इस फिल्म का टाइटल साठ के दौर में रिलीज हुई एक ऐसी महान फिल्म की याद ताजा करता है, जिसे आज भी भारतीय सिनेमा की चुनिंदा बेहतरीन फिल्मों में रखा जाता है। साठ के दशक में गुरुदत्त स्टारर 'कागज के फूल' की कहानी व्यवस्था और समाज पर एक सवालिया निशान छोड़ जाती है। विनय पाठक स्टारर इस फिल्म की कहानी एक राइटर के इर्द-गिर्द घूमती कहानी है, लेकिन पिछली फिल्म से इसकी तुलना करना सही नहीं होगा।
कहानी : पुरुषोत्तम त्रिपाठी (विनय पाठक) पूरी तरह ईमानदार और अपने बनाए नियमों पर चलने वाला राइटर है। पुरुषोत्तम एक नामी ऐड एजेंसी में बतौर राइटर काम करता है। लंबे अर्से से वह अपनी एक किताब 'एक ठहरी सी जिंदगी' लिखने में लगा है। इसे वह छपवाना चाहता है। किताब में प्रकाशक कंपनी कुछ ऐसे बदलाव करना चाहती है, जिससे पुरुषोत्तम अपसेट रहने लगता है।
अब पति-पत्नी में अक्सर तू-तू-मैं-मैं होने लगती है। ऐसे में शबीना (राइमा सेन) का निकी और पुरुषोत्तम की लाइफ में आना इस तनाव को इतना बढ़ा देता है कि एक दिन पुरुषोत्तम घर छोड़ने का फैसला करता है।
क्यों देखें : अगर विनय पाठक की ऐक्टिंग के फैन हैं, तो अपने चहेते स्टार की खातिर एकबार फिल्म देख सकते हैं।
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