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Channel: Movie Reviews in Hindi: फिल्म समीक्षा, हिंदी मूवी रिव्यू, बॉलीवुड, हॉलीवुड, रीजनल सिनेमा की रिव्यु - नवभारत टाइम्स
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फैंटम

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चंद्रमोहन शर्मा

बॉक्स ऑफिस पर
सुपरहिट बजरंगी भाईजान ने पाकिस्तान को अलग नजरिए से पेश किया। फिल्म ने दोनों देशों में जबर्दस्त बिज़नस भी किया। कबीर की नई फिल्म फैंटम को पाकिस्तान सेंसर बोर्ड ने बिना देखे ही बैन कर दिया। दरअसल, प्रॉडक्शन कंपनी ने इसे मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले पर आधारित बताते हुए प्रमोशन शुरू की थी। यही वजह है कि पाक सेंसर बोर्ड ने स्क्रीनिंग के बिना ही फिल्म को बैन कर दिया। कबीर खान ने इस फिल्म से नेताओं को जो मेसेज देने की पहल की है, शांति और भाईचारे के नारों के बीच वे शायद ही इसे पसंद कर पाते।



कहानी : यह फिल्म 26/11 अटैक के बाद बनाए गए एक सीक्रेट मिशन के बारे में है। इसकी इजाजत सरकार के नुमांइदे देने को राजी नहीं हैं, क्योंकि ऐसा मिशन दो देशों के रिश्तों में हमेशा के लिए खटास पैदा कर सकता है। सरकार की मंजूरी के बिना ही इंडियन सीक्रेट सर्विस के हेड रॉय (सव्यसांची मुखर्जी) ऐसे खतरनाक मिशन को ग्रीन सिग्नल दे देते हैं। रॉय इस सीक्रेट मिशन के लिए दानियाल खान (सैफ अली खान) को चुनते हैं, जिन्हें आर्मी से निकाला जा चुका है। यही वजह है दानियाल के सेना से रिटायर पिता ने बेटे से बात करना बंद कर दिया है। अपना खोया हुआ सम्मान हासिल करने और पिता को काबिलियत दिखाने के लिए दानियाल मिशन की कमान संभालता है। मिशन के लिए लंदन पहुंचने पर दानियाल की मुलाकात नवाज मिस्त्री (कटरीना कैफ) से होती है। मिस्त्री भी उसके मिशन का हिस्सा बन जाती है। दानियाल और मिस्त्री अपने मिशन को पूरा करने के लिए लंदन, सीरिया, जर्काता होते हुए पाकिस्तान पहुंचकर मुंबई अटैक के दोषियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में कामयाब होते हैं।



ऐक्टिंग : पिछले कुछ अर्से में एक के बाद कई फ्लॉप दे चुके सैफ अली खान ने इस बार यकीनन बेहतरीन ऐक्टिंग की है। उन्होंने किरदार को जीवंत बनाया है। ऐक्शन सीन्स के लिए यकीनन सैफ ने जबर्दस्त मेहनत की है। पारसी लड़की नवाज मिस्त्री बनीं कटरीना के कुछ ऐक्शन सीन्स उनकी पिछली फिल्म एक था टाइगर की याद दिलाते हैं। रांझना, तनु वेड्स मनु रिर्टन्स के बाद ऑल इज वेल में नजर आए मोहम्मद जीशान अयूब ने इस बार भी अपने किरदार को कुछ ऐसे ढंग से पेश किया है, जो आपको बांधे रखता है। सीक्रेट सर्विस के हेड रॉय के किरदार में सव्यसांची मुखर्जी ने बेहतरीन ऐक्टिंग की है।




डायरेक्शन : कबीर खान की खासियत है कि वह हमेशा फिल्म की स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले पर पूरा काम करने के बाद ही शूटिंग शुरू करते हैं। फिल्म की शुरुआत जबर्दस्त है। इंटरवल के बाद अचानक कहानी कुछ भटकती नजर आती है। क्लाइमैक्स बेवजह लंबा खींचा गया है। कबीर ने कई देशों में शूटिंग कर सीन्स और बैकग्राउंड को तो दमदार बनाया, लेकिन क्लाइमैक्स में वैसा कमाल नहीं दिखा पाए। ऐक्शन सीन्स जबरदस्त और हैरतअंगेज हैं। कहानी को बेवजह इमोशनल टच देने की कोशिश बेकार लगती है। तारीफ करनी होगी कि सभी किरदारों के लिए कलाकारों का सही चयन किया गया है।

संगीत : फिल्म के गाने माहौल और सीन्स की डिमांड के मुताबिक हैं। कबीर खान की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने इन गानों को भी कहानी का हिस्सा बनाकर पेश किया।

क्यों देखें : कबीर खान ने जो मेसेज दिया है, फिल्म देखकर हॉल में बैठा हर दर्शक दिल से यही दुआ करता है कि कबीर ने सिल्वर स्क्रीन पर जो कर दिखाया, काश ऐसा रीयल लाइफ में भी हो जाए। अगर अगर आप सैफ, कटरीना के फैन हैं तो फिल्म जरूर देखें।

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वेलकम बैक

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बॉक्स ऑफिस पर डायरेक्टर अनीस बज्मी उन चंद डायरेक्टर्स में शामिल हैं, जिनकी दो फिल्में 'नो एंट्री' और 'वेलकम' सुपरहिट रहीं। अनीस अपनी इन दोनों सुपरहिट फिल्मों का सीक्वल बनाने की कोशिश कई सालों से करते रहे। 'नो एंट्री' के लिए उन्हें और फिल्म के प्रड्यूसर बोनी कपूर को सलमान खान की डेट्स नहीं मिली। 'वेलकम' के सीक्वल के लिए जब पिछली फिल्म के हीरो अक्षय कुमार लंबे अरसे तक राजी नहीं हो हुए, तो अनीस ने जॉन अब्राहम को ले लिया। अक्षय की कमी को तो काफी हद तक जॉन ने पूरा कर दिया, लेकिन कटरीना कैफ की नामौजूदगी शुरू से आखिर तक खटकती है। इस फिल्म में भी वही मसाला ठूंसा गया है, जो बॉक्स ऑफिस पर भीड़ खींचने का दम रखे। बेशक फिल्म के कुछ डायलॉग डबल मीनिंग वाले हैं, लेकिन अनीस ने इन सभी को ऐसे मजेदार ढंग से परोसा है कि दर्शक अपसेट नहीं होते।



कहानी : उदय शेट्टी (नाना पाटेकर) और सागर मजनू पांडे उर्फ मजनू भाई (अनिल कपूर) ने अब अंडरवर्ल्ड की दुनिया को अलविदा कह दिया है। शेट्टी और मजनू भाई अब दुबई के नामी बिज़नसमैन हैं। आलीशान होटेल के अलावा दुबई में उनके कई दूसरे बिज़नस भी हैं। दोनों की शराफत का यह आलम है कि अब उन्हें दुबई के दादा लोगों को हफ्ता देना पड़ता है। इतना सब कुछ होने के बावजूद इन दोनों की लाइफ में कोई लड़की नहीं है। दोनों को इंतजार है खूबसूरत लाइफ पार्टनर का। अचानक एक दिन इनकी लाइफ में खूबसूरत राजुकमारी चांदनी और नजफगढ़ की महारानी (डिंपल कापड़िया) की एंट्री होती है। महारानी को अपनी बेटी के लिए काबिल वर की तलाश है। बस फिर क्या, उदय और मजून भाई दोनों ही चांदनी को अपना बनाने की कोशिशों में लग जाते हैं। उदय, मजनू और चादंनी की लव-स्टोरी में अनोखा टर्न उस वक्त आता है जब एक दिन उदय शेट्टी का पिता अप्पा शेट्टी (नाना पाटेकर का डबल रोल) की एंट्री होती है। अप्पा शेट्टी उदय को बताते हैं कि उसकी तीसरी पत्नी से पैदा हुई बेटी रंजना (श्रुति हासन) के लिए उदय और मजनू को अच्छा वर तलाशना है। दूसरी ओर चांदनी की मां भी दोनों के सामने शर्त रखती है कि रंजना की शादी होने के बाद ही उदय और मजनू में से किसी एक के साथ चांदनी की शादी होगी। अब खोज शुरू होती है, रंजना के लिए एक अच्छे वर की। दोनों को डॉक्टर घुंघरू (परेश रावल) की याद आती है। किस्मत का चमत्कार डॉक्टर घुंघरू को शादी के बरसों बाद अपनी बीवी से पता चलता है कि उनकी बीवी शादी से पहले ही बच्चे की मां बन चुकी थी और अब उसका बेटा अज्जू भाई (जॉन अब्राहम) मुंबई का दादा है। घुंघरू अपने बेटे से मिलने मुबई के लिए रवाना होते है। रास्ते में उनकी मुलाकात उदय और मजनू से होती है और तय होता है कि डॉक्टर घुंघरू अपने बेटे की शादी रंजना से करेंगे। फिल्म के क्लाइमैक्स में वॉन्टेड भाई (नसीरुद्दीन शाह) और उनके बेटे (शाइनी आहूजा) की एंट्री होती है, उधर वॉन्टेड भाई का नशेड़ी बेटा भी रंजना को हर सूरत में अपना बनाने पर आमादा है।


ऐक्टिंग : उदय शेट्टी के किरदार में नाना पाटेकर जमे हैं। अनिल कपूर के साथ उनकी केमिस्ट्री पिछली फिल्म से कहीं ज्यादा दमदार बनी है। जॉन ने अपने किरदार में जान डाली है। वहीं, परेश रावल ने वही किया जो पिछली फिल्म में किया। नसीरुद्दीन शाह के लिए इस फिल्म में ज्यादा कुछ नहीं है। डिंपल ठीक-ठाक रही हैं। श्रुति ने किरदार निभा दिया है।

डायरेक्शन: अनीस बज्मी ने कहानी को कहीं कमजोर नहीं पड़ने दिया। इंटरवल तक फिल्म एक पल भी सोचने का मौका नहीं देती।फिल्म की स्पीड दमदार है, संवाद मजेदार और सटीक हैं। वहीं अनीस ने इस बारा नाना, अनिल के किरदार को पहले से ज्यादा पावरफुल बनाया, जो इस फिल्म की यूएसपी है। दुबई की लोकेशंस और महंगे सेट को भी अनीस ने अपनी कहानी का हिस्सा बनाया है।

संगीत: फिल्म के गाने इसकी कहानी और माहौल पर फिट हैं।

क्यों देखें: अगर आप फुल एंटरटेनमेंट चाहते हैं तो दोस्तों और फैमिली के साथ फिल्म देखने जाएं।

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हीरो

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आज के यंगस्टर्स के जेहन में भी सिल्वर स्क्रीन पर सुभाष घई की फिल्म 'हीरो' से धमाकेदार एंट्री करने वाले जैकी श्रॉफ की इमेज ताजा है। यही वजह है कि 'हीरो' के रीमेक को देखते समय दर्शक नई फिल्म के हीरो सूरज दादा की जगह जैकी दादा की बातें करते नजर आए। 'हीरो' के बाद जैकी श्रॉफ न्यूकमर स्ट्रगलर ऐक्टर से सुपर स्टार बन गए थे, लेकिन शायद सूरज की किस्मत में यह नहीं लिखा है। वजह यह है कि बॉलिवुड के दिग्गज लोगों के अलावा खुद सुभाष घई की तारीफ के बावजूद सूरज और आथिया स्टारर यह फिल्म पिछली फिल्म के मुकाबले बेहद कमजोर साबित हुई। ऐसा लगता है कि बॉक्स आफिस पर लंबे अर्से से एक अदद हिट को तरसते घई को अपने बैनर की एक हिट के लिए अभी और इंतजार करना होगा। निखिल आडवाणी के निर्देशन में बनी इस फिल्म में इतना दमखम नहीं जो दर्शकों की कसौटी और बॉक्स आफिस पर खरी उतर पाए। खबर यह भी है कि डायरेक्टर निखिल ने फिल्म पूरी करने के बाद जब सलमान खान के लिए 'हीरो' की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी तो सलमान ने कुछ सीन्स को फिल्म से अलग कर डाला। सलमान नहीं चाहते थे फिल्म में हॉट सीन्स या ऐसे कुछ भी संवाद हों जो फैमिली के साथ फिल्म देखने आए दर्शकों को परेशान करें। उस वक्त तो घई ने सलमान के किए गए बदलाव को फिल्म के लिए बेहतर बताया था, लेकिन शायद ये बदलाव फिल्म पर भारी पड़ गए। वैसे, अगर आप इस फिल्म को देखते वक्त इस फिल्म के कलाकारों की तुलना संजीव कुमार, शम्मी कपूर, अमरीश पुरी, मदन पुरी, जैसे दिग्गजों से करेंगे तो यकीनन अपसेट होंगे। साथ ही ऐक्टिंग, संगीत, निर्देशन की कसौटी पर सलमान का हीरो यकीनन घई के असली हीरो से बहुत पीछे नजर आता है।



कहानी: सूरज (सूरज पंचोली) एक छोटा-मोटा गैंगस्टर है। उसके गैंग में चार दोस्त है, जिनके साथ वह सड़कछाप मारपीट करता है। हालांकि सूरज दादा दबंगई से कमाए पैसों को गरीबों और मजबूर लोगों में खुले हाथ से बांट देता है। एक दिन एक पब में अपनी दोस्त मंडली के साथ मस्ती करने गए सूरज की मुलाकात शहर के पुलिस आईजी तिग्मांशु धूलिया की बेटी राधा (अाथिया शेट्टी) से होती है। सूरज यहां पर राधा के एक्स बॉयफ्रेंड के साथ भिड़ जाता है क्योंकि वह जबरन राधा को अपने साथ ले जाना चाहता है। कुछ दिन बाद जेल में बंद पाशा (आदित्य पंचोली) सूरज को आईजी की बेटी का अपहरण करने के लिए कहता है। बचपन से सूरज को पाशा ने ही पाल-पोसकर बड़ा किया है। यही वजह है कि सूरज पाशा को अपना सबकुछ समझता है। सूरज पुलिस इंस्पेक्टर की वर्दी पहनकर राधा से मिलता है और उससे कहता है कि उसे आईजी साहब यानी उसके पापा से आदेश मिला है कि कुछ समय के लिए राधा को शहर से बाहर ले जाए। राधा पुलिस इंस्पेक्टर बने सूरज के साथ चली जाती है। इनके साथ रहने के कुछ अर्से बाद बाद राधा को पता चलता है कि सूरज ने उसका अपहरण किया है। हालांकि तब तक वह सूरज से प्यार करने लगती है।

ऐक्टिंग : सूरज पंचोली और आथिया शेट्टी दोनों की ही यह पहली फिल्म है। सूरज ने बेशक अच्छे ऐक्शन स्टंट्स किए हैं लेकिन सूरज की डायलॉग डिलिवरी कमजोर है। आदित्य पंचोली ठीकठाक रहे लेकिन डायरेक्टर ने पाशा के किरदार को कमजोर बना डाला। आथिया को अभी काफी मेहनत करनी होगी। पुलिस आईजी के रोल में तिग्मांशु धूलिया ने निराश किया है।

डायरेक्शन : निखिल आडवाणी का निर्देशन शुरू से अंत तक दर्शकों को बांध नहीं पाता। निखिल की स्क्रिप्ट, कहानी और किरदारों पर पकड़ नहीं है। यही वजह है कि करीब दो घंटे की फिल्म भी दर्शकों को बांध नहीं पाती।

संगीत : 'मैं हूं हीरो तेरा' का फिल्मांकन अच्छा है और सलमान ने इस गाने को बेहद दिलकश और सुरीली आवाज में गाया है। पुरानी फिल्म 'हीरो' का संगीत फिल्म का प्लस पॉइंट था। वहीं इस फिल्म का संगीत इस फिल्म की कमजोर कड़ी साबित हुआ है।

क्यों देंखें : अगर सुभाष घई के निर्देशन में बनी 'हीरो' नहीं देखी तो देख सकते हैं। सलमान के फैन हैं और अपने पसंदीदा स्टार को पर्दे पर गाते देखना चाहते हैं तो एक बार देख सकते हैं।

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कट्टी-बट्टी

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चंद्रमोहन शर्मा

​यकीनन लंबे समय
से एक अदद हिट को तरसते डायरेक्टर निखिल आडवाणी और लंबे अर्से के बाद स्क्रीन पर एक बार फिर बॉक्स ऑफिस पर राज कर रही ऐक्ट्रेस कंगना रनौत के साथ नजर आ रहे इमरान खान के लिए सितंबर का महीना कुछ खास रहा होगा। करण जौहर के साथ बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट कल हो न हो के बाद जहां निखिल को अपनी अगली सुपरहिट की तलाश लंबे अर्से से लगी थी, ऐसे में इस महीने जब उनकी एकसाथ दो फिल्में हीरो और कट्टी बट्टी एक हफ्ते के गैप में रिलीज हुई तो निखिल की सुपरहिट की आस बढ़ना समझा जा सकता है। अफसोस अब जब यह दोनों फिल्में दर्शकों के सामने आ चुकी हैं तो लगता है निखिल का इंतजार अब और आगे बढ़ना तय है। हीरो बॉक्स ऑफिस पर कुछ नहीं कर पाई तो वहीं इमरान खान स्टारर यह फिल्म भी शुरुआत से क्लाइमैक्स तक कुछ ऐसी स्लो स्पीड से फ्लैशबैक का सहारा लेकर आगे खिसकती है कि दर्शक सवा दो घंटे की फिल्म के साथ भी खुद को स्टार्ट से लास्ट तक कहीं बांध नहीं पाता। बेशक, निखिल ने अपनी इस फिल्म को जेन एक्स और मल्टिप्लेक्स कल्चर को फोकस करके बनाया, लेकिन कहानी चंद मिनट बाद ही ट्रैक से कुछ ऐसी भटकनी शुरू होती है जो आखिर तक संभल नहीं पाती। निखिल की यह फिल्म हॉलिवुड फिल्म अ वॉक टु रिमेंबर से काफी हद तक प्रभावित है। करीना कपूर जैसी हिट हिरोइन के साथ भी नाकाम रहे इमरान खान को इस बार कंगना रनौत जैसी बॉक्स ऑफिस की क्वीन का साथ मिला।



कहानी : अहमदाबाद के एक कॉलेज में आर्किटेक्चर बनने मुंबई से आए मैडी उर्फ माधव (इमरान खान) को पहली नजर में ही यहां पढ़ रही पायल (कंगना रनौत) से प्यार हो जाता है। मैडी का यह प्यार पूरी तरह से वन साइड है, क्योंकि पायल ने तो कभी उसके साथ अपने प्यार का इजहार नहीं किया। पायल अपनी अपने दोस्तों के साथ बिंदास जिंदगी गुजारना चाहती हैं। कॉलेज में कुछ मुलाकातों के बाद पायल भी मैडी को लाइक करने लगती है। कॉलेज की स्टडी पूरी होने के बाद पायल अपने आगे की स्टडी के लिए पैरिस जाने का प्लान रद्द करके मैडी के साथ मुंबई में रहने का फैसला करती है। मुंबई में मैडी और पायल एक दो नहीं, बल्कि पूरे पांच साल तक एक-दूसरे के साथ लिव इन रिलेशनिशप में रहते हैं। अचानक, एक दिन पायल मैडी की दुनिया से कहीं दूर चली जाती है। मैडी समझ नहीं पा रहा कि उसने ऐसा क्या कर दिया कि पायल उससे दूर चली गई। मैडी पूरी तरह से पायल के प्यार में ऐसा डूब चुका है कि पायल के जाने के बाद वह जहर पीकर आत्महत्या की भी कोशिश करता है। मैडी को अब भी पायल की तलाश है, क्योंकि मैडी उससे सच्चा प्यार करता है। इसी बीच एक दिन जब मैडी को पता चलता है कि पायल दिल्ली में एक एनजीओ के सिलसिले में है और जल्द ही अपने कॉलेज के उस दोस्त से शादी करने वाली है जिससे उन्होंने कई साल पहले ब्रेकअप कर लिया था तो मैडी पायल से मिलने दिल्ली जाने का फैसला करता है।


डायरेक्शन : निखिल आडवाणी ने जवां दिलों की इस लव-स्टोरी को बेहद सुस्त ढंग से पेश किया। बेशक इंटरवल के बाद कहानी कुछ रफ्तार पकड़ती है और क्लाइमैक्स कुछ चौंकाता भी है, लेकिन कहानी को आगे बढ़ाने के लिए निखिल ने बार-बार फ्लैशबैक सीन्स का कुछ ज्यादा ही सहारा लिया जो खटकता है। कंगना और इमरान पर फिल्माया देवदास नाटक फिल्म की लंबाई बढ़ाने के अलावा कुछ और नहीं करता। पायल और मैडी की लव-स्टोरी के साथ दर्शकों का कहीं भी बंध न पाना फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है।


संगीत : फिल्म का संगीत फिल्म की यूएसपी है। रिलीज से पहले फिल्म के कई गाने म्यूजिक चार्ट में टॉप फाइव में शामिल हो चुके हैं। चल ले किसिया, दे किसिया और मैं भी सिरफिरा तू भी सिरफिरी पहले से यंगस्टर्स में हिट है।

क्यों देखें : कंगना का बोल्ड अंदाज, दमदार अभिनय, चौंका देने वाला क्लाइमैक्स और जेन एक्स की कसौटी पर फिट फॉर्म्युला इस कट्टी बटटी में हैं।

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तमाशा

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चंद्रमोहन शर्मा

बरसों पहले शुरू हुए रीयल लाइफ कपल पर बनने वाली फिल्मों के हिट होने के ट्रेंड को बॉलिवुड के यंग मेकर्स एकबार फिर कैश करना चाहते हैं। इस रेस में यकीनन इम्तियाज अली पहले ही शामिल हो चुके हैं। करियर के शुरुआती दौर में इम्तियाज ने ऐसा एक्सपेरिमेंट करीना कपूर और शाहिद कपूर को लेकर 'जब वी मेट' में किया और फिल्म बॉक्स आफिस पर सुपरहिट रही। अब एक बार फिर इम्तियाज ने रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण को लेकर तमाशा बनाई। हालांकि जहां जब वी मेट के बाद करीना और शाहिद का ब्रेकअप हो गया, वहीं ब्रेकअप के बाद दीपिका और रणबीर दूसरी बार एक साथ आए हैं। इम्तियाज की इस फिल्म ने उन्हें ऐसे मिलाया कि प्रमोशन के दौरान दोनों ने ट्रेन में नाइट जर्नी तक की। बेशक रीयल कपल को लेकर बनी फिल्मों का अच्छा क्रेज बनता है, लेकिन यह हर फिल्म के हिट होने की गारंटी नहीं। वैसे इम्तियाज की इस फिल्म की लीड जोड़ी 'ये जवानी है दीवानी' में धमाल मचा चुकी है। हालांकि यह जोड़ी बैक टु बैक दूसरी हिट दे पाएगी, इतना दमखम इस फिल्म में कम नजर आता है। हां दीपिका-रणबीर की जोड़ी की दमदार केमिस्ट्रिी इनके फैंस के लिए यकीनन पैसा वसूल है।

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कहानी : तारा माहेश्वरी (दीपिका पादुकोण) फ्रांस के द्वीप कोर्सिका में मुश्किल में है। तारा का सारा सामान और पासपोर्ट चोरी हो चुका है। इस मुश्किल के वक्त उसकी मुलाकात वेद वर्धन (रणबीर कपूर) से होती है। वेद अपने पिता (जावेद शेख) के सपनों को पूरा करने के लिए अपने ख्वाब को दफन करके इंजीनियर तो बन गया, लेकिन दिल से वेद कुछ और ही बनना चाहता है। यही वजह है कि वह लाइफ को अपने ढंग से एन्जॉय करने के लिए कोर्सिका पहुंचा है। यहीं पर तारा और वेद एक टूर प्लान करते हैं। टूर पर निकलने से पहले वेद और तारा के बीच तय होता है कि दोनों अपनी असली पहचान एक-दूसरे को नहीं बताएंगे। इस टूर के बाद दोनों अपने-अपने शहर लौट जाते हैं। हालांकि लौटने के बाद तारा को पता चलता है कि उसे वेद उर्फ डॉन से प्यार हो चुका है। दिल्ली ट्रांसफर होने पर तारा उसी बार में पहुंचती है, जहां वेद भी अक्सर जाया करता है। हालांकि वेद कोर्सिका से लौटने के बाद दोबारा अपनी पुरानी दुनिया में लौट चुका है और मशीनी जिंदगी जीने लगा है। इस बार वेद से मिलने के बाद तारा को लगता है यह वेद वह नहीं जिसे वह कोर्सिका में मिली थी। इसके बाद दोनों ब्रेकअप कर लेते हैं। क्या वेद खुद को पहचान पाएगा और क्या वेद और तारा दोबारा मिल पाएंगे, यही कहानी तमाशा दिखाने की कोशिश करती है।

ऐक्टिंग : दीपिका ने एकबार फिर बेहतरीन ऐक्टिंग की है। तारा के किरदार की मस्ती और बाद में उसके अंदर के दर्द को दीपिका ने अपने अभिनय से जीवंत कर दिखाया है। रणबीर कपूर के किरदार में शेड तो कई हैं, लेकिन इंटरवल के बाद रणबीर कई सीन्स में ओवर ऐक्टिंग के शिकार रहे। अन्य कलाकारों में पीयूष मिश्रा और कम फुटेज के बावजूद जावेद शेख अपनी पहचान छोड़ने में कामयाब रहे।

डायरेक्शन : इस बार इम्तियाज अली ने अपनी कहानी के लीड किरदारों को लिखा तो बेहद दमदार, लेकिन फिल्म की फाइनल स्क्रिप्ट के वक्त कुछ नया करने के चक्कर में ऐसे उलझे कि कहानी बेवजह लंबी होती गई। कमजोर स्क्रिप्ट के अलावा कहानी को आगे बढ़ाने के लिए बार-बार फ्लैश बैक सीन्स का प्रयोग कहानी की पहले से सुस्त रफ्तार को और धीमा करने का काम करता है।

संगीत : फिल्म का संगीत पहले ही युवाओं में हिट है। अगर कहा जाए तो कमजोर स्क्रिप्ट के बावजूद फिल्म का संगीत दर्शकों को कहानी और किरदारों के साथ जोड़ने में सफल है तो यह गलत नहीं होगा। 'मटरगश्ती', 'हीर' और 'अगर तुम साथ हो' गाने पहले से हिट हैं। ए आर रहमान और गीतकार इरशाद कामिल की जोड़ी ने यकीनन बेहतरीन काम किया है।

क्यों देखें : रणबीर और दीपिका के फैन हैं तो इसबार इनके बीच की बेहतरीन केमिस्ट्री आपको अच्छी लगेगी। खूबसूरत विदेशी लोकेशन, दमदार म्यूजिक और इम्तियाज अली का नाम फिल्म की यूएसपी है। वहीं कमजोर स्क्रिप्ट फिल्म का माइनस पॉइंट। फिल्म तमाशा, युवा पीढ़ी को अपनी ओर खींचने का दम रखती है। लेकिन ऐसा 'तमाशा' फैमिली क्लास की कसौटी पर शायद खरा उतरने का दम नहीं रखता।

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कन्या भ्रूण हत्या पर मेसेज देगी 'कजरिया'

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Chandermohan.Sharma@timesgroup.com

नई फिल्म

कजरिया

एनबीटी रेटिंग 2.5

बिजनेस रेटिंग : 2

कजरिया। एक ऐसी मूवी जिसका नाम आपने शायद ही सुना हो और इसके ट्रेलर या प्रोमो देखा हो। लेकिन फोर्ब्स लाइफ मैगजीन ने इस मूवी को साल की पांच बेहतरीन फिल्मों में शामिल किया है। यंग डायरेक्टर मधुरिता आनंद की इस फिल्म में अकादमी अवॉर्ड के नॉमिनी और गोल्डन ग्लोब विनर रिचर्ड होरोविट्ज ने संगीत दिया है। कम बजट और सीमित साधनों में ज्यादातर नई स्टार कास्ट को लेकर इस मूवी को बनाया गया है।

कहानी : हरियाणा के दूर दराज इलाके में बसे एक छोटे से गांव में भ्रूण हत्याओं का ऐसा सिलसिला जारी है कि गांव में लड़कियों की संख्या हर दिन कम हो रही है। लडकियों को पैदा होते ही परिवार वाले गांव के एक मंदिर में रहने वाली काली मां की पुजारिन कजरिया के हाथों में रख देते हैं। दरअसल, गांव के पुरुष नहीं चाहते कि उनके परिवार में लड़की पैदा हो। इन बच्चियों की मां ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती लेकिन पुरुष प्रधान समाज में उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। गांव में एक पुलिस चौकी भी है, लेकिन चौकी में ड्यूटी करने वाला इंस्पैक्टर और दूसरे पुलिस वाले भी गांव वालों के साथ मिले हुए हैं। इस बीच गांव के इसी प्राचीन मंदिर में हर साल पूर्णमासी के दिन लगने वाले मेले की कवरेज के लिए दिल्ली के एम प्रमुख अंग्रेजी अखबार की पत्रकार मीरा शर्मा ( रिद्धिमा सूद ) वहां जाती हैं। यहां आने उ‌न्हें इस बात का पता चलता है तो वह इस खबर की तह तक जाने का फैसला करती हैं। इसी गांव में पुलिस और गांव के दबंग बनवारी की मर्जी के खिलाफ मीरा रुकती हैं। इन्हीं तीन दिनों में मीरा के सामने आती है 'कजरिया' एक ऐसी महिला जिसके बारे में गांव वालों को मानना है कि उस पर काली मां की छाया है। मीरा को पता चलता है कि कजरिया ने ही इस गांव के न जाने कितनी नवजात लड़कियों को पैदा होने के बाद अपने हाथों मार डाला। मीरा किसी तरह से कजरिया से मिलने में कामयाब होती है। कजरिया उसे बताती है कि किस तरह सिर्फ 13 साल की उम्र में उसे उसके परिवार ने सत्तर साल के एक बूढ़े के साथ शादी करके भेज दिया और दो साल बाद ही जब कजरिया के बूढ़े पति की मौत हो गई तो गांव वालों ने उसे क्या बना डाला।

एक्टिंग : कजरिया के लीड किरदार को न्यू कमर मीनू हुड्डा ने बेहतरीन ढंग से निभाया है। मीनू के किरदार में गालियों की भरमार है लेकिन कहीं ना कहीं यह कहानी और किरदार का हिस्सा लगती हैं। रिद्धिमा सूद का मूवी में काफी बोल्ड रोल है। मूवी में लिप टु लिप किस सीन्स के अलावा कई हॉट सीन्स पर कैंची नहीं चलाई गई।

डायरेक्शन : अब तक बीस से ज्यादा डॉक्युमेंट्री बना चुकी मधुरिता की पहली फिल्म 'मेरे ख्वाबों में जो आए' करीब 6 साल पहले रिलीज हुई थी। मधुरिता ने देश के छोटे-छोटे गांवों में चल रहे कन्या भ्रूण हत्या को अलग-अलग महिलाओं की कहानी के साथ जोड़ कर पेश किया है। फिल्म कई सीन्स में डॉक्युमेंट्री बन जाती है।

संगीत : फिल्म के बैकग्राउंड में दो गाने मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोये और बाबुल मोरा है यकीनन यह गाने कहानी का हिस्सा तो बनाए गए हैं लेकिन इससे बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को कुछ फायदा होता नजर नहीं आता।

क्यों देखें : मेन स्ट्रीम सिनेमा से दूर हटकर बनी फिल्में पसंद करते हैं तो एकबार देख सकते हैं।

कलाकार : रिद्धिमा सूद, मीनू हुड्डा, सुमित व्यास, सुशील भसीन, मनोज बक्शी, कहानी-निर्देशन मधुरिता आनंद, सेंसर सर्टिफिकेट ए, अवधि- 132 मिनट।

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हेट स्टोरी 3

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चंद्रमोहन शर्मा आजकल फ्रैंचाइजी फिल्में बनाने का ट्रेंड चल निकला है। हॉलिवुड में यह ट्रेंड काफी कामयाब रहा तो अब बॉलिवुड में इस पर हाथ आजमाया जा रहा है। हेट स्टोरी सीरीज की यह तीसरी फिल्म है। इसमें पिछली फिल्मों की तरह एक नहीं बल्कि दो-दो हॉट ब्यूटी हैं।

डायरेक्टर विशाल पांड्या ने फिल्म को थ्रिलर बनाने की अच्छी कोशिश की है। इसमें हर ऐसा मसाला परोसने की कोशिश की है, जो दर्शकों की उस क्लास को सिनेमाघरों तक खींचने का दम रखता है जो A सर्टिफिकेट फिल्मों में देखने की चाह लिए थिएटर तक जाते हैं। जरीन खान और डेजी शाह के कुछ बोल्ड सीन्स पर सेंसर की कैंची चली है, लेकिन सेंसर की मौजूदा प्रिव्यू पॉलिसी के चलते ऐसे सीन्स की आस दर्शकों को पहले से नहीं थी।

कहानी: आदित्य दीवान (शरमन जोशी) कामयाब बिजनेसमैन है। उसकी खूबसूरत पत्नी सिया दीवान (जरीन खान) बिजनेस में हसबैंड के साथ खड़ी नजर आती है। आदित्य ने अपने बड़े भाई विक्रम (प्रियांशु चटर्जी) की मौत के बाद फैमिली का बिजनस संभाला है। अचानक एक दिन आदित्य को आउडी कार कोई अनजान शख्स गिफ्ट में देता है।

कार पर लगे विजिटंग कार्ड को देखकर आदित्य कार गिफ्ट करने वाले शख्स के बारे में पता लगाता है। यह आउडी कार सौरव सिंघानिया (करण सिंह ग्रोवर) ने उसे गिफ्ट में दी है। सौरव, आदित्य और सिया को अपने बंगले पर डिनर के लिए बुलाकर उन्हें बिना ब्याज करोड़ों रुपये का कर्ज ऑफर करता है। सौरव इस मेहरबानी के बदले आदित्य की वाइफ सिया के साथ एक रात बिताने की इच्छा जताता है।

आदित्य गुस्से में सिया के साथ उसके घर से चला जाता है। यहीं से सौरव आदित्य के बिजनस को तबाह करने पर आमादा हो जाता है। सौरव एक साजिश रचता है, जिसके चलते आदित्य अपनी सेक्रटरी काव्या (डेज़ी शाह) को ऑफिस से निकाल देता है। कुछ दिन बाद काव्या की लाश शहर से दूर मिलती है। सौरव कौन है और कहां से आया है। आदित्य को बरबाद करने पर वह क्यों तुला है यही इस फिल्म का सस्पेंस है।

ऐक्टिंग: फिल्म के चार लीड किरदारों सिया, सौरव, काव्या और आदित्य की बात करें तो सभी ने अपने किरदार को जैसे कैमरे के सामने बस निभा भर दिया है। जरीन खान ने अपनी बेचारी वाली इमेज को तो तोड़ा है। पूरी फिल्म में जरीन के चेहरे का एक्सप्रेशन एक जैसा नजर आता है। आदित्य दीवान के किरदार के लिए शरमन जोशी को लेने की मजबूरी समझ से परे है।

इस फिल्म में अरबपति बिजनसमैन का किरदार निभा रहे शरमन किसी सीन में टॉप बिजनेसमैन नहीं लगे। करण सिंह ग्रोवर रोबीले चेहरे और बॉडी के दम पर पूरी फिल्म में शरमन पर हावी नजर आए।



डायरेक्शन: विक्रम भट्ट की कहानी को विशाल ने हॉट सीन्स और सस्पेंस का तड़का लगाकर पेश करने की कोशिश की है। कहानी के बीच-बीच में, जरीन और डेजी के बोल्ड सीन्स के साथ-साथ आइटम नंबर टाइप गानों की मौजूदगी दर्शकों को कुछ हद तक फिल्म के साथ बांधने में कामयाब है, लेकिन विशाल पूरी फिल्म में किसी भी कलाकार से अच्छी एक्टिंग तो दूर औसत एक्टिंग भी नहीं करवा पाए।

संगीत: फिल्म का संगीत यकीनन फिल्म का प्लस पॉइंट है। खासतौर पर 'तुम्हें अपना बनाने की' और 'वजह तुम हो' गाने म्यूजिक लवर्स में पहले से हिट हैं।

क्यों देखें: अगर आप हॉट, सेक्सी के साथ-साथ रिवेंज-ड्रामा-थ्रिलर फिल्मों के शौकीन हैं तो एकबार देख सकते हैं। साफ-सुथरी, एंटरटेनर फिल्मों के शौकीन हैं तो आप हेट स्टोरी को पचा नहीं पाएंगे।

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ऐंग्री इंडियन गॉडेसेज

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मयंक दीक्षित
जब ट्रेलर में दिखाए गए 'सपनों' यानी कुछ सीन्स पर सेंसर की कैंची चल जाती है, तो फिल्म देखने के लिए उठे उत्साह और उकसावे में थोड़ी कमी आ जाती है। मैं इसी कम हुए उत्साह के साथ फिल्म 'ऐंग्री इंडियन गॉडेसेज' देखने के लिए सिनेमाघर में दाखिल होता हूं।

निर्देशक पान नलिन फिल्म में अश्लीलता और बोल्डनेस के बीच की पतली डोर टूटने नहीं देते, बल्कि सीन दर सीन उसका अहसास करवाते चलते हैं। फिल्म में पांच लड़कियों का झुंड है, जो मस्ती करता है, हंसता है, रोता है, गाता है, बजाता है।

इसी बीच चुपके से ईसाइयत के घेरे में समलैंगिक शादी के मुद्दे का ताना-बाना बुन दिया जाता है, और आम दर्शकों में से ज्यादातर को इसकी भनक तक नहीं लगती। चूंकि पोप फ्रांसिस प्राइम टाइम में नहीं आते, भारत की 'मीडिया मंडी' में उनका दखल कम से कम ही रहता है, तो फिल्म गोवा में समलैंगिक जोड़े के साथ हुए अन्याय को केंद्र में रखकर कहानी रचना शुरू कर देती है।

अमृत मघेरा ने जोआना के किरदार में और इसी तरह राजश्री देशपांडे ने मेड के रोल में गजब फूंकी है, जिससे कहानी में तीन अन्य अभिनेत्रियों के अभिनय को रफ्तार मिलती है। थोड़ी स्लो, थोड़ी तेज स्पीड में गोवा के बीच पर फिल्म फिसलती भी है तो ऐसा लगता है कि ऐसा कहानी में जरूरी था या डिमांड थी।

अपनी जिंदगी, अपने पति, अपने बॉयफ्रेंड, अपने सास-ससुर के घेरे से निकलकर पांच लड़कियां कॉलेज लाइफ के अरसों बाद गोवा में मिलती हैं। बीच, समंदर और आबोहवा में की गई ओवर मस्ती भारी पड़ जाती है और उनमें से एक लड़की के साथ गैंगरेप कर उसकी हत्या कर दी जाती है।

इस बीच फिल्म में समलैंगिक मुद्दों पर क्रिस्टिऐनिटी के रुख को टटोला जाता है। होमोसेक्शुअलिटी पर बिशप सम्मेलनों से निकले विचार, सुझाव और सीखें याद आने लगती हैं। कभी फिल्म 377 पर तंज कसती है तो कभी दामिनी रेप केस पर दी गई 'सामाजिक' दलीलों के तमाचे जड़ती है।

दर्शकों में बैठे प्रेमी/शादीशुदा जोड़ों ने कई बार फिल्म के अलग-अलग सीन देख नजरें नीचे की होंगी। कभी खुद के लिए, कभी पार्टनर के लिए। अभिनय की कसौटी पर अभिनेत्रियां खरी उतरी हैं तो मर्दों की सीमित एंट्री ने डायरेक्टर पान नलिन की बेहतर और अलग सोच को दर्शाया है।

स्क्रीनप्ले रोचक है, सिनेमेटॉग्रफी की दाद इसलिए देनी होगी कि समंदर के किनारे एक आम जिंदगी पर्यटन और पर्यटकों जैसी न लगे, इसका खास ध्यान रखा गया है।

फिल्म के बीच कोई पति, कोई सास-ससुर टाइप किरदार नहीं है, पर फिर भी निर्देशक और कहानी लिखने वाले ने उन्हें जमकर घसीटा है। घरेलू हिंसा से लेकर आत्मनिर्भरता और आत्मसंतुष्टि का पुट फिल्म को मजबूत करता है।

एक सबसे जरूरी बात, कि फिल्म बोरिंग नहीं है, जिस बात का सबसे ज्यादा डर आम भारतीय दर्शक को रहता है। किसी न किसी चीज में दर्शक उलझे रहते हैं और फिल्म आखिर में रोमांस, हास्य, ह्यूमर, सीख और समलैंगिकता परोस कर खत्म हो लेती है और सेंसर के 12 सीन कट होने के बाद भी निराश होने की एक-दो से ज्यादा वजह नहीं छोड़ती।

एक और जरूरी मुद्दे को फिल्म उठाती है। कहानी उस विचार और विचारधारा की नाक काटती है कि बीच पर पार्टी करने वाली लड़कियों के साथ होने वाले जुल्म लड़कियों की अपनी गलतियों से ही होते हैं। पुलिस पीड़ित को दोषी और दोषी को पीड़ित बताकर पल्ला झाड़ लेती है। फिर कहानियां दबती जाती हैं। हम सब जीते रहते हैं।

पान नलिन जैसे संवेदनशील सोच रखने वाले निर्देशक इस पर फिल्म बनाते रहते हैं। मुझे नहीं पता बिशप सम्मेलनों में समलैंगिक शादी और चर्च में उनके 'दखल' का मसला कहां तक पहुंचा है, लेकिन 'ऐंग्री इंडियन गॉडेसेज' फिल्म वहां तक पहुंची है, जहां तक इसे बनाने वाले ने पहुंचाने की उम्मीद की होगी। मेरी तरफ से फिल्म को साढ़े तीन स्टार।

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बाजीराव मस्तानी

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चंद्रमोहन शर्मा


बाजीराव मस्तानी रिलीज
होने से पहले ही इस फिल्म की चर्चा मीडिया में शुरू हो गई। दरअसल, ग्लैमर इंडस्ट्री में आज भंसाली की इमेज ऐसे चंद बेहतरीन फिल्म मेकर्स में की जाती है जो बॉक्स ऑफिस पर बिकाऊ मसालों के साथ कहीं भी समझौता नहीं करते वरना रितिक रोशन जैसे स्टार को स्टार्ट टू लॉस्ट व्हील चेयर पर बिठाकर गुजारिश बनाने की कल्पना तक इंडस्ट्री का दूसरा कोई नहीं कर सकता।

इस बार भंसाली ने अपने बरसों पुराने एक सपने को सिल्वर स्क्रीन पर साकार किया है जो उन्होंने बारह तेरह साल पहले देखा था। हालात ऐेसे बने कि स्क्रिप्ट पर काम लगभग पूरा होने के बावजूद भंसाली को अपने इस सपने को साकार करने में इतना लंबा वक्त लग गया। फिल्म की मेकिंग, सेट्स और संवादों की तुलना बहुत पहले से के. आसिफ साहब की एवरग्रीन फिल्म मुगल ए आजम के साथ की जा रही थी। जिस तरह आसिफ साहब ने अपनी फिल्म के लीड किरदार शहजादा सलीम के माध्यम से शंहशाह अकबर प्यार का पैगाम पहुंचाया था वैसे ही भंसाली की इस फिल्म में यही काम पेशवा बाजीराव ने किया है। यकीनन यह भंसाली साहब का कमाल है कि उन्होंने मराठी कल्चर के साथ-साथ उस वक्त के माहौल को बेहतरीन ढंग से पर्दे पर उतारा है। बेशक इस फिल्म में आइना महल में फिल्माया एक गाना और कुछ संवाद आपको क्लासिक मुगल-ए-आजम की याद दिलाती है।



कहानी
कहानी 1700 दौर की है जब मराठा साम्राज्य का महान योद्धा पेशवा बाजीराव बल्लाल (रणवीर सिंह) अपने साम्राज्य का चारों और विस्तार करने में लगा हुआ था, बाजीराव की शादी काशीबाई (प्रियंका चोपड़ा) से हुई है, काशीबाई की नजरों में बाजीराव जैसा दुनिया में दूसरा कोई और नहीं, सो वह खुद से कहीं ज्यादा बाजीराव को पसंद करती है। अपने साम्राज्य का विस्तार करने में लगातार बिजी बाजीराव युद्ध और रणभूमि में ही ज्यादा वक्त गुजारता है। इसी दौरान, एक दिन बाजीराव का सामना बुंदेलखंड महाराज छत्रसाल की बेटी मस्तानी (दीपिका पादुकोण) से होता है। मस्तानी बेहद सुंदर है, तलवारबाजी और युद्धकलाओं में उसकी महारत है।

युद्ध के मैदान में मस्तानी बाजीराव से मदद लेने आई है ताकि अपने पिता के राज्य को आक्रमणकारियों से बचा सके। इसी युद्ध के दौरान मस्तानी और बाजीराव एक-दूसरे को चाहने लगते है, इसके बाद दोनों विवाह में भी बंध जाते हैं। बाजीराव हिंदू हैं और मस्तानी मुसलमान, ऐसे में दूसरे धर्म की लड़की के साथ बाजीराव की शादी उसकी पहली पत्नी काशीबाई (प्रियंका चोपड़ा) के अलावा मां राधाबाई (तन्वी आजमी), बहन भियुबाई (अनुजा गोखले) के अलावा उसके भाई चिमाजी अप्पा (वैभव) को मंजूर नहीं लेकिन सभी बाजीराव की खुशी के सामने खामोश है।

ऐक्टिंग
रणवीर को पेशवा के किरदार में देखकर सहज विश्वास नहीं होता है कि ग्लैमर इंडस्ट्री में कुछ अर्सा पहले ही करियर शुरू करने वाला एक हरफनमौला एक्टर इस कद्र बेहतरीन ऐक्टिंग भी कर सकता है। पेशवा के किरदार में रणबीर की एनर्जी और उनकी संवाद अदायगी का बदला अंदाज आपको यकीनन पसंद आएगा। मानना होगा रणवीर सिंह इस फिल्म का सबसे सशक्त पक्ष हैं, उनकी बेहतरीन ऐक्टिंग देखकर लगेगा रणबीर शूटिंग के दौरान इस किरदार में पूरी तरह से खो गए। पेशवा के किरदार के लिए उन्होंने मराठी लहजे पर जबर्दस्त मेहनत की है। मस्तानी के रोल में दीपिका सुंदर लगती है

तो साथ ही हाथों में तलवार लिए दीपिका का दूसरा लुक उसके अभिनय को और निखारने का काम करता है। प्रियंका ने अपने किरदार को असरदार ढंग से निभाया है यकीनन काशीबाई का किरदार उनके करियर की चंद बेहतरीन भूमिकाओं में अपनी जगह बनाने का दम रखता है। बाजीराव की मां यानी आई साहब के किरदार में तन्वी आजमी ने ऐसा उम्दा सजीव दमदार अभिनय किया है जो लंबे अर्से तक याद रहेगा।



डायरेक्शन
भंसाली ने अपनी इस फिल्म में आज के माहौल में ऐसा संदेश देने की अच्छी पहल की है जिसकी आज निहायत जरूरत है, यानी प्यार का कोई धर्म नहीं होता बस। वहीं भंसाली अपनी फिल्म को बेहतरीन महंगे सेट्स और हिंदी फिल्मों में कम ही नजर आने वाले दृश्यों के साथ दिखाने के लिए जाने जाते हैं। हम दिल दे चुके सनम में गुजराती कल्चर तो इस बार भंसाली ने अपनी इस फिल्म में महाराष्ट्रियन कल्चर को असरदार ढंग से पर्दे पर आकर्षक रंगों के साथ पेश किया है। भंसाली की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने रणबीर सिंह से पेशवा बाजीराव के किरदार को पर्दे पर जीवंत कर दिखाया।

संगीत
इस फिल्म के लगभग सभी गाने रिलीज से पहले ही काफी लोकप्रिय हो चुके है। भंसाली ने फिल्मी पर्दे पर इन गानों को टोटली मराठी अंदाज में पेश किया है। इस फिल्म का गाना अलबेला साजन सलमान स्टारर फिल्म हम दिल दे चुके सनम के गाने की याद दिलाता है।

क्यों देखें
अगर आप संजय लीला भंसाली की फिल्मों के अलग कलेवर को पसंद करते हैं। रणवीर, दीपिका, प्रियंका चोपड़ा के फैन हैं, तो अपने इन तीनों चहेते स्टार्स को इस बार डिफरेंट लुक में देखने के लिए यह फिल्म जरूर देखें। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर अब फिल्में बनने का ट्रेंड दम तोड़ रहा है ऐसे में हिस्ट्री बेस्ड फिल्मों के शौकीनों के लिए भी एक अच्छा ऑप्शन है।

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दिलवाले

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चंद्रमोहन शर्मा

करीब 21 साल पहले इसी टाइटल पर बनी अजय देवगन स्टारर फिल्म बॉक्स आफिस पर सुपर हिट रही थी। शायद यही वजह रही पिछले साल जब रोहित शट्टी ने किंग खान के साथ बॉक्स ऑफिस पर रेकॉर्ड कमाई करने कर चुकी फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' के बाद एक और मसाला थ्रिलर फिल्म बनाने का ऐलान किया, तो ऐसी खबरें भी आईं कि रोहित इस बार शाहरुख के साथ अजय स्टारर दिलवाले, बिग बी, किमी काटकर स्टारर हम या फिर बरसों पुरानी किशोर कुमार की एवरग्रीन म्यूजिकल कॉमिडी हिट फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' की कहानी का मिक्स्चर दर्शकों के सामने अपने अलग स्टाइल में पेश करेंगे।
अब जब रोहित और किंग खान की जोड़ी यह दूसरी फिल्म आपके सामने है, तो आपको यह फिल्म देखने के बाद 'हम' और 'चलती का नाम गाड़ी' की याद दिला सकती है, यहां भी रोहित ने इन दोनों फिल्मों से बेशक अपनी फिल्म को आगे बढ़ाने में थोड़ी बहुत मदद ली हो, लेकिन प्रस्तुतीकरण उन्होंने अपने कलरफुल स्टाइल में ही किया है। इंटरवल से पहले कई बार कहानी और किरदार रोहित के हाथ से फिसलते नजर आते हैं, तो इंटरवल के बाद रोहित की फिल्म में सैड सॉन्ग कतई अच्छा नहीं लगता।

फिल्म के फ्लैशबैक सींस में बार-बार शाहरुख का हाथों में रिवॉल्वर लेकर नजर आना, काजोल की मुस्कुराहट के सींस समझ से परे नजर आते हैं। वहीं, कॉमेडी की फील्ड में अपना सिक्का जमाए हुए जॉनी लीवर, संजय मिश्रा के साथ नए कमीडियन वरूण शर्मा के कॉमेडी सींस यकीनन दिलवालों की कमजोर लव स्टोरी के बीच आपको झुंझलाहट नहीं आने देते। वहीं बल्गारिया की गजब आंखों की लुभाती लोकेशन के बीच रोहित स्टाइल कारों के साथ फिल्माएं एक्शन सींस और कारों की रेस के बीच फिल्माया लंबा ऐक्शन सीन फिल्म की यूएसपी है।





कहानी
गोवा में इशिता (कीर्ति सेनन) अपनी बड़ी बहन माया (काजोल) के साथ रेस्ट्रॉन्ट शुरू करने आई है। यहां इशिता की मुलाकात वीर (वरुण धवन) से होती है। वीर का बड़ा भाई राज (शाहरुख खान) कार मैकेनिक कम कार डिजाइनर है, वीर भी अपने भाई के साथ इसी पेशे में है। वीर पहली नजर में इशिता को देखते ही उस पर मर मिटता है, कुछ मुलाकातों के बाद दोनों एक दूसरे को चाहने लगते है। दूसरी और राज को लड़कियों से दोस्ती करना और प्यार-व्यार का चक्कर पसंद नहीं है, लेकिन अपने छोटे भाई वीर को दिल की गहराइयों से चाहने वाला राज भाई की खुशी की खातिर कुछ भी कर सकता है। एक दिन राज इशिता की बहन से अपने भाई और इशिता की शादी की बात करने के लिए उनके घर पहुंचता है। इशिता के घर पहुंचकर राज का सामना अपने उस अतीत से होता है, जिसे वह करीब पंद्रह साल बल्गारिया में छोड़ गोवा में अपने दोस्त शक्ति सिंह (मुकेश तिवारी) और अनवर (पंकज त्रिपाठी) और छोटे भाई वीर के साथ गोवा में नई जिंदगी शुरू करने के मकसद से आया था।

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यहां से कहानी एक बार फ्लैशबैक में एंट्री करती है, बल्गारिया में अंडरवर्ल्ड डॉन बख्शी (विनोद खन्ना) और देव मलिक (कबीर बेदी) के बीच सोने की लूट को लेकर बरसों से खूनी जंग छिड़ी है। इस जंग में बख्शी का बड़ा बेटा काली (शाहरुख खान) उसके साथ है, तो दूसरी और मलिक की बेटी मीरा अपने पिता के साथ है। मीरा एक प्लान बनाकर पहले तो काली से प्यार करती है और फिर उसे धोखा देती है। एक-एक खूनी भिड़त के बाद मीरा को लगता है, काली ने उसके पिता को धोखा देकर उसकी हत्या कर दी है। इसी लड़ाई में काली अपने पिता को भी खो बैठता है, यहीं से काली हॉस्टल में पढ़ रहे अपने छोटे भाई वीर और अपने दो खास साथियों शक्ति और अनवर के साथ गोवा आ गया। अब पंद्रह साल बाद वीर और इशिता की लव स्टोरी ने इन दोनों को भी एक दूसरे के सामने लाकर खड़ा कर दिया।

डायरेक्शन
बतौर डायरेक्टर रोहित ने फिल्म में दमदार कॉमिडी पंच और जबर्दस्त ऐक्शन सींस पर ज्यादा फोकस किया और इसमें कामयाब भी रहे। दूसरी और रोहित पूरी फिल्म में कहीं भी शाहरुख और काजोल की लव स्टोरी को सही ट्रैक पर नहीं ला पाए और ना ही इनके बीच फिल्माएं रोमांटिक सींस को असरदार ही बना पाए। बल्गारिया की खूबसूरती को रोहित ने बेहतरीन ढंग से फिल्म में समेटा है।



ऐक्टिंग
राज और काली के किरदारों में शाहरुख ने कुछ नया करने की बजाएं अपनी पुरानी फिल्मों के किरदारों को दोहराया तो मीरा के रोल में काजोल ने बस अपना किरदार को निभाया भर है। वरूण धवन के किरदार को देखकर शाहरुख स्टारर 'मैं हूं ना' में जैद खान का किरदार याद आता है, अगर फुटेज की बात करें, तो वरुण को यहां जैद से भी कम फुटेज दी गई है। वहीं वरुण कुछ नया करने की बजाएं इस बार फिर गोविंदा को कॉपी करते नजर आए। इशिता के रोल में कीर्ति सेनन पूरी तरह निराश करती है। ऑस्कर के रोल में संजय मिश्रा का जवाब नहीं, संजय जब भी स्क्रीन पर आए, हंसाकर गए। जॉनी लीवर ने जमकर ओवर ऐक्टिंग की है, तो वहीं विनोद खन्ना और कबीर बेदी जैसे मंझे हुए कलाकारों को इस फिल्म में वेस्ट किया गया है।

संगीत
आइसलैंड में शूट गेरुआ गाने के अलावा, जन्म जन्म और मनमा इमोशन यंगस्टर्स में हिट है, प्रीतम का म्यूजिक कहानी और माहौल पर फिट है।

क्यों देखें
अगर आप शाहरुख खान और काजोल के फैंस हैं, तो दिलवाले आपको शायद अपसेट ना करे, वही अगर आप बरसों बाद बॉलिवुड की सबसे हिट रही रोमांटिक जोड़ी को कुछ अलग लुक और अंदाज में देखने की चाह में थिअटर जाते है, तो अपसेट हो सकते हैं।

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मेरठिया गैंगस्टर्स

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चंद्रमोहन शर्मा

कुछ साल पहले रिलीज हुई अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के स्क्रीन राइटर रहे जीशान कादरी ने जब फिल्म डायरेक्शन में हाथ आजमाया तो उन्हें गैंगस्टर शब्द और सब्जेक्ट ही पसंद आए। जीशान की बतौर स्क्रिप्ट राइटर फिल्मों की कहानी भी वासेपुर जैसे छोटे शहर के गैंग्स पर बेस्ड थी। अब उनकी यह नई फिल्म भी एक छोटे शहर में रहने वाले ऐसे युवकों की कहानी है जो बिना मेहनत किए रातोंरात करोड़पति बन जाना चाहते हैं। इस मकसद को पूरा करने के लिए यह सभी ऐसा शॉर्टकट अपनाते हैं, जिसका अंजाम पहले से ही उन सबको मालूम है। सीमित बजट में नई स्टार कास्ट के साथ बनी इस फिल्म को प्रॉडक्शन कंपनी ने बिना किसी खास प्रमोशन के रिलीज कर दिया। ऐसे में बॉक्स ऑफिस पर फिल्म कमजोर साबित हो सकती है। मेरठ, नोएडा और आसपास की लोकेशन को जीशान ने जीवंत ढंग से पेश किया है, लेकिन एक फिल्म के रूप में कुछ नया नहीं कर पाए।

कहानी : मेरठ के एक कॉलेज में पढ़ रहे छह दोस्तों निखिल, अमित, संजय फॉरनर, सनी, गगन और राहुल चैलेंजर स्टडी कंप्लीट करने के बाद अच्छी नौकरी की तलाश में लग जाते हैं। नौकरी की चाह में यह सभी एक ऐसे गिरोह के झांसे में भी फंसते हैं जो इनसे मोटी रकम लेकर इन्हें नौकरी का ऑफर लेटर तो देता है, लेकिन यह सब जाली निकलता है। इसके बाद सभी रातों-रात मोटी कमाई करने की चाह में किडनैपिंग, लूटपाट के धंधे को अपनाते हैं। इनके साथ मानसी भी शामिल है जो एक बड़ी कंपनी में नौकरी करती है और गिरोह के एक सदस्य की प्रेमिका है। मानसी इनको किडनैपिंग की टिप्स देती है। मानसी की कंपनी के एक बड़े अधिकारी जयंती लाल जैन और उसके बाद कंपनी के मालिक का किडनैप करके मोटी फिरौती वसूली जाती है। शहर में एक के बाद एक हो रही घटनाओं को रोकने के लिए जांबाज पुलिस इंस्पेक्टर आर के सिंह की ड्यूटी लगाई जाती है।




निर्देशन : जीशान ने कहानी की शुरुआत तो दमदार की, लेकिन क्लाइमैक्स तक कहानी पूरी तरह से भटकती नजर आती है। जीशान ने अपनी कहानी के किरदारों की डायलॉग डिलीवरी पर अच्छा फोकस किया है, लेकिन अगर जीशान थोड़ा और होम वर्क करते तो स्क्रिप्ट और बेहतर हो सकती थी। फिल्म का क्लाइमैक्स फीका सा दिखता है। पहली बार डायरेक्शन की कमान संभाल रहे जीशान की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपनी ओर से एक अच्छी शुरुआत तो की, लेकिन कहानी को असरदार ढंग से अजांम तक नहीं पहुंचा पाए।

ऐक्टिंग : जीशान की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने बॉक्स ऑफिस पर भीड़ बटोरने की चाहत में बेवजह बड़े स्टार्स को नहीं लिया। बेशक यह फिल्म अनुराग की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के सामने कहीं नहीं ठहर पाती हो, लेकिन फिल्म के किरदार और उनका अभिनय अनुराग की फिल्म की याद जरूर दिलाते हैं। गैंगस्टर गिरोह के हेड बने निखिल के किरदार में जयदीप अहलावत सभी पर हावी नजर आते हैं। प्रॉपर्टी डीलर मामा के रोल में संजय मिश्रा का जवाब नहीं। अपने सपनों को साकार करने के लिए अपने ही दोस्तों को उल्लू बनाकर अपना मकसद पूरा करने वाली महत्वाकांक्षी लड़की मानसी के रोल में नुसरत भरूचा जमी हैं। अपनी मर्जी और अपने कायदों से आला अफसरों की परवाह किए बिना केस सॉल्व करने इंस्पेक्टर आर.के. सिंह के रोल में मुकुल देव पूरी तरह से फिट नजर आए। अन्य किरदारों ने भी अपने-अपने रोल को ठीक-ठाक निभाया।

संगीत : फिल्म में गाने रखे गए हैं, लेकिन ये गाने सिर्फ फिल्म की रफ्तार को कम करने का काम ही करते हैं। एक-दो गाने कहानी और माहौल पर फिट होते हैं, लेकिन सिनेमा हॉल से बाहर आने के बाद आपको शायद ही कोई गाना याद रह पाएगा।

क्यों देंखे : मेरठ जैसे छोटे शहर की पृष्ठभूमि के बीच आज की शिक्षित युवा पीढ़ी की मानसिकता और रातों-रात करोड़पति बनने की चाह को डायरेक्टर ने कुछ अलग अंदाज में बयां करने की कोशिश तो जरूर की, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट और इंटरवल से पहले फिल्म की बेहद धीमी गति आपके सब्र का इम्तिहान लेती है। नई स्टार कास्ट ने अपने किरदारों को असरदार ढंग से पेश किया है तो फिल्म के संवाद कहानी की यूएसपी है।

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वजीर

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चंद्रमोहन शर्मा

अगर हम बतौर डायरेक्टर बिजॉय नांबियार की बात करें तो बॉलिवुड में अपने करीब दस साल के करियर में उन्होंने सिर्फ दो ही फिल्में बनाई हैं, लेकिन बिजॉय ने अपनी इन दो फिल्मों में दर्शकों और क्रिटिक्स को यह तो बता ही दिया कि वह ग्लैमर इंडस्ट्री में बॉक्स ऑफिस की डिमांड पर फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर्स से अलग हैं। जॉय के निर्देशन में बनी पिछली दोनों फिल्में 'शैतान' और 'डेविड' ने टिकट खिड़की पर बेशक अच्छा बिज़नस नहीं किया, लेकिन इन फिल्मों को देखने वाली क्लास ने जरूर बिजॉय की जमकर तारीफें की। शैतान और डेविड के बीच बतौर प्रड्यूसर बिजॉय की पिछली सस्पेंस-थ्रिलर फिल्म 'पिज्जा' बॉक्स ऑफिस पर औसत बिज़नस करने में कामयाब रही। बेशक वजीर फिल्म की शुरुआत जबर्दस्त है, कहानी की रफ्तार तेज और पूरी तरह से ट्रैक पर है, लेकिन सस्पेंस थ्रिलर फिल्म में दर्शकों को अगर एंड से पहले क्लाइमेक्स पता चल जाए तो यह यकीनन डायरेक्टर की कमजोरी है और ऐसा ही कुछ फिल्म के सेकंड पार्ट में नजर आता है।

कहानी : दानिश अली (फरहान अख्तर) एक एटीएस अफसर हैं। अपनी खूबसूरत पत्नी रुहाना (अदिति राव हैदरी) और चार साल की बेटी नूरी के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहा है। अचानक, एक दिन फैमिली के साथ जा रहे दानिश का सामना आतंकियों से हो जाता है, आतंकी दानिश पर गोलियों की बौछार कर देते हैं। इस एनकाउंटर में दानिश की बेटी नूरी बुरी तरह से घायल होने के बाद अस्पताल में दम तोड़ देती है। नूरी की मौत के बाद रुहाना भी अपनी बेटी की मौत के लिए दानिश को जिम्मेदार समझती है। इस घटना से दानिश पूरी तरह से टूट सा जाता है। इसी बीच एक दिन दानिश को आतंकियों के इसी गिरोह के गाजियाबाद छिपे होने की खबर मिलती है तो वह डिपार्टमेंट के परमिशन के बिना वहां पहुंचकर आतंकियों को मार डालता है। दानिश के आला अफसर उसे लंबी मेडिकल लीव पर भेज देते हैं। इस मुश्किल वक्त में एक दिन दानिश की मुलाकात वील चेयर पर लाइफ काट रहे पंडित ओंकार नाथ धर (अमिताभ बच्चन) से होती है। पंडित जी शतरंज के लाजवाब खिलाड़ी हैं। वील चेयर पर वक्त गुजार रहे पंडित जी घर में छोटे बच्चों को शतरंज सिखा कर अपना वक्त गुजारते हैं।

शतरंज का यह स्कूल पंडित जी की बेटी नीना धर ने शुरू किया था, जो अचानक एक हादसे में मारी जाती हैं। पंडित जी को लगता है मिनिस्टर कुरैशी (मानव कौल) ने उनकी बेटी को मरवाया है। पंडित जी वील चेयर पर होने के बावजूद बेटी की हत्या का बदला लेने को बेताब हैं। कुछ मुलाकातों के बाद दानिश पंडित जी का साथ देने का वादा करता है। इस कहानी के साथ इसमें शतरंज का खेल भी चलता है जिसमें राजा है, वजीर है और उसके प्यादे भी मौजूद हैं।

ऐक्टिंग : वजीर की सबसे बड़ी खासियत अमिताभ बच्चन और फरहान अख्तर की बेहतरीन ऐक्टिंग है। फिल्म के जिन सीन में भी यह दोनों नजर आए वहीं दर्शकों की रोचकता बढ़ जाती है, वहीं अमिताभ के किरदार में एक खामी भी नजर आई। फिल्म में उन्हें कश्मीरी पंडित दिखाया गया है, लेकिन उनका किरदार कहीं भी कश्मीरी पंडित होने का एहसास नहीं कराता। फरहान की पत्नी के किरदार में अदिति राव हैदरी ने अपने किरदार को ठीक-ठाक निभाया है। मानव कौल को फुटेज कम मिली, लेकिन इन दो दिग्गज कलाकारों के बीच में मानव अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे। नील नितिन मुकेश अपने किरदार में फिट नजर आए। कैमियो किरदार निभा रहे जॉन अब्राहम अपने रोल में फिट लगे।

डायरेक्शन : बतौर डायरेक्टर बिजॉय ने फिल्म की जबर्दस्त शुरूआत की, लेकिन इंटरवल के बाद ट्रैक से ऐसे भटके कि आखिर तक सही ट्रैक पर लौट नहीं पाए। यही वजह है कि इंटरवल तक यह वजीर दर्शकों को कहानी के साथ बांधे रखता है, लेकिन इंटरवल के बाद यह वजीर भी दूसरी बॉलिवुड थ्रिलर फिल्मों की तरह एक चालू मसाला फिल्म बनकर रह जाती है और यही बिजॉय की सबसे बड़ी कमजोरी है। हां, बिजॉय ने कहानी के दोनों अहम किरदारों पंडित जी और दानिश अली को कहीं कमजोर नहीं होने दिया।

संगीत : फिल्म का एक गाना तेरे बिन पहले से म्यूजिक लवर्स की जुबां पर है। इस गाने का फिल्मांकन भी अच्छा बन पड़ा है। मौला, तू मेरे पास और खेल खेल में का फिल्मांकन ठीक-ठाक है।

क्यों देखें : स्क्रीन पर अमिताभ बच्चन और फरहान अख्तर की गजब की केमिस्ट्री यकीनन आपको पसंद आएगी। अगर आप बिजॉय के निर्देशन में बनी फिल्में पंसद करते हैं तो एक बार वजीर देखी जा सकती है। वहीं मसाला, टोटली एंटरटेनमेंट की चाह में अलग थिएटर जा रहे हैं तो अपसेट होंगे।

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चॉक ऐंड डस्टर

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चंद्रमोहन शर्मा
आप अपने पसंदीदा फिल्म स्टार्स, क्रिकेटर या दूसरी सेलिब्रेटिज को तो उनके बर्थडे पर बधाई का मेसेज करना नहीं भूलते, लेकिन क्या आपको अपने किसी टीचर का बर्थडे भी याद है? ऐसे ही सवालों का जवाब इस फिल्म में निर्देशक ने बेहद सादगी के साथ दिया है। बॉलिवुड में इससे पहले भी एजुकेशन सिस्टम पर फिल्में बनी हैं, लेकिन पब्लिक स्कूलों के बीच एक-दूसरे को पछाड़ने की दौड में सबसे ज्यादा कौन पिसता है, इसका बेहद सटीक जवाब डायरेक्टर जयंत ने दिया है।

इस फिल्म को किसी सिंगल स्क्रीन थिएटर मालिक को चारों शो में लगाने के काबिल नहीं लगा। वहीं सरकारों ने भी इस फिल्म को एंटरटेनमेंट टैक्स में छूट के काबिल नहीं माना। भले ही इस फिल्म में बॉलिवुड के करीब आधा दर्जन दिग्गज और मंझे हुए स्टार्स हैं, लेकिन बॉक्स आफिस के पैमाने पर ट्रेड एनालिस्ट इन्हें आउटडेटेड मानते हैं। तभी तो ट्रेड में 'चॉक एंड डस्टर' का कहीं क्रेज नजर नहीं आया।

कहानी फिल्म में मुंबई के कांता बेन हाई स्कूल की कहानी दिखाई गई है। इस स्कूल को चलाने वाली ट्रस्टी कमिटी का हेड अनमोल पारिक (आर्य बब्बर) इसे शहर का नंबर वन और ऐसा स्कूल बनाना चाहता है, जहां सिलेब्रिटीज तक के बच्चे भी पढ़ने के लिए आएं। इसीलिए अनमोल काबिल औैर अनुभवी प्रिसिंपल भारती शर्मा (जरीना वहाब) को बर्खास्त कर यंग वाइस प्रिसिंपल कामिनी गुप्ता (दिव्या दत्ता) को नई प्रिसिंपल बनाता है। कामिनी अनुभवी टीचरों को प्रताड़ित करने में लग जाती है। स्कूल की सीनियर मैथ्स टीचर विधा सावंत (शबाना आजमी) और साइंस टीचर ज्योति (जूही चावला) प्रिसिंपल की इस तानाशाही और काबिल टीचर्स का हैरसमेंट करने की नीतियों का विरोध करती हैं, तो कामिनी सबसे पहले विधा को नाकाबिल करार देकर नौकरी से बर्खास्त कर देती है।विधा को स्कूल में हार्ट अटैक पड़ जाता है और उसे अस्पताल में ऑपरेशन के लिए भर्ती कराना पड़ता है। ऐसे में ज्योति एक टीवी चैनल की रिपोर्टर भैरवी ठक्कर (रिचा चड्ढा) के साथ मिलकर टीचर्स के सम्मान और विधा को उसका हक वापस दिलाने की लड़ाई लड़ती है।

डायरेक्शन जयंत की तारीफ करनी होगी कि करीब सवा दो घंटे की इस फिल्म में उन्होंने कहानी को सही ट्रैक पर तो रखा ही, फिल्म की स्पीड भी कहीं कम नहीं होने दी।

ऐक्टिंग विधा सावंत के किरदार में शबाना आजमी ने जान डाल दी है। वह इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी है। जूही चावला और दिव्या दत्ता का भी जवाब नहीं। दिव्या ने एक बार फिर अपनी काबिलियत साबित की। ऋषि कपूर ने अंत में आकर भी दर्शकों की खूब वाहवाही बटोरी है।

क्यों देखें
ऐसी बेहतरीन कहानी जो यकीनन आपको आपके स्कूल के किसी ना किसी टीचर की याद एक बार जरूर दिलाने का दम रखती है। ऐसी फिल्म आपको फैमिली के साथ देखनी चाहिए। साफ फिल्में कम ही बनती हैं।

संगीत
हम शिक्षा के और गुरु ब्रह्मा गानों का फिल्मांकन बेहतरीन किया गया है।


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एयरलिफ्ट

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चंद्रमोहन शर्मा

को-प्रड्यूसर और
लीड ऐक्टर अक्षय कुमार की मानें तो उनकी नई फिल्म एयरलिफ्ट की कहानी और किरदार बिल्कुल सच्चे हैं। पहले खाड़ी युद्ध को कवर करने वाले एक सीनियर रिपोर्टर और उस वक्त एयर इंडिया में उच्च पद पर रहे एक अफसर इस कहानी को सच से परे मानते हैं। हालांकि, स्क्रीन पर आप जो कुछ भी देखेंगे वह सब सच के बेहद करीब है।

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फिल्म की कहानी चार अहम किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। इन चारों को मिलाकर एक लीड किरदार स्क्रीन पर उतारा गया है, जिसे अक्षय कुमार ने निभाया है। यह फिल्म पहले खाड़ी युद्ध पर आधारित है। इस जंग के दौरान कुवैत में फंसे करीब एक लाख सत्तर हजार भारतीय नागरिकों को देश वापस लाए जाने की घटना को डायरेक्टर ने अपने अंदाज से पेश किया है। किरदारों को पर्दे पर उतारने में कुछ फिल्मी आजादी की जरूरत होती है, यही आजादी फिल्म के डायरेक्टर राजा मेनन ने भी ली है।

देखिए, फिल्म का ट्रेलर



इस घटना को और ज्यादा असरदार ढंग से पेश करने के मकसद से राजा ने फिल्म के कुछ सीन्स को दुबई से करीब चार घंटे की दूरी पर स्थित रसेल खेमा में जाकर शूट किया। गुजरात के भुज और राजस्थान की आउटडोर लोकेशन पर इस फिल्म की अधिकांश शूटिंग की गई है।



कहानी : रंजीत कात्याल (अक्षय कुमार), पत्नी अमृता कात्याल (निमरत कौर) और प्यारी-सी बेटी के साथ कुवैत में रहता है। वह शहर का नामी बिज़नसमैन है। खाड़ी युद्ध छिड़ने के बाद बुरी तरह से बर्बाद हुए कुवैत के एक शहर में रह रहे दूसरे भारतीय नागरिकों के साथ रंजीत का परिवार भी फंस जाता है।

सरकारी अधिकारी हालात से निपटने के विकल्पों पर विचार कर रहे हैं और ऐसे में कुवैत का रईस बिज़नसमैन रंजीत अपने प्रभाव और रसूख से अपनी फैमिली और फंसे दूसरे भारतीय नागरिकों को वहां से निकालने का मिशन स्टार्ट करता है। कुवैत में हालात खराब हो रहे थे। भारतीय सेना डायरेक्ट कुछ करने में कतरा रही थी। उस वक्त रंजीत ने अपने दम पर दुनिया के सबसे बड़े ऑपरेशन को शुरू करने का फैसला किया।

ऐक्टिंग : इस फिल्म में अक्षय कुमार ने एक बार फिर अपने किरदार को पूरी तरह से जीवंत कर दिखाया है। एयरलिफ्ट में अक्षय कुमार ने अब तक के अपने फिल्मी करियर की बेहतरीन ऐक्टिंग की है। अक्षय जब स्क्रीन पर देश के राष्ट्रीय ध्वज के साथ नजर आते हैं, तो उनके चेहरे का एक्सप्रेशन देखकर हॉल में बैठे दर्शक इस सीन से बंध जाते हैं।



अक्षय की पत्नी के किरदार में निमरत कौर ने अच्छा काम किया है। बाकी के कलाकारों में पूरब कोहली, इनामुल हक और कुमुद मिश्रा ने बेहतरीन ऐक्टिंग की है।

डायरेक्शन : राजा मेनन ने स्क्रिप्ट के साथ पूरा न्याय किया है। डायरेक्टर की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने बॉक्स ऑफिस का मोह त्याग कर कहानी और किरदारों को पूरी तरह से माहौल में समेटा है।

वहीं फिल्म के लगभर हर ऐक्टर से उन्होंने बेहतरीन ऐक्टिंग कराई है। वॉर सीन्स को भी उन्होंने पर्दे पर पूरी तरह से जीवंत कर दिखाया है। उनका काम तारीफ के काबिल है।

संगीत : ऐसी कहानी में गानों की जरूरत नहीं होती, लेकिन यहां राजा ने गानों का फिल्मांकन ऐसे ढंग से पेश किया है, जो कहानी और माहौल के अनुकूल है।

क्यों देखें : अक्षय कुमार को उनके फिल्मी करियर के सबसे बेहतरीन किरदार में देखने के लिए इस फिल्म को देखें। अगर आप अच्छी और मेसेज देने वाली फिल्मों के शौकीन हैं, तो इस फिल्म को फैमिली के साथ देख सकते हैं।

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क्या कूल हैं हम 3

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चंद्रमोहन शर्मा

फिल्म के नाम में कूल है, लेकिन कहानी के मामले में यह बहुत ही हॉट है। अडल्ट कॉमिडी इस फिल्म में ढेर सार डबल मीनिंग डायलॉग्स हैं। अगर सेंसर बोर्ड द्वारा गठित सेंसर बोर्ड की प्रिव्यू कमिटी की चलती तो एकता कपूर की यह फिल्म पर्दे तक पहुंच ही नहीं पाती।

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कमिटी ने इस फिल्म की कहानी को घटिया करार देकर इस फिल्म को सेंसर का सर्टिफिकेट जारी करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद एकता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उन्हें राहत मिली। हालांकि, फिल्म के कुछ सीन्स पर कट्स लगे तो कई डबल मीनिंग डायलॉग्स को म्यूट कर दिया गया।

देखें, फिल्म का ट्रेलर


इस सीरीज की पहली दोनों फिल्में हिट रही हैं और इस फिल्म का बजट 15 करोड़ बताया जा रहा है। फिल्म के लिए यह हफ्ता महत्वपूर्ण रहेगा, क्योंकि अगले हफ्ते सनी लियोनी की 'मस्तीजादे' रिलीज हो रही है।



कहानी: रॉकी (आफताब शिवदासानी) और कन्हैया (तुषार कपूर) दोनों अच्छे दोस्त हैं। दोनों को बैंकॉक में रहने वाला उनका दोस्त मिकी (कृष्णा अभिषेक) वहां आने के लिए कहता है। मिकी की बात मानकर दोनों बैंकॉक पहुंचते हैं। वहां रॉकी और कन्हैया पॉर्न फिल्मों में काम करने लगते हैं।

इस बीच कन्हैया को वहीं रहने वाली एक खूबसूरत लड़की शालू (मंदाना करीमी) से प्यार हो जाता है। अब कन्हैया किसी भी हालत में शालू से शादी करके उसे अपना बनाना चाहता है। इस सीधी सादी हॉट कहानी में उस वक्त टर्न आता है जब शालू के घरवाले कन्हैया की फैमिली वालों से मिलने की जिद पकड़ लेते हैं। बस इसके बाद कहानी में एक के बाद एक कई मजेदार हॉट टि्वस्ट आते हैं।

ऐक्टिंग: कृष्णा अभिषेक स्मॉल स्क्रीन पर कॉमिडी में अपनी अलग जगह बना चुके हैं। बोल बच्चन के बाद कृष्णा को एक अच्छी फुटेज वाला किरदार मिला जिसे उन्होंने असरदार ढंग से निभाया।

तुषार कपूर और आफताब शिवदासानी अपने किरदार में फिट नजर आए। शक्ति कपूर अपने रोल में खूब जमे। ऐसा लगता है कि उन्होंने कैमरे के सामने ऐक्टिंग करने की बजाय मस्ती ज्यादा की। फिल्म की फीमेल एक्ट्रेस ने ऐक्टिंग छोड़ कैमरे के सामने एक्सपोज किया है।

डायरेक्शन: यंग डायरेक्टर उमेश घडगे ने मिलाप झावेरी के लिखे बेहद हॉट डबल मीनिंग संवादों और हॉट कहानी को बस पर्दे पर उतारने का काम किया है। ऐसा लगता है उमेश ने फिल्म के सभी किरदारों को कैमरे के सामने मस्ती करने और अपनी मर्जी से काम करने की छूट देने के अलावा और कुछ नहीं किया।

संगीत: साजिद-वाजिद ने ऐसा संगीत दिया है, जो यंग जेनरेशन को पसंद आ सकता है। वैसे फिल्म में कई गाने ठूंस दिए गए हैं, जिनकी कहानी में कतई जरूरत नहीं थी।

क्यों देखें: अगर आपको अडल्ट कॉमिडी फिल्में पसंद हैं, तो फिल्म देख सकते हैं। फिल्म की कहानी में कुछ नयापन नहीं है। आपको बस पर्दे पर एक के बाद एक हॉट सीन्स के अलावा जमकर डबल मीनिंग संवाद सुनने को मिलेंगे।

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साला खड़ूस

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chandermohan.sharma@timesgroup.com

कुछ अर्से पहले तक हमारे बॉलिवुड मेकर्स को अगर किसी खेल पर फिल्म बनाना पसंद था तो वह खेल क्रिकेट ही था। आने वाले दिनों में भी अजहरुद्दीन और एमएस धोनी को लेकर भी फिल्में बन रही हैं। हालांकि, 'चक दे', 'मैरी कॉम' और 'भाग मिल्खा भाग' की सफलता के बाद अब मेकर्स दूसरे खेलों पर भी फिल्में बनाना पंसद कर रहे हैं। बॉक्स ऑफिस पर बतौर निर्देशक हर बार कामयाबी का नया इतिहास रच चुके डायरेक्टर राज कुमार हिरानी ने बेशक इस फिल्म में अपने चहेते स्टार आर. माधवन की इमेज को चेंज करने की कुछ ज्यादा ही कोशिश की है। यह फिल्म खेल फेडरेशन और खेलों के दिग्गजों के बीच चलती गुटबाजी और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृति और युवा प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को प्रताड़ित करने जैसी समस्याओं पर ध्यान खिंचती है।

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कहानी : आदि तोकर ( आर माधवन) अच्छा बॉक्सर और कोच है, लेकिन बॉक्सिंग चीफ कोच देव खतरी (जाकिर हुसैन) की वजह से उसे कई बार बेवजह प्रताड़ित होना पड़ता है। देव खतरी हर बार खुद को बेहतर साबित करने की कोशिश करता है। लंबे अर्से से आदि को एक ऐसे युवा खिलाड़ी की तलाश है जो बॉक्सिंग की फील्ड में अपना और अपने कोच का नाम देश-विदेश में रोशन करे।



तभी उसका ट्रांसफर हरियाणा के हिसार शहर से चेन्नै भेज दिया जाता है।चेन्नै में बॉक्सिंग का खेल ज्यादा पॉप्युलर नहीं है, ऐसे में आदि वहां रहकर ऐसे युवा प्रतिभाशाली खिलाड़ी को कैसे खोज कर सकेगा। हालांकि, चेन्नै जाकर अपनी इस तलाश में लग जाता है, यहीं उसकी मुलाकात बेहद गुस्सैल मछली बेचने वाली एक लड़की मादी (रीतिका सिंह) से होती है।

मादी को बचपन से बॉक्सिंग का जुनून है, मादी की बहन मुमताज सरकार अच्छी बॉक्सर है। मादी से मिलने के बाद आदि को लगता है जैसे उसकी तलाश पूरी हो गई है। आदि अब मादी को बेहतरीन बॉक्सर बनाने के मिशन में लग जाता है, जो उसका बरसों पुराना सपना साकार कर सके।

ऐक्टिंग : आपको बता दें रीयल लाइफ में रीतिका सिंह अच्छी बॉक्सर हैं और बॉक्सिंग की कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती रही हैं। ऐसे में रीतिका ने अपने किरदार को पर्दे पर जीवंत कर दिखाया है।

इस फिल्म में रीतिका की बेहतरीन ऐक्टिंग देखकर नहीं लगता कि जैसे यह उसकी पहली फिल्म हो। वहीं आर. माधवन ने अपने किरदार को गजब ढंग से निभाया है। इस फिल्म में माधवन का किरदार उनकी पिछली फिल्मों से टोटली डिफरेंट है। कुछ सीन्स में माधवन के चेहरे के हाव-भाव देखकर 'चक दे इंडिया' में कोच बने शाहरुख की याद आती है। जाकिर हुसैन और मुमताज दोनों ने अपने रोल को अच्छा निभाया।

डायरेक्शन : बतौर डायरेक्टर सुधा कोंगरा ने स्क्रिप्ट के साथ पूरा न्याय किया है, लेकिन उनका माइनस पॉइंट बस एक है कि फिल्म शुरू होने के बाद हॉल में बैठा दर्शक अगले सीन से लेकर कहानी के क्लाइमेक्स तक का अंदाज लगा लेता है। वहीं फिल्म बार-बार 'चक दे इंडिया' और 'मैरीकॉम' की याद दिलाती है, लेकिन सुधा ने हर किरदार से अच्छा काम लिया। खेल की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में कोच के साथ खिलाड़ी और फेडरेशन में चलती गुटबाजी तक को दिखाने की कोशिश की, लेकिन माधवन और रीतिका के लव एंगल को फिल्म में अगर नहीं रखा जाता तो यकीनन फिल्म और जानदार बन पाती।

संगीत : स्वानंद किरकरे के गाने कहानी और माहौल के मुताबिक है, इन गानों को माहौल के मुताबिक बनाने में म्यूजिक डायरेक्टर संतोष नारायण ने काफी मेहनत की है, लेकिन हॉल से बाहर आने के बाद आपको शायद ही फिल्म को कोई गाना याद रह पाए।

क्यों देखें : अगर खेल पर बनी फिल्में पसंद हैं तो जरूर देखिए। रीतिका सिंह की बेहतरीन ऐक्टिंग, आर माधवन का नया बदला लुक , बॉक्सिंग को लेकर ईमानदारी के साथ बनी इस फिल्म में माइनस पॉइंट बस यही है कि कहानी में नयापन नहीं है ।

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मस्तीजादे

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इस फिल्म के राइटर-डायरेक्टर मिलाप झावेरी को अल्ट्रा बोल्ड और डबल मीनिंग फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखने में महारत हासिल है। बॉक्स ऑफिस पर मिलाप की लिखी लगभग सभी फिल्मों ने प्रॉडक्शन कंपनियों को खासा मुनाफा कमा कर दिया है, लेकिन इस फिल्म की बात करें तो अब जब मिलाप ने इस फिल्म से डेब्यू किया है, तो उनकी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर शायद ही पिछली बार की तरह कोई करिश्मा कर पाए।

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'मस्ती' सीरीज की पिछली दोनों फिल्मों को मिलाप ने लिखा तो एकता कपूर की 'क्या कूल हैं हम' सीरीज की लिखी उनकी दोनों फिल्मों ने पर औसत से ज्यादा बिज़नस कर दिखाया। यह अलग बात है कि मिलाप और सेंसर बोर्ड के बीच खासी रस्साकशी चली। 'क्या कूल हैं हम' पर बोर्ड ने न सिर्फ जमकर कैंची ही चलाई, बल्कि पर्दे तक पहुंचने के लिए फिल्म को ट्रिब्यूनल और रिव्यू कमिटी तक जाना पड़ा।




कुछ ऐसा ही हाल बतौर डायरेक्टर मिलाप की इस पहली फिल्म 'मस्तीजादे' का भी रहा। अर्से से बनकर तैयार सनी लियोनी स्टारर इस फिल्म को सेंसर ने ऐसा बोल्ड और डबल मीनिंग डायलॉग से भरपूर समझा कि फिल्म को सेंसर का कोई भी सर्टिफिकेट देने से ही साफ इनकार कर दिया। लम्बे समय तक सेंसर की अलग-अलग कमिटियों से लेकर कोर्ट के चक्कर लगाने के बाद अब जब 'मस्तीजादे' सिल्वर स्क्रीन पर उतरी है, तो फिल्म की अवधि सिमटते-सिमटते महज पौने दो घंटे के करीब ही रह गई है।

अगर सनी लियोनी की बात करें तो एकता कपूर की 'रागिनी एमएमएस' के सीक्वल के बाद सनी की किसी फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कोई खास कामयाबी नहीं पाई। सनी और राम कपूर स्टारर पिछली फिल्म 'कुछ लोचा हो जाए' तो अपनी प्रॉडक्शन कॉस्ट तक नहीं निकाल पाई थी। ऐसे में मस्तीजादे सनी के करियर के लिए बेहद अहम है, लेकिन फिल्म देखने के बाद नहीं लगता कि इससे सनी के करियर को जरा भी फायदा होने वाला है।

कहानी : जहां 'क्या कूल हैं हम' पॉर्न फिल्म और उनके स्टार्स के आसपास घूमती है, वहीं 'मस्तीजादे' की कहानी एक ऐड एजेंसी के आसपास टिकी है। ऐसा लगता है कि हमारे फिल्मकारों को ऐड एजेंसी और फिल्मी बैकग्राउंड पर फिल्में बनाना कुछ ज्यादा ही पसंद है। तभी तो मिलाप ने भी बतौर डायरेक्टर अपनी पहली फिल्म की कहानी का ताना-बाना भी ऐड एजेंसी के इर्द-गिर्द ही बुना। सनी केले (तुषार कपूर) और आदित्य चोटिया (वीर दास) एक ऐड एजेंसी में काम करते हैं। हालात ऐसे बनते हैं कि वीर और तुषार को ऐड एजेंसी से निकाल दिया जाता है। इन दोनों को लगता है कि ऐड फील्ड में इन दोनों को महारत हासिल है, बस यही सोचकर दोनों खुद की एक नई ऐड एजेंसी शुरू करते हैं। इन दोनों की मुलाकात एक जैसी नजर आने वाली अलग-अलग पर्सनैलिटी की दो खूबसूरत लड़कियों लिली लेले (सनी लियोन) और लैला लेले (सनी लियोनी) से होती है। इन दोनों को सनी से प्यार हो जाता है। इसके बाद कहानी में अलग-अलग टि्वस्ट आते हैं।

ऐक्टिंग : सनी ने अपने डबल रोल में दोनों किरदारों को ठीक-ठाक निभाया है, लेकिन स्क्रिप्ट और किरदारों में दम न होने के चलते सनी खुद को बेहतरीन ऐक्ट्रेस के तौर पर साबित नहीं कर पाईं। यह कहना गलत होगा कि सनी ने इस बार भी अपने फैंस को लुभाने के लिए ऐक्टिंग पर ध्यान देने से ज्यादा अपनी बोल्ड अदाओं का ही सहारा लिया। वीर दास और तुषार कपूर ने अपने किरदारों को असरदार बनाने के लिए मेहनत तो की, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट की वजह से ये दोनों भी कहीं असर नहीं छोड़ पाए। अन्य कलाकारों में असरानी, शाद रंधावा और सुरेश मेनन ने प्रभावित किया है, वहीं रितेश देशमुख की एंट्री मजेदार रही।

संगीत : पौने दो घंटे की कहानी में बार-बार डाले गए गाने कहानी की पहले से धीमी रफ्तार को और कम करते हैं। अलबत्ता 'लैला तेरी' और 'बसंती' गानों का फिल्माकंन अच्छा हुआ है।



क्यों देखें : अगर आप सनी लियोनी के पक्के फैन हैं और सिर्फ सनी की ब्यूटी और उनकी अदाओं को देखने के लिए थिएटर का रुख करते हैं तो इस फिल्म को एक बार देखा जा सकता है, वर्ना फिल्म में और कुछ ऐसा खास नहीं, जिसके लिए यह फिल्म देखी जाए।

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घायल वन्स अगेन

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ChanderMohan.Sharma@timesgroup.com

करीब 25 साल
बाद अजय मेहरा एक बार फिर सिल्वर स्क्रीन पर अपने पुराने अंदाज में ही लौटे हैं। फर्क बस इतना है कि इस बार अजय को राज कुमार संतोषी जैसे मंझे हुए डायरेक्टर का साथ नहीं मिला। न ही वह पावरफुल स्क्रिप्ट के साथ लौटे हैं। यही वजह है कि दो घंटे की इस फिल्म के साथ भी दर्शक पूरी तरह से कहीं बंध नहीं पाता। इस बार किरदारों को भी उस कदर पावरफुल नहीं बनाया गया। बेशक, फिल्म की प्रॉडक्शन कंपनी तर्क दे रही है कि उस वक्त जो बच्चे थे, अब जवान हो चुके हैं। ऐसे में उन्हें घायल का यह बदला हुआ अंदाज पसंद आ सकता है। पच्चीस साल पहले आई 'घायल' बॉक्स आफिस पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी। अब सीक्वल में पुरानी फिल्म के मुकाबले यह कमजोर नजर आती है। सनी देओल ने ही फिल्म की कहानी लिखी और ऐक्टिंग के साथ फिल्म का निर्देशन भी किया। सनी यहीं कमजोर रह गए।

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कहानी : मुबई के नामी बिजनसमैन राज बंसल (नरेंद्र झा) का दबदबा इतना है कि होम मिनिस्टर (मनोज जोशी ) से लेकर पुलिस कमिश्नर (जाकिर हुसैन) तक उसके दरबार में हर वक्त हाजिरी लगाते नजर आते हैं। बंसल साहब का बड़ा बेटा कबीर कुछ ज्यादा ही सिरफिरा है। बेहद गुस्सैल और हर बात में रिवॉल्वर निकाल लेने वाले कबीर के हाथों एक्स डीसीपी और आरटीआई एक्टिविस्ट डिसूजा (ओम पुरी) का मर्डर हो जाता है। इसी शहर से अजय मेहरा (सनी देओल) सत्यकाम नाम का अखबार निकालता है। हमेशा सच का साथ देने वाले अजय मेहरा को कॉलेज के चार दोस्त अपना आदर्श मानते है। रिहा (सोहा अली खान) अजय मेहरा की डॉक्टर है जो उसे उसकी पिछली यादों से दूर ले जाने की कोशिश में है। कहानी में टर्न उस वक्त आता है जब अजय मेहरा को आदर्श मानने वाले इन चारों कॉलेज फ्रेंड्स के हाथ एक ऐसा विडियो टेप आता है, जिसमें रईस राज बंसल का बेटा होम मिनिस्टर की मौजूदगी में डिसूजा को गोलियों से भून देता है। राज बसंल नहीं चाहता है कि टेप अजय मेहरा पहुंचे।



ऐक्टिंग : लंबे अर्से बाद स्क्रीन पर नजर आई सोहा अली खान ने अपने किरदार को अच्छे ढंग से निभाया है। सनी देओल अपने किरदार में फिट नजर आए। हैदर में नजर आए नरेंद्र झा ने अच्छा काम किया है। पहली बार कैमरा फेस कर रहे शिवम पाटिल, ऋषभ अरोड़ा ने अच्छा रोल निभाया है। टिस्का चोपडा , मनोज जोशी बस ठीकठाक रहे। ओम पुरी ने एक बार फिर वही किया, जो पहले से करते नजर आए हैं।


डायरेक्शन : बतौर डायरेक्टर सनी देओल ने बरसों से हिंदी फिल्मों में नजर आ रही अच्छाई और बुराई की जंग को दिखाने की कोशिश की है। अगर सनी चाहते तो इस फिल्म को नए नाम से भी बना सकते हैं। ऐसा लगता है कि सनी अपनी पिछली सुपर हिट फिल्म को कैश करना चाहते थे। तभी उन्होंने पिछली घायल के हर सीन को दोहराया है। पुरानी फिल्म के फ्लैशबैक इस फिल्म की धीमी रफ्तार को और धीरे ही करते है। इस फिल्म में ऐसा कोई डायलॉग नहीं है जो हॉल से बाहर आने के बाद याद रह पाए। सनी ने यंगस्टर्स को खूब ज्ञान देने की कोशिश तो की है लेकिन उनका अंदाज नब्बे के दशक का है। फिल्म में ऐक्शन का ओवरडोज कुछ ज्यादा ही है।

संगीत : फिल्म में कई गाने हैं, लेकिन हॉल से बाहर आने के बाद आपको शायद ही कोई गाना याद रह पाए।

क्यों देखें : अगर आप सनी देओल का पक्के फैन हैं, ऐक्शन और स्टंट देखने थिएटर जाते हैं तो फिल्म देखी जा सकती है। इसकी तुलना पुरानी फिल्म से करेंगे तो अपसेट होंगे।

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सनम तेरी कसम

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ChanderMohan.Sharma@timesgroup.com

'सनम तेरी कसम'
की डायरेक्टर जोड़ी का फिल्म बनाने और सोचने का नजरिया बाकी डायरेक्टर्स से अलग है। इन दिनों जहां हॉट ऐक्शन, डबल मीनिंग और बेवजह ऐक्शन स्टंट और थ्रिलर मूवीज़ बनाने का ट्रेंड चला हुआ है तो इस जोड़ी ने दिल को छूने वाली लव-स्टोरी बनाई है।

कहानी : इंद्र ( हर्षवर्धन राणे ) मुंबई की एक सोसायटी में अकेला रहता है। इंद्र दिनभर अपने फ्लैट में बने जिम में कसरत करता या फिर नशा करता रहता है। इंद्र को प्यार शब्द से नफरत है। हालांकि, उसका रूबी नाम की एक मेकओवर आर्टिस्ट के साथ लंबे अर्से से रिलेशनशिप है। सोसायटी वालों को इंद्र के बारे में बस इतना पता है कि वह एक अमीर परिवार से है और आठ साल जेल काट कर लौटा है।

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इसी सोसायटी के एक फ्लैट में सरस्वती पार्थसारथी (मावरा हुकेन) अपनी छोटी बहन कावेरी और मां-बाप के साथ रहती है। सरस्वती एक लाइब्रेरी में जॉब करती हैं। साउथ इंडियन फैमिली की सरस्वती अपने पापा जयराम (मनीष शर्मा) को ही अपना आदर्श मानती है। सिंपल लुक वाली सरस्वती फैशन की एबीसी तक नहीं जानती।



कावेरी को शिकायत है कि उसी की वजह से उसकी अपने बॉयफ्रेंड से शादी नहीं हो पा रही है। क्योंकि, पापा चाहते हैं कि पहले बड़ी बेटी की शादी हो, लेकिन जयराम, सरस्वती की शादी किसी आईएएस से करना चाहते हैं। सरस्वती के पिता को सोसायटी में रह रहे इंद्र का रहन-सहन और उसका स्टाइल जरा भी पसंद नहीं है, लेकिन चाह कर भी जयराम इंद्र के खिलाफ कुछ कर नहीं पा रहा है। इंद्र शहर के नामी ऐडवोकेट (सुदेश बेरी) का बेटा है, लेकिन पिता से उसे नफरत है। इस बार जब फिर सरस्वती अपने सिंपल लुक को लेकर शादी के लिए रिजेक्ट हो जाती है तो वह रूबी से मेकओवर कराने का फैसला करते हैं। सरस्वती के मां-बाप तिरुपति गए हुए हैं।



देर रात सरस्वती इंद्र से मिलने जब उसके फ्लैट पहुंचती है तभी वहां रूबी आ जाती है। हालात ऐसे बनते हैं कि इंद्र बुरी तरह जख्मी हो जाता है। रूबी उसे इसी हाल में छोड़कर चली जाती है। ऐसी हालत में सरस्वती घायल इंद्र को ट्रीटमेंट के लिए लेकर जाती है। यहीं पर पुलिस इंस्पेक्टर की एंट्री होती है, बुरी तरह से घायल इंद्र को छोड़ने सरस्वती जब उसके फ्लैट लौटती है, तभी वहां उसके पापा की एंट्री होती है।

ऐक्टिंग : फिल्म के लीड किरदार सरस्वती को पाकिस्तानी ऐक्ट्रेस ने अपनी दमदार ऐक्टिंग से जीवंत कर दिया है। फिल्म के जिस भी सीन में मावरा की मौजूदगी है वही सीन्स फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी हैं। मावरा की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपनी पहली ही हिंदी फिल्म में एक सीधी-सादी साउथ इंडियन बहन जी टाइप लड़की के किरदार को बखूबी निभाया। हर्षवर्धन राणे का किरदार इंद्र बार-बार 'आशिकी 2' में आदित्य राय कपूर के किरदार की याद दिलाता है।

डायरेक्शन : डायरेक्टर इस बार भी राधिका राव और विनय की जोड़ी ने स्क्रिप्ट को अपने ही अंदाज में हैंडल किया है। अच्छी शुरुआत के बाद बीच-बीच में दोनों ट्रैक से भटके तो सही, लेकिन कहानी और किरदारों के साथ इन्होंने कहीं बेवजह छेड़छाड़ नहीं की। कहानी की स्लो रफ्तार और लीड किरदार इंद्र को कमजोर बनाकर सरस्वती के किरदार को आखिर तक मजबूत बनाने की कोशिश की गई, दर्शकों की बड़ी क्लास को पसंद आए।

तस्वीरें: 'रणबीर की दीवानगी ने कर दिया था मुझे बदनाम'

संगीत : फिल्म के कई गाने फिल्म की रिलीज से पहले ही म्यूजिक लवर्स की जुबां पर है। टाइटल सॉन्ग सनम तेरी कसम का फिल्मांकन गजब है। फिल्म के लगभग गानों का फिल्मांकन अच्छा और माहौल के मुताबिक किया गया है।

क्यों देखें : अगर आपको सिंपल म्यूजिकल लव-स्टोरी पसंद है तो इस फिल्म को एक बार देखा जा सकता है।

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फितूर

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चंद्रमोहन शर्मा
करीब आठ साल पहले रॉक ऑन से डेब्यू करने वाले यंग डायरेक्टर अभिषेक कपूर की फितूर चार्ल्स डिकेन्स की किताब द ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स से प्रेरित है। हॉलिवुड मेंचार्ल्स की इस बुक पर बेस्ड कई फिल्में बनी, लेकिन पहली बार इस कहानी को कुछ बदलाव के साथ बॉलिवुड में पेश किया गया है। काई पो चे जैसी बड़ी हिट देने के बाद अभिषेक फितूर लेकर आए हैं। अभिषेक बेगम हजरत के किरदार में रेखा को साइन करना चाहते थे, लेकिन डेट्स प्रॉब्लम की वजह से जब रेखा से बात नहीं बन पाई तो उन्होंने तब्बू को अप्रोच किया, आज इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी तब्बू की काबिलेतारीफ ऐक्टिंग है। वहीं घाटी में बर्फ के बीच फिल्माए गए फिल्म के कई सीन्स फितूर की दूसरी यूएसपी है।

कहानी
करीब पंद्रह साल पहले घाटी में आतंकवाद चरम पर है, ऐसे माहौल में कश्मीर की बफीर्ली वादियों के बीच बेगम हजरत (तब्बू) अपने आलीशान बंगले में बेटी फिरदौस(कटरीना कैफ) के साथ रहती है। करीब दस साल की फिरदौस बेहद खूबसूरत है। बेगम हजरत को बरसों पहले प्यार में ऐसा धोखा हुआ कि उन्हें प्यार शब्द से ही नफरत हो गई। यहीं वजह है बेगम नहीं चाहती कि फिरदौस के साथ भी ऐसा कुछ हो।



बेगम हजरत के बंगले में रिपेयर के अलावा आर्ट का काम करने के लिए नूर (आदित्य रॉय कपूर) अपने जीजा के साथ आता है। नूर डल लेक के पास एक शकीरे में अपनी बहन रुखसार और जीजा के साथ रहता है। नूर बचपन से अच्छा कारीगर और कमाल का आर्टिस्ट है। बंगले में आर्ट का काम करने के दौरान नूर और फिरदौस अच्छे दोस्त बन जाते है। नूर दिल ही दिल में फिरदौस को बेइंतहा चाहने लगता है। दूसरी ओर, बेगम हजरत को पसंद नहीं एक मामूली कारीगर की जुबां पर फिरदौस का नाम तक भी आ पाए।


फिल्म में बेहद खूबसूरत लगी हैं कटरीना

बेगम को लगने लगता है कि नन्हीं फिरदौस के दिल में भी अब धीरे-धीरे नूर को लेकर कुछ होने लगा है। ऐसे में बेगम नूर को अपनी पहचान बनाने के लिए कहती है। वहीं, बेटी फिरदौस को पढ़ने के लिए लंदन भेज देती है। बड़ा होने पर नूर आर्ट की दुनिया में किसी स्टार से कम नहीं है, इसी बीच फिरदौस भी लंदन से दिल्ली पहुंचती है, यहां एक बार फिर दोनों मिलते हैं।

फिरदौस नूर को बताती है कि बचपन की बात अलग थी लेकिन अब उन दोनों के रास्ते अलग-अलग हैं। थोड़े ही दिनों में बेगम हजरत की पसंद के लड़के पाकिस्तान के एक मिनिस्टर के बेटे से फिरदौस की सगाई होने वाली है, जो कुछ दिन बाद पाकिस्तान में मिनिस्टर बनने वाला है। वहीं, नूर हार मानने वालों में नहीं है, नूर पर तो बस एक ही फितूर सवार है कि किसी भी सूरत में उसे अपना प्यार हासिल करना है।

ऐक्टिंग
हजरत बेगम के किरदार में तब्बू ने गजब की ऐक्टिंग की है। कटरीना कैफ एक बार फिर बेहद खूबसूरत गुड़िया जैसी नजर आईंं (फिल्म के कई सीन्स में तब्बू कैट को गुड़िया की कहती है)। कई सीन्स में आदित्य आशिकी 2 में अपने किरदार की कॉपी करते नजर आए। यंग हजरत बेगम के किरदार में अदिति राव हैदरी ने अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई । चंद मिनट स्क्रीन पर नजर आए अजय देवगन प्रभावित करते हैं।


फिल्म में तब्बू की ऐक्टिंग है दमदार

निर्देशन
ऐसा लगता है अभिषेक ने बिखरी स्क्रिप्ट के साथ इस फिल्म को स्टार्ट कर दिया। शायद, इंडस्ट्री की दो टॉप एक्ट्रेस कटरीना और तब्बू की ओर से मिली डेट्स और कश्मीर घाटी में सर्दी के दौरान फिल्म की शूटिंग निबटाने का अभिषेक पर कुछ ऐसा फितूर सवार हुआ कि करीब दो घंटे की फिल्म दर्शकों को बांध नहीं पाती। कमजोर स्क्रिप्ट के चलते अभिषेक फिल्म के अहम लीड किरदारों की मौजूदगी को कैश नहीं कर पाए। अभिषेक ने घाटी की खूबसूरती को गजब अंदाज में पेश किया है।

संगीत
अमित त्रिवेदी ने कहानी और माहौल के मुताबिक स्वानंद किरकिरे के लिखे गीतों को कश्मीरी टच देते हुए पेश किया है। होने दो बतियां, पश्मीना, और ये फितूर मेरा जैसे सॉन्ग कई म्यूजिक चार्ट में टॉप फाइव में है।

क्यों देखें
अगर आप कश्मीर की खूबसूरती के साथ तब्बू की बेहतरीन ऐक्टिंग के साथ कटरीना की ब्यूटी को देखना चाहते हैं तो यह फिल्म जरूर देखें।

कटरीना और आदित्य की फिल्म फितूर का ट्रेलर देखने के लिए क्लिक करें

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