादा तेज होती। विलेन का किरदार जाने-माने फ्री स्टाइल रेसलर बतिस्ता ने निभाया है लेकिन उनका किरदार भी बॉन्ड की इमेज के सामने बौना नजर आता है। अगर बॉन्ड के सामने विलन ज्यादा पावरफुल नहीं है तो यकीनन इससे बॉन्ड का कद भी कम ही होता है।

फिल्म की शुरुआत में मैक्सिको में फिल्माए गए करीब सात मिनट के ऐक्शन सीक्वेंस का जवाब नहीं। रोम, ऑस्ट्रिया, मैक्सिको की खूबसूरत लोकेशन्स को डायरेक्टर ने खूबसूरती से कैमरे में कैद करवाया है तो बॉन्ड सीरीज की अलग स्पेशिलटी जैसे बॉन्ड की अलग स्टाइल की गाड़ियां, वॉच, महंगी कारों की लंबी रेस, माइक्रो चिप्स और अलग-अलग स्टाइल की गन्स और बॉन्ड के आशिकाना लुक और स्टाइल को सैम ने अच्छे ढंग से पर्दे पर उतारा है।

क्यों देंखें
अगर बॉन्ड सीरीज फिल्मों और ऐक्शन सीन्स और अपने चहेते जेम्स बॉन्ड किरदार को एक नए लेटेस्ट और मजेदार लुक में देखना चाहते हैं तो स्पेक्टर देखने जाएं। फिल्म की गजब आंखों को लुभाने का दम रखती लोकेशन्स और ऐक्शन सीन्स फिल्म का प्लस प्वाइंट है।


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कौन कितने पानी में

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चंद्रमोहन शर्मा

करीब चार साल
पहले डायरेक्टर नीला माधब पांडा की फिल्म आई एम कलाम बिना किसी प्रमोशन के रिलीज हुई। मीडिया ने फिल्म को खूब सराहा और बॉक्स ऑफिस पर भी फिल्म ने औसत से ज्यादा बिज़नस किया। फिल्म जब नैशनल अवॉर्ड के लिए भी चुन ली गई तो नीला के फैन को उनकी अगली फिल्म का इंतजार होने लगा। इस फिल्म के बाद नीला की पिछले करीब चार सालों में दो और फिल्में जलपरी और बबलू हैप्पी है रिलीज हुईं, लेकिन इन्हें इनके टारगेट दर्शकों ने भी पंसद नहीं किया। अब नीला ने देश के कई राज्यों में बरसों से चलती पानी की समस्या को लेकर कौन कितने पानी में टाइटल से फिल्म तो बनाई, लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद नीला की निर्देशन प्रतिभा और उनके अलग नजरिए पर ही सवालिया निशान लग गया है।

कहानी : बरसों पहले शहर से कोसों दूर बसे दो गांवों का विभाजन जाति के आधार पर होता है, इस विभाजन में गांव का ऊपरी हिस्सा पुश्तैनी राजा को मिलता है और नीचे के गांव का हिस्सा राजा के यहां पीढ़ी दर पीढ़ी गुलामों की तरह बंधुआ मजूदरी करते आ रहे लोगों को मिलता है। अब बरसों बाद ऊपरी गांव की बड़ी सी हवेली में राजा के वंशज ब्रिज सिंह देव (सौरभ शुक्ला) अपने इकलौते बेटे राज सिंह देव (कुणाल कपूर) के साथ रहते हैं। राज सिंह भी बरसों से शहर में रह रहा है। नीचे बसे गांव में खारु पहलवान (गुलशन ग्रोवर) अपनी बेटी जाह्नवी (राधिका आप्टे) और गांव के लोगों के साथ रहता है। राज सिंह देव स्टडी के बाद अपने गांव आता है तो देखता है यहां पानी एक करेंसी से ज्यादा प्रभावशाली है, पूरा गांव बरसों से इस समस्या से जूझ रहा है। दूसरी ओर नीचे वाले यानी खारू पहलवान के गांव में पानी की जरा भी किल्लत नहीं है, चारों और हरियाली और खुशहाली है, लेकिन राज सिंह के गांव में नहाना तो दूर पीने के पानी तक की किल्लत है। ऐसे में राज सिंह अपने पिता के साथ मिलकर ऐसा प्लान बनाता है जिससे नीचे के गांव का पानी उनके गांव को भी मिलने लगे।




निर्देशन : फिल्म की शुरुआत ही काफी धीमी है, ऐसा लगता है नीला ने बिना होमवर्क निबटाए इस प्रॉजेक्ट पर काम शुरू कर दिया, वर्ना पानी के इस मुद्दे पर नीला एक मजेदार कॉमिडी फिल्म बना सकते थे। वहीं पानी की इस कहानी के साथ नीला ने वोट की राजनीति, जातिवाद, लव-स्टोरी को भी बेवजह फिट किया।

ऐक्टिंग : फिल्म के दो लीड किरदारों राजा बृज सिंह के किरदार में सौरभ शुक्ला और खारू पहलवान के रोल में गुलशन ग्रोवर खूब जमे हैं। राधिका आप्टे ने अपने किरदार से निराश नहीं किया, लेकिन लंबे अर्से बाद पर्दे पर नज़र आए कुणाल अपने किरदार में फिट नहीं बैठते।

संगीत : नीला ने एक ओडिसी लोकगीत रंगबत्ती का अच्छा फिल्मांकन किया है, लेकिन कुणाल और राधिका पर फिल्माया गाना कहानी की पहले से धीमी रफ्तार को और कम करता है।

क्यों देंखे : अगर दूसरा कोई विकल्प नहीं और नीला माधब के फैन हैं तो देख आएं कि इस बार वह कितने पानी में है।

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